"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-86 (विषय: समर्पण) - Open Books Online2024-03-28T21:48:21Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/86-3?xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noलेखनी व गोष्ठी के प्रति समयन…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10851432022-05-31T18:27:47.516ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>लेखनी व गोष्ठी के प्रति समयनिष्ठ होकर इस तरह यह गोष्ठी भी सफल रही। सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। शुभ रात्रि।</p>
<p>लेखनी व गोष्ठी के प्रति समयनिष्ठ होकर इस तरह यह गोष्ठी भी सफल रही। सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। शुभ रात्रि।</p> मेरी रचना पर आपकी राय/प्रतिक्…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10850972022-05-31T17:58:45.759ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>मेरी रचना पर आपकी राय/प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।</p>
<p>मेरी रचना पर आपकी राय/प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।</p> स्वागत विषयांतर्गत आपकी 'रचना…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10852372022-05-31T17:57:26.861ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>स्वागत विषयांतर्गत आपकी 'रचना' का।</p>
<p>स्वागत विषयांतर्गत आपकी 'रचना' का।</p> वाह। ममता का समर्पण! ममता के…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10850952022-05-31T17:54:44.021ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>वाह। ममता का समर्पण! ममता के प्रति समर्पण (समझौता नहीं)। प्रदत्त विषयांतर्गत बढ़िया मार्मिक लघुकथा। हार्दिक बधाई मुहतरमा रचना भाटिया साहिबा। शीर्षक सामान्य न रखकर कोई नया सोचा जा सकता है। यह समस्या बिन बाप की संतान के साथ ही नहीं तलाक़ की कगार वाले रिश्तों और तलाक पा चुकी माँ और पीड़ित संतान के साथ भी है। माँ बाप.के बीच पिसती संतान के.साथ भी है। ममता का समर्पण कहें या समझौता भी कहें। संतान की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी। यही समर्पण की मंज़िल है। शीर्षक में कोई बिम्ब या प्रतीक लीजिएगा।</p>
<p>वाह। ममता का समर्पण! ममता के प्रति समर्पण (समझौता नहीं)। प्रदत्त विषयांतर्गत बढ़िया मार्मिक लघुकथा। हार्दिक बधाई मुहतरमा रचना भाटिया साहिबा। शीर्षक सामान्य न रखकर कोई नया सोचा जा सकता है। यह समस्या बिन बाप की संतान के साथ ही नहीं तलाक़ की कगार वाले रिश्तों और तलाक पा चुकी माँ और पीड़ित संतान के साथ भी है। माँ बाप.के बीच पिसती संतान के.साथ भी है। ममता का समर्पण कहें या समझौता भी कहें। संतान की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी। यही समर्पण की मंज़िल है। शीर्षक में कोई बिम्ब या प्रतीक लीजिएगा।</p> आ.उस्मानिजी,आपकी चिंता बिलकुल…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10852322022-05-31T15:59:42.912ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आ.उस्मानिजी,आपकी चिंता बिलकुल जायज है।ऐसा मैं भी सोच रहा हूं।आपके द्वारा इंगित सभी बिंदु सार्थक हैं।इस मंच की लघुकथा गोष्ठी में इस तरह की उदासीनता चिंतनीय है। हां,यदि कुछ अन्य कारण हों,तो मैं क्षमा प्रार्थी रहूंगा।</p>
<p>आ.उस्मानिजी,आपकी चिंता बिलकुल जायज है।ऐसा मैं भी सोच रहा हूं।आपके द्वारा इंगित सभी बिंदु सार्थक हैं।इस मंच की लघुकथा गोष्ठी में इस तरह की उदासीनता चिंतनीय है। हां,यदि कुछ अन्य कारण हों,तो मैं क्षमा प्रार्थी रहूंगा।</p> समझौता या समर्पण
"आखिर कब त…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10851382022-05-31T15:57:09.327ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">समझौता या समर्पण </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">"आखिर कब तक उसके आगे झुकती रहोगी? तुम्हारी लाई कोई भी चीज उसे पसंद नहीं आती?उसके एक इशारे पर उस चीज को बदलवा आती हो ?क्या तुम्हारा दिल नहीं करता अपनी मर्जी चलाने का? इतना समझौता क्यों, किसलिए ?उसे छोड़ना तुम्हारे लिए इतना मुश्किल क्यों है?आफिस से लौटते हुए सुनयना ने भावना को लगभग डाँटते हुए कहा।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बहुत देर से चुपचाप सुनती भावना आखिर बोल पड़ी…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">समझौता या समर्पण </span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">"आखिर कब तक उसके आगे झुकती रहोगी? तुम्हारी लाई कोई भी चीज उसे पसंद नहीं आती?उसके एक इशारे पर उस चीज को बदलवा आती हो ?क्या तुम्हारा दिल नहीं करता अपनी मर्जी चलाने का? इतना समझौता क्यों, किसलिए ?उसे छोड़ना तुम्हारे लिए इतना मुश्किल क्यों है?आफिस से लौटते हुए सुनयना ने भावना को लगभग डाँटते हुए कहा।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बहुत देर से चुपचाप सुनती भावना आखिर बोल पड़ी "नहीं, उसे छोड़ना मेरे लिए मुश्किल नहीं है मुश्किल तो है लोगों की तरस खाती निगाहें देखना, बच्चों को बिन बाप की औलाद कहकर बेचारा समझना। और..जिसे तुम समझौता या झुकना समझ रही हो न..वह मेरी ममता के प्रति समर्पण है।"</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p> आदरणीय, हाज़िर हूँ।
tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10849962022-05-31T15:56:43.860ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय, हाज़िर हूँ।</p>
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<p>आदरणीय, हाज़िर हूँ।</p>
<p></p> आभार आ.रचना जी।tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10852312022-05-31T15:56:41.566ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आ.रचना जी।</p>
<p>आभार आ.रचना जी।</p> आदाब। गोष्ठी में हाज़री और टिप…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10852282022-05-31T14:12:16.069ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। गोष्ठी में हाज़री और टिप्पणियों हेतु व मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया। आप सभी की विषयांतर्गत लघुकथाओं की प्रतीक्षा है।</p>
<p>आदाब। गोष्ठी में हाज़री और टिप्पणियों हेतु व मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया। आप सभी की विषयांतर्गत लघुकथाओं की प्रतीक्षा है।</p> आदरणीय मनन कुमार सिंह जी बहुत…tag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:Comment:10850872022-05-31T13:47:33.892ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय मनन कुमार सिंह जी बहुत ख़ूब बादलने बढ़िया व विचारणीय प्रश्न किए। बधाई। </p>
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<p>आदरणीय मनन कुमार सिंह जी बहुत ख़ूब बादलने बढ़िया व विचारणीय प्रश्न किए। बधाई। </p>
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