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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 89 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-90

विषय - "पूर्वाग्रह"

आयोजन की अवधि- 13 अप्रैल 2018, दिन शुक्रवार से 14 अप्रैल 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 9 मार्च 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहतरीन क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

जनाब नादिर साहिब आदाब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर क्ष णिकाएँ हुई हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है-

 


सजाये हुये घर को यूं ना बर्बाद करो।
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।

एक महल जो दे रहा चुनौती,
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नींव में पलीता लगाओ मत,
कितनों के पसीने की बूंदों से बना है।
उसको हवाले मत करों आग के, 
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।

सम्बन्धों की सेज पर खुशबुओं को
सुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।

पेड़ की डालों को ऐसे झुकाओ मत
फलों से लदे हैं, सुस्वाद से सराबोर हैं।
लचक गयी डाल तो फल टपक जायेंगे
बांटते हैं स्नेह और ममता पोर पोर हैं।
जड़ों को सींचना कभी ना छोड़ना
सोखना आसान है, सींचना कठिन है।

वातावरण में ब्याप्त हो रहा कोलाहल है,
विष वमन हो  रहा, फैल रहा हलाहल है।
क्या हो गया है, हर ओर क्यों शोर है?
कोई तो हो, जो सोचे, क्या फलाफल है?
इस यज्ञ में, दें अपनी आहुति, मिट जाएं,
कि मिटना आसान है, जीना  कठिन है।

सजाये हुए घर को यूं ना बिखराओ, 
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है|

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय बी एन मिश्र जी  सादर अभिवादन बेहतरीन भाओं को समाहित करते हुए  उत्तम रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

आदरणीय छोटेलाल जी, रचना पर आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए ह्रदय तल से आभार !

सम्बन्धों की सेज पर खुशबुओं को
सुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।

आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ साहब सुंदर, सार्थक रचना हेतु बधाई स्वीकारें |

आदरणीय नादिर खान जी, रचना पर आपके उत्साहवर्धक टिप्पणी  के लिए ह्रदय तल से आभार !

आदरणीय बृजेंद्रनाथ जी आदाब,

                             बेहद सशक्त और संदेशप्रद रचना । जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है । हृदयतल से हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी, रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया | ह्रदय तल से आभार !

उम्दा कृति

बहुत सही सन्देश और लय संगत 

आदरणीय अजय गुप्ता जी, आपके उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया से रचना कर्म केलिए अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है | ह्रदय तल से आभार !

जनाब ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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