"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-73 - Open Books Online2024-03-29T11:22:15Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/73?id=5170231%3ATopic%3A782384&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय गोपाल सर बहतु ही उम्दा…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867952016-07-23T18:26:19.160ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय गोपाल सर बहतु ही उम्दा ग़ज़ल हुई है इस गंभीर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ </p>
<p>आदरणीय गोपाल सर बहतु ही उम्दा ग़ज़ल हुई है इस गंभीर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ </p> दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात ये…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867052016-07-23T18:21:17.489ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात ये कि आप काफ़िया निर्धारण करने के मूल नियम पर एक बार फिर नज़र डाल लें. वर्ना जब काफ़िया निर्धारण ही स्पष्ट नहीं हुआ तो क्या इक्वा, सिनाद या इता दोष ? चाहे जली इता या खफ़ी इता दोष ? मैं भी इधर एक बार इन नियमों को एक दफ़े फिर से देख लेने का प्रयास करता हूँ. हम फिर से बात करेंगे. </p>
<p>सादर</p>
<p>दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात ये कि आप काफ़िया निर्धारण करने के मूल नियम पर एक बार फिर नज़र डाल लें. वर्ना जब काफ़िया निर्धारण ही स्पष्ट नहीं हुआ तो क्या इक्वा, सिनाद या इता दोष ? चाहे जली इता या खफ़ी इता दोष ? मैं भी इधर एक बार इन नियमों को एक दफ़े फिर से देख लेने का प्रयास करता हूँ. हम फिर से बात करेंगे. </p>
<p>सादर</p> आदरणीय रवि शुक्ल जी , अभी तो…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867042016-07-23T18:07:02.495ZKalipad Prasad Mandalhttps://openbooks.ning.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय रवि शुक्ल जी , अभी तो शुरूयात है ,कुछ गलतियाँ तो होगी ही | आप जैसे शुभाकांक्षियों की कृपा से शायद कुछ कर आगे सकूँ | प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद |</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ल जी , अभी तो शुरूयात है ,कुछ गलतियाँ तो होगी ही | आप जैसे शुभाकांक्षियों की कृपा से शायद कुछ कर आगे सकूँ | प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद |</p>
<p>सादर </p> शुक्रिया जनाब उस्मानी जीtag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867032016-07-23T18:05:31.798ZMOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी)https://openbooks.ning.com/profile/rizwanrockzzz
शुक्रिया जनाब उस्मानी जी
शुक्रिया जनाब उस्मानी जी आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, आप द…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867942016-07-23T17:59:17.343ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, आप देवनागरी और उर्दू लिपियों का सहुलियत के अनुसार घालमेल न करें. मेरा आपसे निवेदन है. वर्ना आप अपनी बात से किसी को संतुष्ट नहीं कर पायेंगे. या तो हम देवनागरी लिपि की विशिष्टताओं को स्वीकारते हुए अरूज़ मानें या उर्दू लिपि के अनुसार संयत हुए अरूज़ को मानें. घालमेल उचित नहीं है.</p>
<p> </p>
<p>आप देवनागरी लिपि में ग़ज़ल कह रहे हैं तो फिर देवनागरी लिपि की सीमाओं या विशिष्टताओं को स्वीकारें. अन्यथा उर्दू में ग़ज़ल कहते हैं और मात्र प्रस्तुतीकरण के लिए देवनागरी लिपि को रख रहे…</p>
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, आप देवनागरी और उर्दू लिपियों का सहुलियत के अनुसार घालमेल न करें. मेरा आपसे निवेदन है. वर्ना आप अपनी बात से किसी को संतुष्ट नहीं कर पायेंगे. या तो हम देवनागरी लिपि की विशिष्टताओं को स्वीकारते हुए अरूज़ मानें या उर्दू लिपि के अनुसार संयत हुए अरूज़ को मानें. घालमेल उचित नहीं है.</p>
<p> </p>
<p>आप देवनागरी लिपि में ग़ज़ल कह रहे हैं तो फिर देवनागरी लिपि की सीमाओं या विशिष्टताओं को स्वीकारें. अन्यथा उर्दू में ग़ज़ल कहते हैं और मात्र प्रस्तुतीकरण के लिए देवनागरी लिपि को रख रहे हैं तो उसे भी स्पष्ट समझ लें. कि ऐसी सूरत में देवनागरी लिपि की छूट स्वीकृत नहीं होगी. आप उर्दू की शाइरी करते हैं तो ’शह्र’ को ’शहर’ आदि कहने की छूट नहीं होगी. देवनागरी लिपि को अपना कर ग़ज़ल को समझने और लिखने वाले यदि उर्दु वालॊं की देखा देखी ’बिरहमन’ आदि लिखेंगे तो यह गलत ही माना जायेगा. </p>
<p></p> दुश्मने क़ौम की पैरवी की तरफ
स…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7869022016-07-23T17:55:39.458ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
दुश्मने क़ौम की पैरवी की तरफ<br />
सब हरे की तरफ, केसरी की तरफ।।<br />
<br />
(जबकि अपने खड़े शत्रु ही की तरफ़।<br />
पक्ष में बोलते राक्षशी की तरफ़।।)<br />
<br />
उम्दा मत्ले से शुरू ग़ज़ल के लिए अतिशय बधाई।<br />
<br />
दो क़दम क्या उठे, रौशनी की तरफ<br />
सौ भवें तन गईं, झोंपड़ी की तरफ<br />
<br />
(उसने नज़रें करीं रौशनी की तरफ़।<br />
दामिनी चल पड़ी फिर उसी की तरफ़)<br />
.<br />
इक बेचारी गई, चाकरी की तरफ<br />
हाथ बढ़ने लगे, ओढ़नी की तरफ<br />
<br />
(आपका शेर ये ज़िन्दगी की तरफ़।<br />
आदमी की हाँ बदनीयती की तरफ़।।)<br />
.<br />
कमतरी की मुनादी शुरू हो गई<br />
कामज़न जब हुआ बढ़तरी की तरफ<br />
<br />
(अल सुबह बादलों ने ढँका आसमां।<br />
उसने…
दुश्मने क़ौम की पैरवी की तरफ<br />
सब हरे की तरफ, केसरी की तरफ।।<br />
<br />
(जबकि अपने खड़े शत्रु ही की तरफ़।<br />
पक्ष में बोलते राक्षशी की तरफ़।।)<br />
<br />
उम्दा मत्ले से शुरू ग़ज़ल के लिए अतिशय बधाई।<br />
<br />
दो क़दम क्या उठे, रौशनी की तरफ<br />
सौ भवें तन गईं, झोंपड़ी की तरफ<br />
<br />
(उसने नज़रें करीं रौशनी की तरफ़।<br />
दामिनी चल पड़ी फिर उसी की तरफ़)<br />
.<br />
इक बेचारी गई, चाकरी की तरफ<br />
हाथ बढ़ने लगे, ओढ़नी की तरफ<br />
<br />
(आपका शेर ये ज़िन्दगी की तरफ़।<br />
आदमी की हाँ बदनीयती की तरफ़।।)<br />
.<br />
कमतरी की मुनादी शुरू हो गई<br />
कामज़न जब हुआ बढ़तरी की तरफ<br />
<br />
(अल सुबह बादलों ने ढँका आसमां।<br />
उसने सोचा ही था बस ख़ुशी की तरफ़।।)<br />
.<br />
दो बरस आखिरन हो गए रूबरू<br />
जब दिसंबर बढ़ा जनवरी की तरफ<br />
<br />
(मैं यहाँ फेल हूँ अर्थ से दूर हूँ।<br />
एक रिक्वेस्ट है आप ही की तरफ़))<br />
.<br />
जो गया वो गया, जो बचा सो बचा<br />
बारहा देखना क्या बही की तरफ<br />
<br />
(खोया पाया जुटाया बचाया है क्या।<br />
जोड़ना क्या मुनाफा किसी की तरह।)<br />
.<br />
वार करने से डरती रही वो छुरी<br />
पीठ हरदम रही जिस छुरी की तरफ<br />
<br />
(अब भी बाकी है थोड़ी शराफत लगे।<br />
वर्ना ज़िंदा न होते अभी की तरह)<br />
.<br />
जाविदानी रही मौत से आशिक़ी<br />
हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ<br />
<br />
(मौत ही है सुकूँ का असल फ़लसफ़ा।<br />
हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ़।।)<br />
<br />
.<br />
टिकटिकी बाँध कर ताकती जो मुझे<br />
तक रहा हूँ उसी टिकटिकी की तरफ<br />
<br />
(ये नज़र ही तो बन्धन का कारक है जी<br />
ये नज़र टिक गयी हुश्न ही की तरफ़।) आदरणीय योगराज प्रभाकर जी परिव…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867022016-07-23T17:55:28.893ZKalipad Prasad Mandalhttps://openbooks.ning.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय योगराज प्रभाकर जी परिवर्तन इस प्रकार चाहत हूँ</p>
<p> </p>
<p>राह को मोड़ दो दोस्ती की तरफ </p>
<p>जा रहे हो वहीँ दुश्मनी की तरफ ......यहाँ आत्म विश्लेषण में खुद को तुम जैसे संबोधन किया गया है | राह का तात्पर्य जाने की दिशा से है |</p>
<p> दूसरा शेर राज नेता और देश के लिए कहा गया है | इससे पहला का कोई सम्बन्ध नहीं है</p>
<p>"राह में " बदले…</p>
<p>आदरणीय योगराज प्रभाकर जी परिवर्तन इस प्रकार चाहत हूँ</p>
<p> </p>
<p>राह को मोड़ दो दोस्ती की तरफ </p>
<p>जा रहे हो वहीँ दुश्मनी की तरफ ......यहाँ आत्म विश्लेषण में खुद को तुम जैसे संबोधन किया गया है | राह का तात्पर्य जाने की दिशा से है |</p>
<p> दूसरा शेर राज नेता और देश के लिए कहा गया है | इससे पहला का कोई सम्बन्ध नहीं है</p>
<p>"राह में " बदले "राह पर" होना चाहिए ----आप सही है</p>
<p></p>
<p>जिंदगी माँगती थी सदा कुछ करूँ</p>
<p>हम ने देखा नहीं जिंदगी की तरफ</p>
<p></p>
<p>हम ने सोचा कभी उद्यमी की तरह </p>
<p>कर्म मेरा लिया आलसी की तरफ</p>
<p>आम को हो गया भूल का इल्म अब</p>
<p>राज नेता बढे गन्दगी की तरफ | </p>
<p></p>
<p></p>
<p>हम ने तो ओ बी ओ ज्वाइन किया है सिखने लिए आदरणीय | आपसे सहयोग पाने की आशा है |</p>
<p>सादर </p>
<p> </p> आपका आभार आदरणीय सतविन्द्र जी।tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867932016-07-23T17:52:54.850ZManan Kumar singhhttps://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
आपका आभार आदरणीय सतविन्द्र जी।
आपका आभार आदरणीय सतविन्द्र जी। सादर वन्दन श्रद्धेय।ग़ज़ल।के सा…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7869012016-07-23T17:37:35.733Zसतविन्द्र कुमार राणाhttps://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
सादर वन्दन श्रद्धेय।ग़ज़ल।के साथ साथ रचना पर हुई सारी टिप्पणियाँ पढ़ना अत्यंत लाभदायी रहेगा।सादर
सादर वन्दन श्रद्धेय।ग़ज़ल।के साथ साथ रचना पर हुई सारी टिप्पणियाँ पढ़ना अत्यंत लाभदायी रहेगा।सादर मोहतरम जनाब हसन साहिब , ग़ज़ल म…tag:openbooks.ning.com,2016-07-23:5170231:Comment:7867012016-07-23T17:37:25.239ZTasdiq Ahmed Khanhttps://openbooks.ning.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मोहतरम जनाब हसन साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया</p>
<p>मोहतरम जनाब हसन साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया</p>