"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-63 - Open Books Online2024-03-28T19:57:16Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/63?commentId=5170231%3AComment%3A701659&feed=yes&xn_auth=noवाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह... क्या क्य…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7021072015-09-26T18:29:47.655ZD.K.Nagaich 'Roshan'https://openbooks.ning.com/profile/DKNagaich
<p>वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह... क्या क्या उम्दा ख़याल के अशआर निकाले हैं जनाब,,, वाह्ह्ह्ह.. बहुत खूब.. </p>
<p>वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह... क्या क्या उम्दा ख़याल के अशआर निकाले हैं जनाब,,, वाह्ह्ह्ह.. बहुत खूब.. </p> आदरणीय जयनित जी चलते चलते बढ़ि…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018062015-09-26T18:29:44.117Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय जयनित जी चलते चलते बढ़िया ग़ज़ल होते होते रह गई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमायें</p>
<p></p>
<p><span>बिना तेरे तो मुझे ज़िन्दगी सज़ा ही लगे</span><br></br><span>हो इक चिराग सदा जो बुझा-बुझा ही लगे......... बेहतरीन मतला </span></p>
<p><br></br><span>मरीज़ इश्क़ का हो जाए कोई शख्स तो फिर</span><br></br><span>उसे दवा न लगे औ' नहीं दुआ ही लगे............ बढ़िया शेर </span><br></br><br></br><span>समझ सका न मैं, आखिर गुनाह क्या है मेरा</span><br></br><span>मिले वो जब भी मुझे,मुझसे वो खफ़ा ही लगे.........…</span></p>
<p>आदरणीय जयनित जी चलते चलते बढ़िया ग़ज़ल होते होते रह गई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमायें</p>
<p></p>
<p><span>बिना तेरे तो मुझे ज़िन्दगी सज़ा ही लगे</span><br/><span>हो इक चिराग सदा जो बुझा-बुझा ही लगे......... बेहतरीन मतला </span></p>
<p><br/><span>मरीज़ इश्क़ का हो जाए कोई शख्स तो फिर</span><br/><span>उसे दवा न लगे औ' नहीं दुआ ही लगे............ बढ़िया शेर </span><br/><br/><span>समझ सका न मैं, आखिर गुनाह क्या है मेरा</span><br/><span>मिले वो जब भी मुझे,मुझसे वो खफ़ा ही लगे......... वाह </span><br/><br/><span>घुटन सी होती है मुझको ये तन्हा ज़िन्दगी से</span><br/><span>ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे............ बढ़िया गिरह लगाईं है </span></p>
<p></p>
<p><strong>जो शेर एक भी और आप कह लिए 'जयनित' </strong></p>
<p><strong>कलाम ये भी मुकम्मल हुआ हुआ ही लगे </strong></p>
<p></p>
<p>एक और शेर कह देते तो एक मुकम्मल ग़ज़ल हो जाती. अभी आप ग़ज़ल में संशोधन कर एक शेर जोड़ सकते है. </p>
<p>बहरहाल इस चलते चलते सेक्शन की बढ़िया प्रस्तुति पर बधाई सादर </p> ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे का 6…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018052015-09-26T18:28:29.148Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span>ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे का 63 वाँ अंक समाप्ति की ओर है आयोजन की सफलता की सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई.</span></p>
<p><span>ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे का 63 वाँ अंक समाप्ति की ओर है आयोजन की सफलता की सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई.</span></p> न तो दवा ही लगे है न अब दुआ ह…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7020162015-09-26T18:27:23.222ZD.K.Nagaich 'Roshan'https://openbooks.ning.com/profile/DKNagaich
<p>न तो दवा ही लगे है न अब दुआ ही लगे<br/>ये मर्ज कैसा है जिसका न कुछ पता ही लगे.</p>
<p><br/>बहुत ही उम्दा अशआर कहे हैं जनाब...वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह.... ये शायद हुस्न-ए-मतला रहा होगा... अपनी जगह से नीचे हो गया... बहुत ही पसंद आया.</p>
<p>न तो दवा ही लगे है न अब दुआ ही लगे<br/>ये मर्ज कैसा है जिसका न कुछ पता ही लगे.</p>
<p><br/>बहुत ही उम्दा अशआर कहे हैं जनाब...वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह.... ये शायद हुस्न-ए-मतला रहा होगा... अपनी जगह से नीचे हो गया... बहुत ही पसंद आया.</p> बिना तेरे तो मुझे ज़िन्दगी सज़ा…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018042015-09-26T18:26:27.550Zजयनित कुमार मेहताhttps://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
<p>बिना तेरे तो मुझे ज़िन्दगी सज़ा ही लगे<br/> हो इक चिराग सदा जो बुझा-बुझा ही लगे<br/>
-<br/>
मरीज़ इश्क़ का हो जाए कोई शख्स तो फिर<br/>
उसे दवा न लगे औ' नहीं दुआ ही लगे<br/>
-<br/>
समझ सका न मैं, आखिर गुनाह क्या है मेरा<br/>
मिले वो जब भी मुझे,मुझसे वो खफ़ा ही लगे<br/>
-<br/>
न पूछ मुझसे तू आलम ये बेखुदी का मेरी<br />
जो बेवफाई भी उनकी मुझे अदा ही लगे<br />
-<br />
घुटन सी होती है मुझको ये तन्हा ज़िन्दगी से<br/>
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे<br/>
(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>बिना तेरे तो मुझे ज़िन्दगी सज़ा ही लगे<br/> हो इक चिराग सदा जो बुझा-बुझा ही लगे<br/>
-<br/>
मरीज़ इश्क़ का हो जाए कोई शख्स तो फिर<br/>
उसे दवा न लगे औ' नहीं दुआ ही लगे<br/>
-<br/>
समझ सका न मैं, आखिर गुनाह क्या है मेरा<br/>
मिले वो जब भी मुझे,मुझसे वो खफ़ा ही लगे<br/>
-<br/>
न पूछ मुझसे तू आलम ये बेखुदी का मेरी<br />
जो बेवफाई भी उनकी मुझे अदा ही लगे<br />
-<br />
घुटन सी होती है मुझको ये तन्हा ज़िन्दगी से<br/>
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे<br/>
(मौलिक व अप्रकाशित)</p> हरेक मोड़ पे इक मोड़ आ रहा है न…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018922015-09-26T18:23:04.874Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p><span>हरेक मोड़ पे इक मोड़ आ रहा है नया ,</span><br/><span>ये ज़ीस्त फिर भी निभाती हुई वफ़ा ही लगे |</span><br/><br/><span>पढ़ो क़ुरआन या गीता के श्लोक को ही पढ़ो ,</span><br/><span>किसी भी चश्मे से देखो ख़ुदा ख़ुदा ही लगे |</span></p>
<p></p>
<p><span><span>बहुत बढ़िया </span><span>गज़ल कही आदर्णीय अरुण जी हर शेर लाजवाब है ।</span></span></p>
<p><span>हरेक मोड़ पे इक मोड़ आ रहा है नया ,</span><br/><span>ये ज़ीस्त फिर भी निभाती हुई वफ़ा ही लगे |</span><br/><br/><span>पढ़ो क़ुरआन या गीता के श्लोक को ही पढ़ो ,</span><br/><span>किसी भी चश्मे से देखो ख़ुदा ख़ुदा ही लगे |</span></p>
<p></p>
<p><span><span>बहुत बढ़िया </span><span>गज़ल कही आदर्णीय अरुण जी हर शेर लाजवाब है ।</span></span></p> आo नादिर जी,बेहतरीन ग़ज़ल के ल…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018912015-09-26T18:19:48.812Zमोहन बेगोवालhttps://openbooks.ning.com/profile/DrMohanlal
<p> आo नादिर जी,बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई कबूल करें , हर शे'र लाजवाब हुआ </p>
<p>मै खुद को कैसे बताऊँ के कौन है मेरा</p>
<p>बुरा हो वक्त जब हर कोई भागता ही लगे -उम्दा शे'र </p>
<p> </p>
<p></p>
<p> आo नादिर जी,बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई कबूल करें , हर शे'र लाजवाब हुआ </p>
<p>मै खुद को कैसे बताऊँ के कौन है मेरा</p>
<p>बुरा हो वक्त जब हर कोई भागता ही लगे -उम्दा शे'र </p>
<p> </p>
<p></p> आदरणीय नादिर खान सर इस शानदा…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018012015-09-26T18:18:22.472Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय नादिर खान सर इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
<p></p>
<p>हर इक दुआ मेरी उनको तो बददुआ ही लगे</p>
<p>मदद को हाथ बढ़ाऊँ वो भी खता ही लगे................ बढ़िया मतला </p>
<p> </p>
<p>अजीब दौर से गुज़रा है वो ज़माने में</p>
<p>मेरी वफ़ा में भी उसको शक ओ शुबा ही लगे........ वाह वाह बेहतरीन शेर </p>
<p> </p>
<p>घुटन बहुत है ज़रूरत है ताज़गी की बहुत</p>
<p>ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे........... जबरदस्त गिरह लगाईं है </p>
<p> </p>
<p>नहीं है कोई शिकायत मुझे खुदा से…</p>
<p>आदरणीय नादिर खान सर इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
<p></p>
<p>हर इक दुआ मेरी उनको तो बददुआ ही लगे</p>
<p>मदद को हाथ बढ़ाऊँ वो भी खता ही लगे................ बढ़िया मतला </p>
<p> </p>
<p>अजीब दौर से गुज़रा है वो ज़माने में</p>
<p>मेरी वफ़ा में भी उसको शक ओ शुबा ही लगे........ वाह वाह बेहतरीन शेर </p>
<p> </p>
<p>घुटन बहुत है ज़रूरत है ताज़गी की बहुत</p>
<p>ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे........... जबरदस्त गिरह लगाईं है </p>
<p> </p>
<p>नहीं है कोई शिकायत मुझे खुदा से कभी</p>
<p>ये बात और है तेरी कमी सज़ा ही लगे................. वाह बहुत खूब </p>
<p> </p>
<p>बहार आ गई हरसू तेरे आने से यहाँ</p>
<p>हरेक फूल चमन का खिला हुआ ही लगे............. बहुत बेहतरीन शेर वाह वाह </p>
<p> </p>
<p>मै खुद को कैसे बताऊँ के कौन है मेरा</p>
<p>बुरा हो वक्त जब हर कोई भागता ही लगे.............. <strong>जब</strong> को <strong>जो</strong> किया जाना चाहिए शायद </p>
<p> </p>
<p>पुछल्ला भी बहुत बढ़िया है </p>
<p></p>
<p>मेरा वज़ूद भी मुझको जुदा जुदा ही लगे </p>
<p>हरेक बात पे सबकी शक ओ शुबा ही लगे</p>
<p><br/>इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. सादर</p> वाह्ह्ह्ह्ह...बहुत ही अच्छे अ…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7019372015-09-26T18:18:12.193ZD.K.Nagaich 'Roshan'https://openbooks.ning.com/profile/DKNagaich
<p>वाह्ह्ह्ह्ह...बहुत ही अच्छे अशआर कहे हैं आपने... गिरह बहुत ही कमाल की रही.. अभी थोड़ी सी मश्क़ और चाहिए कहीं कहीं पर :) </p>
<p></p>
<p>वाह्ह्ह्ह्ह...बहुत ही अच्छे अशआर कहे हैं आपने... गिरह बहुत ही कमाल की रही.. अभी थोड़ी सी मश्क़ और चाहिए कहीं कहीं पर :) </p>
<p></p> आदरणीय नीरज जी बढ़िया ग़ज़ल हुई…tag:openbooks.ning.com,2015-09-26:5170231:Comment:7018902015-09-26T18:17:10.700Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय नीरज जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है इस प्रस्तुति पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
<p><span> </span></p>
<p>सौदा ए इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे........... हमेशा इश्क में नुकसान भी नफा ही लगे</p>
<p>वो जो करे बेवफाई तो भी वफा ही लगे ।............ जो बेवफाई भी करते मगर वफ़ा ही लगे </p>
<p> </p>
<p>हुआ बीमार बहुत याद आई माँ मुझको .............हुआ <strong>बिमार</strong> बहुत याद आई माँ मुझको</p>
<p>दवा जहां न करे काम वहाँ दुआ ही लगे । ........ दवा जहां न करे काम <strong>बस</strong> दुआ ही…</p>
<p>आदरणीय नीरज जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है इस प्रस्तुति पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
<p><span> </span></p>
<p>सौदा ए इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे........... हमेशा इश्क में नुकसान भी नफा ही लगे</p>
<p>वो जो करे बेवफाई तो भी वफा ही लगे ।............ जो बेवफाई भी करते मगर वफ़ा ही लगे </p>
<p> </p>
<p>हुआ बीमार बहुत याद आई माँ मुझको .............हुआ <strong>बिमार</strong> बहुत याद आई माँ मुझको</p>
<p>दवा जहां न करे काम वहाँ दुआ ही लगे । ........ दवा जहां न करे काम <strong>बस</strong> दुआ ही लगे </p>
<p> </p>
<p>बहुत उदास यहाँ है मेरी तरह अंधेरे...................... बहुत उदास यहाँ है <strong>अँधेरे मेरी तरह </strong></p>
<p>ये खिड़की खोलो जरा सुबह की हवा ही लगे।............ये खिड़की खोलो जरा सुबह की हवा ही लगे।</p>
<p> </p>
<p>उसे सुने सब वह जो कहे किसी से मगर........... उसे सुने है <strong>सभी वो </strong>कहे किसी से <strong>अगर</strong></p>
<p>कहे कभी कुछ कोई उसे बुरा ही लगे।............. <strong>मगर कहे जो उसे हम तो बस बुरा ही लगे </strong></p>
<p></p>
<p>यूं तो मेरे दिल के पास रहता है हरदम<strong>............. यूं दिल के पास तो रहता मेरे कोई हरदम </strong></p>
<p>कभी रहूँ उसके पास तो जुदा ही लगे।.............. <strong>मगर करीब भी होकर मुझे जुदा ही लगे</strong> </p>
<p></p>
<p> </p>
<p>इस ग़ज़ल के प्रयास पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. सादर</p>