"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-64 (विषय: प्रयास) - Open Books Online2024-03-29T01:28:39Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/64-5?commentId=5170231%3AComment%3A1013891&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noधन्यवाद आदरणीय मधु जी , आभार…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141312020-07-31T18:18:19.038ZBarkha Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/BarkhaShukla
<p>धन्यवाद आदरणीय मधु जी , आभार , सादर </p>
<p>धन्यवाद आदरणीय मधु जी , आभार , सादर </p> आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी बे…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141302020-07-31T18:17:38.428ZMadhu Passi 'महक'https://openbooks.ning.com/profile/MadhuPassi
<p>आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी बेहतरीन लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई। आपने पंजाब के नवयुवकों का विदेश के लिए जो पागलपन है उसको बखूबी दर्शाया है। </p>
<p>आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी बेहतरीन लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई। आपने पंजाब के नवयुवकों का विदेश के लिए जो पागलपन है उसको बखूबी दर्शाया है। </p> बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय उस…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141292020-07-31T18:17:10.859ZBarkha Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/BarkhaShukla
<p>बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,मैंने लालच बुरी बला शीर्षक दिया था , ध्यान दिलाने के लिए आभार , सादर </p>
<p>बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,मैंने लालच बुरी बला शीर्षक दिया था , ध्यान दिलाने के लिए आभार , सादर </p> बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा! सच क…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10140922020-07-31T17:54:52.573ZMadhu Passi 'महक'https://openbooks.ning.com/profile/MadhuPassi
<p>बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा! सच कहा आपने जननी कभी साथ नहीं छोड़ती। आपको हार्दिक बधाई अर्चना त्रिपाठी जी। </p>
<p>बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा! सच कहा आपने जननी कभी साथ नहीं छोड़ती। आपको हार्दिक बधाई अर्चना त्रिपाठी जी। </p> आदरणीय शेख शाहज़ाद उस्मानी जी…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141282020-07-31T17:48:09.999ZMadhu Passi 'महक'https://openbooks.ning.com/profile/MadhuPassi
<p>आदरणीय शेख शाहज़ाद उस्मानी जी सादर नमस्कार ।बहुत ही भावपूर्ण व अर्थपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें। </p>
<p>आदरणीय शेख शाहज़ाद उस्मानी जी सादर नमस्कार ।बहुत ही भावपूर्ण व अर्थपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें। </p> बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141272020-07-31T17:44:48.839ZMadhu Passi 'महक'https://openbooks.ning.com/profile/MadhuPassi
<p>बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय बरखा शुक्ला जी </p>
<p>बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय बरखा शुक्ला जी </p> सादर नमस्कार। पलायन की सनक/अन…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10140912020-07-31T17:38:28.818ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>सादर नमस्कार। पलायन की सनक/अनुकरण पर बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई रवि भसीन 'शाहिद' साहिब। आदरणीय सर जी ने विस्तार से सब समझा ही दिया है। /ट्राई अगैन/.. वाली कहानी है या कविता? दरअसल मैने एक पाठ्यक्रम में अंग्रेज़ी में पढ़ी है कविता।</p>
<p>सादर नमस्कार। पलायन की सनक/अनुकरण पर बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई रवि भसीन 'शाहिद' साहिब। आदरणीय सर जी ने विस्तार से सब समझा ही दिया है। /ट्राई अगैन/.. वाली कहानी है या कविता? दरअसल मैने एक पाठ्यक्रम में अंग्रेज़ी में पढ़ी है कविता।</p> आदाब। चिर-परिचित कथानक व कथ्य…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10140902020-07-31T17:26:54.802ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। चिर-परिचित कथानक व कथ्य पर एक नये तरीक़े से बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया बरखा शुक्ला जी। शीर्षक देना आप भूल गईं। शेष आदरणीय सर योगराज जी कि मार्गदर्शक टिप्पणी में कहा जा चुका है।</p>
<p>आदाब। चिर-परिचित कथानक व कथ्य पर एक नये तरीक़े से बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया बरखा शुक्ला जी। शीर्षक देना आप भूल गईं। शेष आदरणीय सर योगराज जी कि मार्गदर्शक टिप्पणी में कहा जा चुका है।</p> मूल से ब्याज प्यारा होता है,…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10140892020-07-31T17:14:02.264Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>मूल से ब्याज प्यारा होता है, किसी ने सच ही कहा है. यही आपकी लघुकथा का भी सार है. इस उत्तम लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई उस्मानी जी.</p>
<p>मूल से ब्याज प्यारा होता है, किसी ने सच ही कहा है. यही आपकी लघुकथा का भी सार है. इस उत्तम लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई उस्मानी जी.</p> सुख भरे दिन जीते रे भैया (लघु…tag:openbooks.ning.com,2020-07-31:5170231:Comment:10141262020-07-31T17:05:26.138ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>सुख भरे दिन जीते रे भैया (लघुकथा) :</p>
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<p>"बाबूजी, हम धो देते हैं ये बर्तन भी! आज फ़िर क्यों इन झूठे बर्तनों में खाना ख़ुद परोस रहे हो!"<br></br>"सम्मो बाई, तुम्हारा काम हो चुका न! जाओ अब घर जाओ!"<br></br>"नहीं बाबूजी, आज तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा कि जानबूझकर तुम अपने पोते के झूठे बर्तनों में ही खाना-पीना क्यों करते हो?"<br></br>"क्यों परेशान होती हो? ये मेरी अपनी ख़ुशी की बात है... तुम नहीं समझोगी!"<br></br>"न बताओ... हम भी इंसान हैं.. सब समझ रहे हैं... पाँच साल से काम कर रही हूँ यहाँ! तुम अपने पोते…</p>
<p>सुख भरे दिन जीते रे भैया (लघुकथा) :</p>
<p></p>
<p>"बाबूजी, हम धो देते हैं ये बर्तन भी! आज फ़िर क्यों इन झूठे बर्तनों में खाना ख़ुद परोस रहे हो!"<br/>"सम्मो बाई, तुम्हारा काम हो चुका न! जाओ अब घर जाओ!"<br/>"नहीं बाबूजी, आज तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा कि जानबूझकर तुम अपने पोते के झूठे बर्तनों में ही खाना-पीना क्यों करते हो?"<br/>"क्यों परेशान होती हो? ये मेरी अपनी ख़ुशी की बात है... तुम नहीं समझोगी!"<br/>"न बताओ... हम भी इंसान हैं.. सब समझ रहे हैं... पाँच साल से काम कर रही हूँ यहाँ! तुम अपने पोते प्रिंस से बहुत प्यार करते हो न! तभी तो उसके बेडरूम में बार-बार ताक-झाँक भी करते रहते हो!... जबकि किसी को भी तुम से बात करने तक की फ़ुरसत नहीं!"<br/>"अब तुम समझ ही गई हो... तो सुनो! बेटा-बहू तो नौकरी पर चले जाते हैं! बीवी का साथ जब से छूटा... कोई मुझसे बात तक नहीं करता ढंग से! सोसाइटी के लोगों से मेरा मिलना-जुलना किसी को पसंद नहीं...सुबह पार्क में जाना, वहाँ पुराने दोस्त माफ़िक़ नौकर से मिलना और बातें करना भी किसी को पसंद नहीं.... लाड़ले प्रिंस को भी! जबकि बचपन में प्रिंस मेरे साथ ही एक ही थाली में खाना खाया करता था। सुबह मेरे साथ टहलने जाता था। अब जवाँ हो गया है... अब सब मॉडर्न हो गये हैं न! सबकी अपनी-अपनी लाईफ है! अकेले खाना खाया नहीं जाता मुझसे! प्रिंस का बचा हुआ खाना खाकर उसका साथ महसूस करने की कोशिश करता हूँ... या फ़िर उसी की झूठी थाली में खाना खा कर!"<br/>"हे भगवान! ऐसा पागलपन कभी साहब या मालकिन ने देख लिया तो आफ़त आ जायेगी तुम पर बाबूजी!"<br/>"उनके पास फ़ुरसत ही कहाँ... जो देख-समझ पायें! तुम हरग़िज़ न बताना कोई बात उनको!"<br/>"नहीं बतायेंगे... लेकिन ये भी बता ही दो कि तुम प्रिंस के कमरे में ताक-झाँक क्यों करते रहते हो...जबकि किसी को पसंद नहीं! सब डाँटते-फटकारते रहते हैं तुम्हें!"<br/>"प्रिंस के माँ-बाप को नहीं पता कि वह आजकल कितना परेशान चल रहा है! दरवाज़े बंद कर अंदर क्या करता है... सिर्फ़ प्रिंस को पता है और मुझे! ज़माना ख़राब है... लोग बंद कमरे में ख़ुदक़ुशी तक करने लगे हैं ज़रा से सदमे पर!.. इसके अलावा... मुझे ही उसके स्मार्ट फ़ोनों और लैपटॉप की चिंता करनी पड़ती है। रिचार्ज़ करने की बात हो या पलंग पर से नीचे गिरने की बात। पढ़ाई से थक कर सिरहाने ही रख कर सो जाता है... मुझे उसकी सेहत की फ़िक्र रहती है सम्मो बाई!"<br/>"तुम उसकी चिंता करते रहते हो... जबकि उसको तुमसे कोई मतलब नहीं! पैसे भर माँगने आता है तुम्हारे पास वो!"<br/>"आता तो है न! उसमें भी मुझे सुख मिलता है। उसकी चिंता करने से उसके नज़दीक बने रहने की कोशिश करता हूँ बाई!.. इस दौर में दादा इतना तो कर सकते हैं न पोते के लिए!"</p>
<p><br/>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>