"ओ बी ओ लाइव महाउत्सव" अंक-57 में सम्मिलित सभी रचनाएँ - Open Books Online2024-03-28T14:27:39Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/57-3?id=5170231%3ATopic%3A675734&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय योगराज जी, आयोजन के त्…tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6764332015-07-13T08:08:27.032ZSachin Devhttps://openbooks.ning.com/profile/SachinDev
<p>आदरणीय योगराज जी, आयोजन के त्वरित संकन के लिए हार्दिक नमन आपको ! </p>
<p>महोत्सव मैं प्रस्तुत मेरी रचना को कृपया इस प्रकार से संशोधित करने की अनुकम्पा करें !</p>
<p> </p>
<p>तराजू / तुला / पलड़ा / पर चंद दोहे</p>
<p>-------------------------------------------------------</p>
<p> </p>
<p>जीवन का तो जानिये, यही सरल आधार</p>
<p>एक तराजू पर तुले, सुखों-दुखों के भार II 1 II</p>
<p> </p>
<p>शब्द प्रेम के बोलिये, शब्द बड़े अनमोल </p>
<p>लगे जिया पर शूल से, तोल मोल कर बोल II 2 II</p>
<p> </p>
<p>धन-…</p>
<p>आदरणीय योगराज जी, आयोजन के त्वरित संकन के लिए हार्दिक नमन आपको ! </p>
<p>महोत्सव मैं प्रस्तुत मेरी रचना को कृपया इस प्रकार से संशोधित करने की अनुकम्पा करें !</p>
<p> </p>
<p>तराजू / तुला / पलड़ा / पर चंद दोहे</p>
<p>-------------------------------------------------------</p>
<p> </p>
<p>जीवन का तो जानिये, यही सरल आधार</p>
<p>एक तराजू पर तुले, सुखों-दुखों के भार II 1 II</p>
<p> </p>
<p>शब्द प्रेम के बोलिये, शब्द बड़े अनमोल </p>
<p>लगे जिया पर शूल से, तोल मोल कर बोल II 2 II</p>
<p> </p>
<p>धन- दौलत की बाट से, कभी मित्र मत तोल </p>
<p>बिना मोल मिलता मगर, होता है अनमोल II 3 II</p>
<p> </p>
<p>मंदिर में इंसाफ के, एक तराजू हाथ </p>
<p>भेदभाव करता नहीं, रहता सच के साथ II 4 II</p>
<p> </p>
<p>जीवन में तू पाप का, मत बढ़ने दे भार</p>
<p>नेकी करके खोल ले, स्वर्गलोक के द्धार II 5 II</p>
<p> </p>
<p>देख तराजू की जरा, महिमा अपरम्पार</p>
<p>इस पर ही सोना तुले, इस पर ही भंगार II 6 II</p>
<p> </p>
<p>आप तुला से लीजिये, जीवन का ये ज्ञान </p>
<p>तालमेल ऐसा रखें, सब हों एक समान II 7 II </p>
<p><b> </b></p>
<p><b>-----------------------------------------------------------</b></p>
<p><b> ( मौलिक व अप्रकाशित/संशोधित )</b></p>
<p><b> </b></p> आदरणीय योगराज भाईजी
संकलन का…tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6763732015-07-13T07:52:35.544Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय योगराज भाईजी </p>
<p>संकलन कार्य के लिए हार्दिक आभार शुभकामनाएँ, आपने अपनी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निबाही। विधा के अनुरूप संशोधन का प्रयास किया है । संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें। संकलित रचनाओं को क्रम [ 1 2 3 ] दे दें तो और सुविधाजनक हो जाएगी। </p>
<p>सादर </p>
<p> </p>
<p><b>दोहे</b> - तुला पलड़ा </p>
<p> </p>
<p>आत्मा की आवाज़ सुन, गुरु पर कर विश्वास।</p>
<p>पाप पुण्य को तौलने, यही तुला रख पास॥</p>
<p> </p>
<p>अगर उपेक्षित वृद्धजन , होगा बेड़ा ग़र्क़।</p>
<p>पलड़ा भारी पाप…</p>
<p>आदरणीय योगराज भाईजी </p>
<p>संकलन कार्य के लिए हार्दिक आभार शुभकामनाएँ, आपने अपनी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निबाही। विधा के अनुरूप संशोधन का प्रयास किया है । संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें। संकलित रचनाओं को क्रम [ 1 2 3 ] दे दें तो और सुविधाजनक हो जाएगी। </p>
<p>सादर </p>
<p> </p>
<p><b>दोहे</b> - तुला पलड़ा </p>
<p> </p>
<p>आत्मा की आवाज़ सुन, गुरु पर कर विश्वास।</p>
<p>पाप पुण्य को तौलने, यही तुला रख पास॥</p>
<p> </p>
<p>अगर उपेक्षित वृद्धजन , होगा बेड़ा ग़र्क़।</p>
<p>पलड़ा भारी पाप का, पहुँचा देगा नर्क॥</p>
<p> </p>
<p>दूल्हों की मंडी सजी, सभी युवक अनमोल।</p>
<p>ठोक बजाकर देख फिर, कितना देगा बोल॥</p>
<p> </p>
<p>लेकर बिटिया साथ में, आये निर्धन तात।</p>
<p>जो दहेज चाहे नहीं, वो लाये बारात॥</p>
<p> </p>
<p>तुला बिना ही तौलते, पाप पुण्य का भार।</p>
<p>लेखा जोखा जीव का, रखते हैं कर्तार॥</p>
<p> </p>
<p>तोल मोलकर बोलिये, हर रिश्ता अनमोल।</p>
<p>कटु शब्दों की मार से, रिश्ते डाँवाँडोल॥</p> दो दिन से बाहर गई हुई थी अभी…tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6762712015-07-13T05:17:12.783Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>दो दिन से बाहर गई हुई थी अभी नेट पर आई हूँ प्रतिक्रिया में देरी के लिए खेद है|आ० योगराज जी,इस सुन्दर महकते हुए गुलदस्ते को सजाने के लिए आपको हार्दिक आभार ,आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी रचनाकारों को दिल से बधाई .</p>
<p>दो दिन से बाहर गई हुई थी अभी नेट पर आई हूँ प्रतिक्रिया में देरी के लिए खेद है|आ० योगराज जी,इस सुन्दर महकते हुए गुलदस्ते को सजाने के लिए आपको हार्दिक आभार ,आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी रचनाकारों को दिल से बधाई .</p> अब देखिये।tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6761842015-07-13T05:03:13.013Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>अब देखिये।</p>
<p>अब देखिये।</p> श्रद्धेय प्रभाकारजी, मेरी संश…tag:openbooks.ning.com,2015-07-13:5170231:Comment:6763532015-07-13T04:37:26.055Zरमेश कुमार चौहानhttps://openbooks.ning.com/profile/Rameshkumarchauhan
<p>श्रद्धेय प्रभाकारजी, मेरी संशोशित रचना प्रतिस्थाति करते हुये शायद कोई चूक हो गई है, जिससे ना ही मूल रचना है, ना ही संशोधित रचाना । सादर सूचनार्थ</p>
<p>श्रद्धेय प्रभाकारजी, मेरी संशोशित रचना प्रतिस्थाति करते हुये शायद कोई चूक हो गई है, जिससे ना ही मूल रचना है, ना ही संशोधित रचाना । सादर सूचनार्थ</p> बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया रे…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6763342015-07-12T20:54:14.903Zविनय कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया रेखा मोहन जी..</p>
<p>बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया रेखा मोहन जी..</p> जय हो, आदरणीय योगराज भाईजी..…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6761482015-07-12T17:35:10.923ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>जय हो, आदरणीय योगराज भाईजी.. !<br/>तब तो मेरे लिए दो बातें होंगी. या, तो ये आपके ’निर्देशों’ की बिना पर ’सुधर’ कर अपनी रचनाधर्मिता का पेंदा पा चुकी होगी. या, भैया-दीदी-चाचा-मामा करती हुई अपना समय खराब करती रहेगी.</p>
<p>वैसे, पहले वाले ऑप्शन पर मुझे जाने क्यों भयंकर संदेह है.. लेकिन, यहभी है, कि मुझे असीम प्रसन्नता होगी, यदि मेरा यह ’भयंकर संदेह’ निर्मूल हुआ .... ;-)))<br/><br/></p>
<p>जय हो, आदरणीय योगराज भाईजी.. !<br/>तब तो मेरे लिए दो बातें होंगी. या, तो ये आपके ’निर्देशों’ की बिना पर ’सुधर’ कर अपनी रचनाधर्मिता का पेंदा पा चुकी होगी. या, भैया-दीदी-चाचा-मामा करती हुई अपना समय खराब करती रहेगी.</p>
<p>वैसे, पहले वाले ऑप्शन पर मुझे जाने क्यों भयंकर संदेह है.. लेकिन, यहभी है, कि मुझे असीम प्रसन्नता होगी, यदि मेरा यह ’भयंकर संदेह’ निर्मूल हुआ .... ;-)))<br/><br/></p> आ० सौरभ भाई जी, आपकी शामत आई…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6760842015-07-12T17:27:20.513Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आ० सौरभ भाई जी, आपकी शामत आई है क्या ? किससे उलझ रहे है ? इस लड़की के "दिमाक" को "दिमाग" करने में मुझे पूरे छह महीने लग गए थे। :))))))))))</p>
<p>आ० सौरभ भाई जी, आपकी शामत आई है क्या ? किससे उलझ रहे है ? इस लड़की के "दिमाक" को "दिमाग" करने में मुझे पूरे छह महीने लग गए थे। :))))))))))</p> चलिये हो गएन ढेर बतकूचन..
अब…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6760832015-07-12T17:22:58.845ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>चलिये हो गएन ढेर बतकूचन..</p>
<p>अब सभ बोल-बचन, बहाना-कहानी बिसरा के बस पढंत-लिखंत और लिखंत-पढ़ंत ! एतने भर ! नाहीं, त सभ किया-कराया समय बरबादी के अलावा कुच्छॊ नाहीं होईगी. <br/>जय-जय <br/><br/></p>
<p>चलिये हो गएन ढेर बतकूचन..</p>
<p>अब सभ बोल-बचन, बहाना-कहानी बिसरा के बस पढंत-लिखंत और लिखंत-पढ़ंत ! एतने भर ! नाहीं, त सभ किया-कराया समय बरबादी के अलावा कुच्छॊ नाहीं होईगी. <br/>जय-जय <br/><br/></p> "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-5…tag:openbooks.ning.com,2015-07-12:5170231:Comment:6761312015-07-12T16:29:54.993ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p><span>"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-57 के सफल आयोजन की प्रस्तुतियों के त्वरित संकलन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय प्रभाकर साहब. सादर प्रणाम.</span></p>
<p><span>"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-57 के सफल आयोजन की प्रस्तुतियों के त्वरित संकलन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय प्रभाकर साहब. सादर प्रणाम.</span></p>