प्रीत क पहुनवा - Open Books Online2024-03-28T21:31:43Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:798695?groupUrl=bhojpuri_sahitya&commentId=5170231%3AComment%3A798995&groupId=5170231%3AGroup%3A2833&feed=yes&xn_auth=noराउरा के सादर आभार ।tag:openbooks.ning.com,2016-09-10:5170231:Comment:7993932016-09-10T10:29:41.941ZPRAMOD SRIVASTAVAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRAMODSRIVASTAVA
<p>राउरा के सादर आभार ।</p>
<p>राउरा के सादर आभार ।</p> जै जै ।tag:openbooks.ning.com,2016-09-10:5170231:Comment:7992932016-09-10T10:28:55.412ZPRAMOD SRIVASTAVAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRAMODSRIVASTAVA
<p>जै जै ।</p>
<p>जै जै ।</p> भावो से ओत प्रोत इस रचना के…tag:openbooks.ning.com,2016-09-10:5170231:Comment:7993352016-09-10T05:17:53.802ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<table border="0" cellspacing="0" width="576">
<tbody><tr><td height="20" align="left" width="576"><p>भावो से ओत प्रोत इस रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद i </p>
<p>.सादर</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<tbody><tr><td height="20" align="left" width="576"><p>भावो से ओत प्रोत इस रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद i </p>
<p>.सादर</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table> आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी,…tag:openbooks.ning.com,2016-09-09:5170231:Comment:7992192016-09-09T17:44:42.698ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी, रउआ एह मंच पर बनल रहीं आ रचनाकर्म के कूल्हि पहलू प निकहे धेयान बनवले रहीं. सभ बिन्दु एकैगो करत बुझात चल जाई.</p>
<p>जै जै </p>
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<p>आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी, रउआ एह मंच पर बनल रहीं आ रचनाकर्म के कूल्हि पहलू प निकहे धेयान बनवले रहीं. सभ बिन्दु एकैगो करत बुझात चल जाई.</p>
<p>जै जै </p>
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<p></p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, राउर…tag:openbooks.ning.com,2016-09-09:5170231:Comment:7989952016-09-09T17:28:58.198ZPRAMOD SRIVASTAVAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRAMODSRIVASTAVA
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, राउर सूझाव पढि के जियरा गदगदाइ गइल बा।तनि अउरि खोलि के समझइतीं अपना मे सुधारे खातिर अउर सहुलियत मिलि जाइत। राहि देखावे खातिर आभार । </p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, राउर सूझाव पढि के जियरा गदगदाइ गइल बा।तनि अउरि खोलि के समझइतीं अपना मे सुधारे खातिर अउर सहुलियत मिलि जाइत। राहि देखावे खातिर आभार । </p> आदरणीय प्रमोद भाई, राउर पहिल…tag:openbooks.ning.com,2016-09-09:5170231:Comment:7988592016-09-09T08:02:51.017ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय प्रमोद भाई, राउर पहिल रचना देख रहल बानीं का हम ? बाकिर नेह आ छोह के निकहा रसधार बहवले बानीं रउआ. गीत पक्ष के कमनीयता आ मुलामियत त बड़ले बा राउर एह रचना में नैसर्गिक उछाह बड़ुए जवन एह भासा के बड़हन तागत हऽ. बस एगो निहोरा बा. उमेद बड़ुए जे रउआ साहित्यिक सुझाव का नजर से देखत आ सँकारत ओह के मान देबि. गीत जब साहित्यिक हो जाले त लोकगीत से तनिका फरक बेवहार करे लागेले. तब शिल्पपक्ष प धेयान दिहल उचित बुझाए लागेला. रउआ एह दिसाईं गँभीरता से सोचत रचनात्मक कोरसिस आ रचना-अभ्यास करत रहब.</p>
<p>दिल से…</p>
<p>आदरणीय प्रमोद भाई, राउर पहिल रचना देख रहल बानीं का हम ? बाकिर नेह आ छोह के निकहा रसधार बहवले बानीं रउआ. गीत पक्ष के कमनीयता आ मुलामियत त बड़ले बा राउर एह रचना में नैसर्गिक उछाह बड़ुए जवन एह भासा के बड़हन तागत हऽ. बस एगो निहोरा बा. उमेद बड़ुए जे रउआ साहित्यिक सुझाव का नजर से देखत आ सँकारत ओह के मान देबि. गीत जब साहित्यिक हो जाले त लोकगीत से तनिका फरक बेवहार करे लागेले. तब शिल्पपक्ष प धेयान दिहल उचित बुझाए लागेला. रउआ एह दिसाईं गँभीरता से सोचत रचनात्मक कोरसिस आ रचना-अभ्यास करत रहब.</p>
<p>दिल से धन्नबाद आ शुभकामना..</p>
<p>जै जै</p>
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