"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 55 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-28T10:54:17Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/55-1?commentId=5170231%3AComment%3A613948&feed=yes&xn_auth=noजैसे इम्तहान के बाद नतीजों का…tag:openbooks.ning.com,2015-02-08:5170231:Comment:6155082015-02-08T04:33:51.209Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>जैसे इम्तहान के बाद नतीजों का इंतज़ार रहता है, वैसे ही हमें भी इस संकलन की प्रतीक्षा रहती है. आदरणीय राना जी इतनी व्यस्तता के बाद भी इस श्रमसाध्य कार्य को त्रुटियों को इंगित कर अंजाम देते हैं वह प्रणम्य है.</p>
<p>जैसे इम्तहान के बाद नतीजों का इंतज़ार रहता है, वैसे ही हमें भी इस संकलन की प्रतीक्षा रहती है. आदरणीय राना जी इतनी व्यस्तता के बाद भी इस श्रमसाध्य कार्य को त्रुटियों को इंगित कर अंजाम देते हैं वह प्रणम्य है.</p> आदरणीय राणा प्रताप जी, मुशायर…tag:openbooks.ning.com,2015-02-07:5170231:Comment:6150422015-02-07T06:24:15.551Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p><span>आदरणीय राणा प्रताप जी, मुशायरे की ग़ज़लों का संकलन और लाल - हरा करने का श्रमसाध्य कार्य नवसिखियों के लिए तो बहुत उपयोगी है इसके लिए आप वाकी साधुवाद के पात्र है | मैंने कुछ प्रयास किया है अगर सुधार हो पया हो तो अवलोकन कर संशोधित करे | सादर -</span></p>
<p>रखे दिलों में मुहब्बत, न शर्मसार करे </p>
<p>उदारवाद सदा ही सभी से प्यार करे |</p>
<p></p>
<p>रखे अमानत जिसे गर छुड़ा भी न सके</p>
<p>रहे नहीं मलाल जिसे न आप प्यार करे |</p>
<p></p>
<p> गरीब लोग नहीं चाहते धनी खैरात दे</p>
<p>सभी अमीर…</p>
<p><span>आदरणीय राणा प्रताप जी, मुशायरे की ग़ज़लों का संकलन और लाल - हरा करने का श्रमसाध्य कार्य नवसिखियों के लिए तो बहुत उपयोगी है इसके लिए आप वाकी साधुवाद के पात्र है | मैंने कुछ प्रयास किया है अगर सुधार हो पया हो तो अवलोकन कर संशोधित करे | सादर -</span></p>
<p>रखे दिलों में मुहब्बत, न शर्मसार करे </p>
<p>उदारवाद सदा ही सभी से प्यार करे |</p>
<p></p>
<p>रखे अमानत जिसे गर छुड़ा भी न सके</p>
<p>रहे नहीं मलाल जिसे न आप प्यार करे |</p>
<p></p>
<p> गरीब लोग नहीं चाहते धनी खैरात दे</p>
<p>सभी अमीर नहीं चोर आप विश्वास करे |</p>
<p></p>
<p> हिसाब कौन करे आप भी नहीं जानते</p>
<p>यकीन हो जिसको भी वही तैयार करे ।</p>
<p></p>
<p>तमाम रात बितादे यही गर अलाव जले</p>
<p>न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे | </p> आदरणीय भाई राणा प्रताप जी को…tag:openbooks.ning.com,2015-02-05:5170231:Comment:6143782015-02-05T03:41:53.375Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आदरणीय भाई राणा प्रताप जी को इस संकलन के लिए हार्दिक बधाई....</p>
<p>आदरणीय भाई राणा प्रताप जी को इस संकलन के लिए हार्दिक बधाई....</p> आदरणीय राणा सर त्वरित संकलन…tag:openbooks.ning.com,2015-02-04:5170231:Comment:6143542015-02-04T16:28:37.623Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आदरणीय राणा सर त्वरित संकलन के माध्यम से आपने हम लोगों का मार्ग दर्शन किया । लिखने के बाद अकसर जेहन मे संशय सा होता है हालांकि कुछ जानकारी तो सुधिजनों के कोमेंट्स से पता चल जाती है परंतु फिर भी संकलन का इंतज़ार रहता है जैसा लगता है मानो रिज़ल्ट का इंतज़ार रहता है ।सादर .....</p>
<p>आदरणीय राणा सर त्वरित संकलन के माध्यम से आपने हम लोगों का मार्ग दर्शन किया । लिखने के बाद अकसर जेहन मे संशय सा होता है हालांकि कुछ जानकारी तो सुधिजनों के कोमेंट्स से पता चल जाती है परंतु फिर भी संकलन का इंतज़ार रहता है जैसा लगता है मानो रिज़ल्ट का इंतज़ार रहता है ।सादर .....</p> बहुत कम समय में मुशायरे का सं…tag:openbooks.ning.com,2015-02-04:5170231:Comment:6143462015-02-04T16:01:39.304ZKrishnasingh Pelahttps://openbooks.ning.com/profile/KrishnasinghPela
बहुत कम समय में मुशायरे का संकलन प्रस्तुत कर सभी को लाभन्वित किया है आदरणीय राणा प्रताप जी ने । अत: आपको हार्दिक बधाइ ! ग़ज़ल में जो दोष रह गये हैं उन्हें महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ । यदि संशोधन संभव हो तो मैं पुनः आप से निवेदन करूँगा कि इस ग़ज़ल के चौथे व पाँचवे शेर को निम्नानुसार संशोधन करने की कृपा करें :<br></br>
<br></br>
चौथे शेर का विकल्प:-<br></br>
वो शख़्स ग़ैर नहीं है उसे झिझक कैसी ?<br></br>
वो इत्मीनान से सीने में मेरे वार करे<br></br>
<br></br>
पाँचवे शेर का विकल्प:-<br></br>
दिखाई दाग दिए चाँद निहारा जब…
बहुत कम समय में मुशायरे का संकलन प्रस्तुत कर सभी को लाभन्वित किया है आदरणीय राणा प्रताप जी ने । अत: आपको हार्दिक बधाइ ! ग़ज़ल में जो दोष रह गये हैं उन्हें महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ । यदि संशोधन संभव हो तो मैं पुनः आप से निवेदन करूँगा कि इस ग़ज़ल के चौथे व पाँचवे शेर को निम्नानुसार संशोधन करने की कृपा करें :<br/>
<br/>
चौथे शेर का विकल्प:-<br/>
वो शख़्स ग़ैर नहीं है उसे झिझक कैसी ?<br/>
वो इत्मीनान से सीने में मेरे वार करे<br/>
<br/>
पाँचवे शेर का विकल्प:-<br/>
दिखाई दाग दिए चाँद निहारा जब भी<br/>
वो आज कैसे स्वयं पर भी एेतबार करे<br/>
<br/>
छठा शेर दोषमुक्त ही है संकलन में परंतु 'उसकी'और 'उनकी' का प्रयोग कुछ अरुचिकर लग रहा है । अत: इस का भी विकल्प रखता हूँ :-<br/>
<br/>
सभी का ख़्वाब है औलाद हो तो ऐसी हो<br/>
कि उनकी नाक उठाके क़ुतुबमीनार करे<br/>
<br/>
प्रस्तुत विकल्पों से ग़ज़ल दोषमुक्त हो सकती है या नहीं, इतना जानने के लिए मैं व्यग्र हूँ, कृपया संशय निवारण करें । एक साथ सभी ग़ज़लों को पढ़ने का ए…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6139682015-02-03T17:26:57.217ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>एक साथ सभी ग़ज़लों को पढ़ने का एक अलग ही आनन्द है. संकलन के लिए हार्दिक बधाई. <br/><br/></p>
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<p>एक साथ सभी ग़ज़लों को पढ़ने का एक अलग ही आनन्द है. संकलन के लिए हार्दिक बधाई. <br/><br/></p>
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<div style="display: none;" id="__hggasdgjhsagd_once"></div> संकलन मेरे लिए मात्राओं के सी…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6141452015-02-03T13:22:49.753Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span><strong>संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है</strong>-----</span>बिलकुल सही कहा आदरणीय दिनेश भाई जी, मात्राओं का अभ्यास करने के लिए मैंने इस बार खुद संकलन कर तक्तीअ करने का प्रयास किया था. </p>
<p><span><strong>संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है</strong>-----</span>बिलकुल सही कहा आदरणीय दिनेश भाई जी, मात्राओं का अभ्यास करने के लिए मैंने इस बार खुद संकलन कर तक्तीअ करने का प्रयास किया था. </p> आ० राणा प्रताप जी,तरही मुशायर…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6139482015-02-03T13:16:25.813Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>आ० राणा प्रताप जी,तरही मुशायरे की ग़ज़लों के संकलन न्यायसंगत विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करने पर आपको हार्दिक बधाई. सभी ग़ज़लकारों और आपको आयोजन की सफलता पर दिल से बहुत- बहुत मुबारकबाद. </p>
<p>आ० राणा प्रताप जी,तरही मुशायरे की ग़ज़लों के संकलन न्यायसंगत विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करने पर आपको हार्दिक बधाई. सभी ग़ज़लकारों और आपको आयोजन की सफलता पर दिल से बहुत- बहुत मुबारकबाद. </p> संकलन मेरे लिए मात्राओं के सी…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6140522015-02-03T13:14:44.706Zदिनेश कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है, OBO का सदस्य बनने के बाद से ही पिछले कुछ संकलनों को अच्छी तरह पढ़ा है। काफी सहायता मिलती है।इस बार भी मिली। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी।<br />
ये कहके आधी रात को चले हैं सोने चराग़.... इस मिसरे को पढ़ने में नाम मात्र दिक्कत आती है शायद।
संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है, OBO का सदस्य बनने के बाद से ही पिछले कुछ संकलनों को अच्छी तरह पढ़ा है। काफी सहायता मिलती है।इस बार भी मिली। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी।<br />
ये कहके आधी रात को चले हैं सोने चराग़.... इस मिसरे को पढ़ने में नाम मात्र दिक्कत आती है शायद। आदरणीय राणा प्रताप भाई , एक ह…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6141392015-02-03T13:01:55.265Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय राणा प्रताप भाई , एक ही महीने में दूसरी बार आपकी लगन का परिचय मिला । बहुत बहुत साधुवाद । एक और तरही मुशयरा के सफल आयोजन और इस संकलन के लिये बहुत बधाइयाँ ।</p>
<p>आदरणीय राणा प्रताप भाई , एक ही महीने में दूसरी बार आपकी लगन का परिचय मिला । बहुत बहुत साधुवाद । एक और तरही मुशयरा के सफल आयोजन और इस संकलन के लिये बहुत बधाइयाँ ।</p>