"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-78 (विषय: 'विजय) - Open Books Online2024-03-28T20:11:09Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/78-4?commentId=5170231%3AComment%3A1070340&feed=yes&xn_auth=noआभार आ.लक्ष्मण भाई।tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10701002021-09-30T17:32:10.848ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आ.लक्ष्मण भाई।</p>
<p>आभार आ.लक्ष्मण भाई।</p> आ. निरुपमा जी, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10704192021-09-30T17:26:27.045Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. निरुपमा जी, सादर अभिवादन । सुंदर कथा हुई है हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. निरुपमा जी, सादर अभिवादन । सुंदर कथा हुई है हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई ओमप्रकाश जी, साद अभिवा…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10700942021-09-30T15:26:24.300Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई ओमप्रकाश जी, साद अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई ओमप्रकाश जी, साद अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10704182021-09-30T15:08:07.650Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।</p>
<p>आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।</p> आ. बबीता बहन, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10705132021-09-30T14:50:32.701Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. बबीता बहन, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. बबीता बहन, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।</p> नमस्कार, 'प्रकाश' साहब कमीशन…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10703422021-09-30T13:32:47.918ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमस्कार, 'प्रकाश' साहब कमीशन का लालच देकर उपभोक्तावाद को प्रश्रय देना, युवाओं को ग़ैर ज़रूरी वस्तुएं खरीदने को प्रोत्साहित कर फिजूलखर्ची को किस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, को रेखांकित करती अच्छी लघुकथा कही आपने !</p>
<p>नमस्कार, 'प्रकाश' साहब कमीशन का लालच देकर उपभोक्तावाद को प्रश्रय देना, युवाओं को ग़ैर ज़रूरी वस्तुएं खरीदने को प्रोत्साहित कर फिजूलखर्ची को किस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, को रेखांकित करती अच्छी लघुकथा कही आपने !</p> आभार आदरणीय उस्मानी जी।tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10703412021-09-30T12:02:48.532ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आदरणीय उस्मानी जी।</p>
<p>आभार आदरणीय उस्मानी जी।</p> आभार आदरणीय चेतन जी।tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10703402021-09-30T12:01:54.429ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आदरणीय चेतन जी।</p>
<p>आभार आदरणीय चेतन जी।</p> आभार आदरणीया रचना जी।tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10704142021-09-30T12:00:09.999ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आदरणीया रचना जी।</p>
<p>आभार आदरणीया रचना जी।</p> लघु कथा ' विजय '
चेतन ग…tag:openbooks.ning.com,2021-09-30:5170231:Comment:10704112021-09-30T10:25:07.122ZNirupmahttps://openbooks.ning.com/profile/Nirupma
<div dir="auto"><div dir="auto">लघु कथा ' विजय '</div>
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<div dir="auto">चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई- न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र…</div>
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<div dir="auto"><div dir="auto">लघु कथा ' विजय '</div>
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<div dir="auto">चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई- न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी।</div>
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<div dir="auto"> मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें और चरखी लेकर सीधे छत पर चला गया और फिर वहीं से उसने वीणा को ऊपर आने के लिए पुकारा। वीणा कुढ़ी-भुनी, बड़बड़ाती हुई, बेमन से छत पर गई। चेतन ने चरखी उसको पकड़ाते हुए लाल बिंदी वाली पतंग खुले आकाश में छोड़ दी। पतंग डोर से बंधी धीरे-धीरे ऊपर जा रही थी। चेतन की पतंग अलग उड़ रही थी, उसे न किसी दूसरे को काटने की तमन्ना थी और न ही किसी दूसरे से प्रतिस्पर्धा। उसकी पतंग, मजबूत हाथों की उंगलियों की पकड़ में, झूमती लहराती अपने में मगन थी।</div>
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<div dir="auto"> वीणा कुछ देर तक चरखी लिए मन ही मन उलझी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करने लगी। अंततः उसको समझ आ गया कि जिस रिश्ते के साथ वह चल पड़ी है, उसके साथ बंधे रहने में ही उसकी अपनी जीवन यात्रा सुरक्षित भी है और मर्यादित भी। विशाल आकाश में तैरते पतंगों के मेले में वीणा ने अपनी लाल बिंदी वाली पतंग ढूंढ ली। वह खुश थी क्योंकि उसने अपनी उलझनों पर विजय पा ली थी।</div>
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<div dir="auto">मौलिक व अप्रकाशित</div>
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