कविता की विकास यात्रा : नयी कविता, गीत और नवगीत (भाग -१) // --सौरभ - Open Books Online2024-03-29T02:13:37Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:776690?commentId=5170231%3AComment%3A803680&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,नमस्क…tag:openbooks.ning.com,2016-09-26:5170231:Comment:8036802016-09-26T10:28:08.245ZKalipad Prasad Mandalhttps://openbooks.ning.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,नमस्कार ! "कविता की विकास यात्रा' पढ़ते वक्त ऐसा लग रहा था कि यह इंसान की विकास यात्रा पढ़ रहा हूँ और हो क्यों न ? इंसान की अभिव्यक्ति ही तो उसे औरों से श्रष्ट बनाती है | इंसान में पल्लवित सभी सहज प्रवृत्ति --<span>आक्रोश, विद्रोह, विरोध, अस्वीकृति, खीझ, व्यंग्य, रोष, आतंक, तनाव, अवसाद, संत्रास, विवशता, संकट, पीड़ा, आत्महत्या, आत्मनिर्वासन, आत्मरति, श्रम के परायेपन, .....आदि का सम्प्रेसन का माध्यम नाट्यकाव्य , गद्य काव्य और पद्य की सभी विधाएं हैं |इसके बिना मनुष्य…</span></p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,नमस्कार ! "कविता की विकास यात्रा' पढ़ते वक्त ऐसा लग रहा था कि यह इंसान की विकास यात्रा पढ़ रहा हूँ और हो क्यों न ? इंसान की अभिव्यक्ति ही तो उसे औरों से श्रष्ट बनाती है | इंसान में पल्लवित सभी सहज प्रवृत्ति --<span>आक्रोश, विद्रोह, विरोध, अस्वीकृति, खीझ, व्यंग्य, रोष, आतंक, तनाव, अवसाद, संत्रास, विवशता, संकट, पीड़ा, आत्महत्या, आत्मनिर्वासन, आत्मरति, श्रम के परायेपन, .....आदि का सम्प्रेसन का माध्यम नाट्यकाव्य , गद्य काव्य और पद्य की सभी विधाएं हैं |इसके बिना मनुष्य मनुष्य नहीं रह जाता | यह शोधात्मक आलेख संग्रहनीय है | शोध कर्मियों के लिए अत्यंत उपयोगी है | हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर </span></p> प्रणाम आ० सौरभ जी
गीत की विक…tag:openbooks.ning.com,2016-09-25:5170231:Comment:8037432016-09-25T18:55:57.738ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>प्रणाम आ० सौरभ जी </p>
<p>गीत की विकास यात्रा के किसी एन्साइक्लोपीडिया को पढ़ लिया जैसे इस आलेख को पढ़ कर... बहुत खूबसूरती से गीत के उद्भव, प्रारूप, विकास यात्रा, गीत की अपेक्षाएं, सब कुछ सम्मिलित किया है आपने..</p>
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<p>शायद एक बिंदु पर पहले भी मंच के किन्ही पन्नों में चर्चा हो चुकी है आपसे, लेकिन एक अरसा बीत जाने पर मेरी स्पष्टता उस बिंदु विशेष पर कुछ धूमिल हो गयी है..कृपया पुनः प्रकाश डालियेगा </p>
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<p><span>//इसके प्रारूपों में मात्र शब्द ही नहीं, बल्कि गणित शास्त्र के मान्य…</span></p>
<p>प्रणाम आ० सौरभ जी </p>
<p>गीत की विकास यात्रा के किसी एन्साइक्लोपीडिया को पढ़ लिया जैसे इस आलेख को पढ़ कर... बहुत खूबसूरती से गीत के उद्भव, प्रारूप, विकास यात्रा, गीत की अपेक्षाएं, सब कुछ सम्मिलित किया है आपने..</p>
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<p>शायद एक बिंदु पर पहले भी मंच के किन्ही पन्नों में चर्चा हो चुकी है आपसे, लेकिन एक अरसा बीत जाने पर मेरी स्पष्टता उस बिंदु विशेष पर कुछ धूमिल हो गयी है..कृपया पुनः प्रकाश डालियेगा </p>
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<p><span>//इसके प्रारूपों में मात्र शब्द ही नहीं, बल्कि गणित शास्त्र के मान्य और स्वीकृत गणितीय-चिह्न भी कविता का मुख्य भाग बन गये हैं जिनको ध्वनियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया ही नहीं जा सकता// </span></p>
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<p>इस रिसर्च बेस्ड विस्तृत और गहन आलेख के लिए धन्यवाद आदरणीय </p>
<p>सादर </p> आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपको…tag:openbooks.ning.com,2016-09-12:5170231:Comment:7997582016-09-12T15:20:04.556ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा. और मेरी समझ आपको मान्य हुई, इस हेतु आपका सादर आभारी हूँ. </p>
<p>आप इसी आलेख का दूसरा भाग भी देखें. आपके सुधी मंतव्य से मुझे दिशा भी मिलेगी और आपकी सलाहों से मुझमें अपेक्षित सुधार भी होगा. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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<p>आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा. और मेरी समझ आपको मान्य हुई, इस हेतु आपका सादर आभारी हूँ. </p>
<p>आप इसी आलेख का दूसरा भाग भी देखें. आपके सुधी मंतव्य से मुझे दिशा भी मिलेगी और आपकी सलाहों से मुझमें अपेक्षित सुधार भी होगा. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> 1-मानवीय विकासगाथा में काव्य…tag:openbooks.ning.com,2016-09-11:5170231:Comment:7997252016-09-11T05:49:04.556Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>1-मानवीय विकासगाथा में काव्य का प्रादुर्भाव मानव के लगातार सांस्कारिक होते जाने और संप्रेषणीयता के क्रम में गहन से गहनतर तथा लगातार सुगठित होते जाने का परिणाम है-------------- आ० लगातार संस्कारिक होते जाने की बात मार्मिक और ध्यातव्य है . <br></br>2-भाव-संप्रेषण की वह शाब्दिक दशा जो मानवीय बुद्धि के परिप्रेक्ष्य में मानवीय संवेदना को तथ्यात्मक रूप से अभि कालांतर में आज कविता पठनीय हो गयी है | इसके प्रारूपों में मात्र शब्द ही नहीं, बल्कि गणित शास्त्र के मान्य और स्वीकृत गणितीय-चिह्न भी कविता का…</p>
<p>1-मानवीय विकासगाथा में काव्य का प्रादुर्भाव मानव के लगातार सांस्कारिक होते जाने और संप्रेषणीयता के क्रम में गहन से गहनतर तथा लगातार सुगठित होते जाने का परिणाम है-------------- आ० लगातार संस्कारिक होते जाने की बात मार्मिक और ध्यातव्य है . <br/>2-भाव-संप्रेषण की वह शाब्दिक दशा जो मानवीय बुद्धि के परिप्रेक्ष्य में मानवीय संवेदना को तथ्यात्मक रूप से अभि कालांतर में आज कविता पठनीय हो गयी है | इसके प्रारूपों में मात्र शब्द ही नहीं, बल्कि गणित शास्त्र के मान्य और स्वीकृत गणितीय-चिह्न भी कविता का मुख्य भाग बन गये हैं जिनको ध्वनियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया ही नहीं जा सकता | अतः कविता श्रव्य मात्र रह ही नहीं गयी है | अपितु, यह विचारों की अति गहन इकाई भी हो चुकीव्यक्त करे, कविता होती है------- भावुकता का अर्थवान स्वरूप जहाँ कविकर्म है वहीं उसकी शाब्दिक परिणति कविता है-------------------------------------कविता की यह परिभाषा आधुनिक है और' मिथ' को तोडती है </p>
<p>भावुक अभिव्यक्ति या भाव-उच्छृंखलता कभी कविता नहीं हो सकती-----------------------सत्य कहा आदरणीय</p>
<p>4-अनुभूति की उच्च अवस्था के पहले भाव-साधना तथा शब्द-साधना के घोर तप से गुजरना होता है |--------------बिलकुल दुरुस्त</p>
<p>बहुत कुछ क्हना चा---ह रहा था पर शायद स्पेस की सीमा ख़त्म हो गयी है ---इस बेहतरीन आलेख के लिए मेरी बधाई सादर .</p> आप सभी को जिनने इस आलेख के इस…tag:openbooks.ning.com,2016-09-06:5170231:Comment:7981042016-09-06T07:46:37.223ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आप सभी को जिनने इस आलेख के इस पहले भाग को पढ़ा, और अपने सहमति साझा की, उनके अनुमोदन के प्रति हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>अपने तात्कालिक ही नहीं पाठकीय विचार भी साझा किये होते तो मुझे भी लाभ हुआ होता. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
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<p>आप सभी को जिनने इस आलेख के इस पहले भाग को पढ़ा, और अपने सहमति साझा की, उनके अनुमोदन के प्रति हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>अपने तात्कालिक ही नहीं पाठकीय विचार भी साझा किये होते तो मुझे भी लाभ हुआ होता. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, कविता की विका…tag:openbooks.ning.com,2016-09-03:5170231:Comment:7976672016-09-03T07:47:12.204Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, कविता की विकास यात्रा को सटीक समझाने के लिए हार्दिक आभार आपका. सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, कविता की विकास यात्रा को सटीक समझाने के लिए हार्दिक आभार आपका. सादर </p> आदरणीय सौरभ जी, आपके इस आलेख…tag:openbooks.ning.com,2016-07-16:5170231:Comment:7845832016-07-16T16:19:23.582Zजयनित कुमार मेहताhttps://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय सौरभ जी, आपके इस आलेख से कविता गीत आदि की मेरी समझ और परिपक्व हुई। बहुत बहुत धन्यवाद आपको।
आदरणीय सौरभ जी, आपके इस आलेख से कविता गीत आदि की मेरी समझ और परिपक्व हुई। बहुत बहुत धन्यवाद आपको। आदरणीय सौरभ सर
इस लेख के माध…tag:openbooks.ning.com,2016-06-30:5170231:Comment:7807652016-06-30T09:53:31.350ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय सौरभ सर </p>
<p>इस लेख के माध्यम से बहुत सारी जानकारी आपने साझा की है / इस सारगर्भित लेख में गहन चिंतन है / इस लेख के लिए मेरी तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर </p>
<p>इस लेख के माध्यम से बहुत सारी जानकारी आपने साझा की है / इस सारगर्भित लेख में गहन चिंतन है / इस लेख के लिए मेरी तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ </p>