"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-69 - Open Books Online2024-03-29T15:37:41Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/69?commentId=5170231%3AComment%3A752406&feed=yes&xn_auth=noमैं गजल लिखती नहीं पहला प्रया…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7534122016-03-26T18:28:56.629ZDr.varsha choubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/Drvarshachoubey
मैं गजल लिखती नहीं पहला प्रयास में कृपया सुधार हेतु निर्देश देकर मार्गदर्शन करने की कृपा करें|
मैं गजल लिखती नहीं पहला प्रयास में कृपया सुधार हेतु निर्देश देकर मार्गदर्शन करने की कृपा करें| फालतू आज समझकर जो मुझे काट रह…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7531942016-03-26T18:27:08.364Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>फालतू आज समझकर जो मुझे काट रहा</p>
<p> मेरी ही छाँव में बचपन था गुजारा उसने</p>
<p> </p>
<p>बात होने लगी बिन बात हमारी अक्सर</p>
<p>बज्म में नाम लिया जबसे हमारा उसने</p>
<p> </p>
<p>झुक गया खुद ही शज़र देख लपकती आरी </p>
<p>खूब आसान किया काम तुम्हारा उसने</p>
<p></p>
<p>अदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत अच्छी गज़ल कही आपने बहुत मुबारकबाद .....</p>
<p>फालतू आज समझकर जो मुझे काट रहा</p>
<p> मेरी ही छाँव में बचपन था गुजारा उसने</p>
<p> </p>
<p>बात होने लगी बिन बात हमारी अक्सर</p>
<p>बज्म में नाम लिया जबसे हमारा उसने</p>
<p> </p>
<p>झुक गया खुद ही शज़र देख लपकती आरी </p>
<p>खूब आसान किया काम तुम्हारा उसने</p>
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<p>अदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत अच्छी गज़ल कही आपने बहुत मुबारकबाद .....</p> मैं तो इस तरह भी सीखने की जुग…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7533162016-03-26T18:27:05.304ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
मैं तो इस तरह भी सीखने की जुगत में हूँ,ये लोगों की रचनाओं को पढ़ने का अच्छा बहाना होता है। कमियाँ खोजने के लिए पढ़ना(recieving), फिर कमी पकड़ना(thinking), और आगे खुद उस कमी को करने से बचना(refinining the behaviour)
मैं तो इस तरह भी सीखने की जुगत में हूँ,ये लोगों की रचनाओं को पढ़ने का अच्छा बहाना होता है। कमियाँ खोजने के लिए पढ़ना(recieving), फिर कमी पकड़ना(thinking), और आगे खुद उस कमी को करने से बचना(refinining the behaviour) बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हृदय…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7533152016-03-26T18:22:22.520ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय नादिर ख़ान साहब।
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय नादिर ख़ान साहब। कमज़ोर ग़ज़ल, अध्ययन की ओर इशारा…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7532702016-03-26T18:21:11.754ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
कमज़ोर ग़ज़ल, अध्ययन की ओर इशारा कर रही।<br/>
<br/>
प्रयास के लिए बधाई।<br />
<br />
रिप्लाई बन्द इसलिए यहीं एडिट कर जोड़ रहा हूँ-<br />
<br />
पहली बात मैंने भी यहीं सीखा है, बहुत गल्तियां करके सीखा है।<br />
दूसरी बात "ग़ज़ल की बातें" पेज यहीं ओबीओ पर है, पढ़ें। सब सही हो जाएगा।<br />
<br />
प्रथम प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई
कमज़ोर ग़ज़ल, अध्ययन की ओर इशारा कर रही।<br/>
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प्रयास के लिए बधाई।<br />
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रिप्लाई बन्द इसलिए यहीं एडिट कर जोड़ रहा हूँ-<br />
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पहली बात मैंने भी यहीं सीखा है, बहुत गल्तियां करके सीखा है।<br />
दूसरी बात "ग़ज़ल की बातें" पेज यहीं ओबीओ पर है, पढ़ें। सब सही हो जाएगा।<br />
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प्रथम प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई सुंदर अशआर के लिए बहुत बहुत ब…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7534112016-03-26T18:20:30.677ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
सुंदर अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अजीत शर्मा आकाश जी।
सुंदर अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अजीत शर्मा आकाश जी। बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए ब…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7531932016-03-26T18:19:25.938ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मोहन बेगोवाल साहब।
बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मोहन बेगोवाल साहब। सुझाव बढ़िया है सर, मगर अब तो…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7534102016-03-26T18:17:11.624ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
सुझाव बढ़िया है सर, मगर अब तो संकलन में ही सम्भव होगा।<br />
<br />
वैसे एक सुधार मैंने किया है, निम्नवत-<br />
<br />
मैंने देखे थे सपन ढ़ेर से जिसकी ख़ातिर।<br />
उन्हीं ख़ाबों का जनाज़ा भी सवारा उसने।।
सुझाव बढ़िया है सर, मगर अब तो संकलन में ही सम्भव होगा।<br />
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वैसे एक सुधार मैंने किया है, निम्नवत-<br />
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मैंने देखे थे सपन ढ़ेर से जिसकी ख़ातिर।<br />
उन्हीं ख़ाबों का जनाज़ा भी सवारा उसने।। बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7531922016-03-26T18:17:01.000ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सूबे सिंह जी
बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सूबे सिंह जी फिर मुझे होकर मजबूर पुकारा उस…tag:openbooks.ning.com,2016-03-26:5170231:Comment:7531912016-03-26T18:16:04.867ZDr.varsha choubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/Drvarshachoubey
फिर मुझे होकर मजबूर पुकारा उसने<br />
क्यूँ किया था फिर इस तरह किनारा उसने।<br />
<br />
टूटना था मिटना था जब हमको यूँ ही<br />
बेवजह क्यूँ मुझको फिर सजाया उसने।<br />
<br />
सीख जाता खुद ही गिरकर संभलना मै<br />
क्यूँ किया साथ चले आने का इशारा उसने।<br />
<br />
इस तरह कातर होकर उसने देखा मुझको<br />
मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने।<br />
<br />
दर्द मेरा उस को ही न दिखाओ यारों<br />
इश्क की डगर पर मुझे उतारा जिसने।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
फिर मुझे होकर मजबूर पुकारा उसने<br />
क्यूँ किया था फिर इस तरह किनारा उसने।<br />
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टूटना था मिटना था जब हमको यूँ ही<br />
बेवजह क्यूँ मुझको फिर सजाया उसने।<br />
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सीख जाता खुद ही गिरकर संभलना मै<br />
क्यूँ किया साथ चले आने का इशारा उसने।<br />
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इस तरह कातर होकर उसने देखा मुझको<br />
मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने।<br />
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दर्द मेरा उस को ही न दिखाओ यारों<br />
इश्क की डगर पर मुझे उतारा जिसने।<br />
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मौलिक व अप्रकाशित