हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ - Open Books Online2024-03-28T16:40:45Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:584633?groupUrl=chhand&commentId=5170231%3AComment%3A585162&groupId=5170231%3AGroup%3A156482&feed=yes&xn_auth=noहरिगीतिका छंद (२२१२,२२१२,२२१२…tag:openbooks.ning.com,2019-12-06:5170231:Comment:9975472019-12-06T12:19:13.753ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>हरिगीतिका छंद (२२१२,२२१२,२२१२,२२१२ )पर हम सबने यहीं मंच पर बहुत गंभीर रचनाएँ की हैं.. और आगे भी करते रहेंगे <br/><br/>आदरणीय सौरभ जी, २१२२, २१२२, २१२२, २१२२ ये वार्णिक क्रम कौन से छंद का है, क्या इस बारे में आप जानकारी दे सकते हैं ??</p>
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<p>सादर </p>
<p>हरिगीतिका छंद (२२१२,२२१२,२२१२,२२१२ )पर हम सबने यहीं मंच पर बहुत गंभीर रचनाएँ की हैं.. और आगे भी करते रहेंगे <br/><br/>आदरणीय सौरभ जी, २१२२, २१२२, २१२२, २१२२ ये वार्णिक क्रम कौन से छंद का है, क्या इस बारे में आप जानकारी दे सकते हैं ??</p>
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<p>सादर </p> नमन श्रद्धेय सौरभ सर!बहुत् ही…tag:openbooks.ning.com,2016-08-02:5170231:Comment:7900402016-08-02T12:23:19.593Zसतविन्द्र कुमार राणाhttps://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
नमन श्रद्धेय सौरभ सर!बहुत् ही महत्वपूर्ण जानकारी एवं उम्दा उदाहरण साँझा की है आपने।सादर हार्दिक आभार।हम भी प्रयास करते हैं हरिगीतिका/श्रीगीतिका छ्न्द पर कुछ रचनाकर्म का।सादर
नमन श्रद्धेय सौरभ सर!बहुत् ही महत्वपूर्ण जानकारी एवं उम्दा उदाहरण साँझा की है आपने।सादर हार्दिक आभार।हम भी प्रयास करते हैं हरिगीतिका/श्रीगीतिका छ्न्द पर कुछ रचनाकर्म का।सादर अवश्य ..सही कहा आपने आदरणीय म…tag:openbooks.ning.com,2015-04-26:5170231:Comment:6459022015-04-26T23:14:38.803ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अवश्य ..सही कहा आपने आदरणीय मिथिलेशजी, भाई खुर्शीद खैराड़ी के साथ हुए संवाद में बहर के लिहाज से भी हरिगीतिका छन्द को समझने का प्रयास हुआ है.</p>
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<p>अवश्य ..सही कहा आपने आदरणीय मिथिलेशजी, भाई खुर्शीद खैराड़ी के साथ हुए संवाद में बहर के लिहाज से भी हरिगीतिका छन्द को समझने का प्रयास हुआ है.</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, हरिगीतिका छ्न…tag:openbooks.ning.com,2015-04-26:5170231:Comment:6459412015-04-26T19:53:58.208Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span>आदरणीय सौरभ सर, हरिगीतिका छ्न्द को विस्तार से समझाने के लिये आपका हार्दिक आभार । आदरणीय खुर्शीद सर को दिए जवाबों में और भी बातें स्पष्ट हो गई. सादर, नमन </span></p>
<p><span>आदरणीय सौरभ सर, हरिगीतिका छ्न्द को विस्तार से समझाने के लिये आपका हार्दिक आभार । आदरणीय खुर्शीद सर को दिए जवाबों में और भी बातें स्पष्ट हो गई. सादर, नमन </span></p> बहुत ही सुंदर जानकारी। काव्य…tag:openbooks.ning.com,2014-12-25:5170231:Comment:5983622014-12-25T11:14:12.174ZSurya Kant Guptahttps://openbooks.ning.com/profile/SuryaKantGupta
<p>बहुत ही सुंदर जानकारी। काव्य रचना नियमानुसार होने पर ही अलंकृत होती है यह मात्र एक उदाहरण देखने से पता चल गया…बहुत बहुत धन्यवाद व आभार…</p>
<p>बहुत ही सुंदर जानकारी। काव्य रचना नियमानुसार होने पर ही अलंकृत होती है यह मात्र एक उदाहरण देखने से पता चल गया…बहुत बहुत धन्यवाद व आभार…</p> परम आदरणीय सौरभ पांडे सर, अत्…tag:openbooks.ning.com,2014-12-19:5170231:Comment:5965182014-12-19T23:52:05.031Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>परम आदरणीय सौरभ पांडे सर, <span style="font-size: 13px;">अत्यंत सरल शब्दों में सटीक छंद विधान समझाने तथा अमूल्य ज्ञानवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद </span></p>
<p>परम आदरणीय सौरभ पांडे सर, <span style="font-size: 13px;">अत्यंत सरल शब्दों में सटीक छंद विधान समझाने तथा अमूल्य ज्ञानवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद </span></p> आदरणीय अखिलेश भाईसाहब, किसी व…tag:openbooks.ning.com,2014-11-07:5170231:Comment:5859012014-11-07T06:38:44.220ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाईसाहब, <br></br>किसी विधान सम्बन्धित आलेख पर पर आये प्रश्नों के माध्यम से न केवल प्रश्नकर्ता की शंकाओं का समाधान होता है बल्कि उक्त आलेख के अन्य पाठकों की शंकाओं का निवारण भी होता है. आपके प्रश्न इस अर्थ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं और मैं हृदयतल से आभार अभिव्यक्त करता हूँ. <br></br><br></br>आदरणीय, हरिगीतिका के पदों की सामान्य यति १६-१२ की होती है. जबकि यही यति १४-१४ की भी होती है. यह प्रति पद व्यवहृत होती है. यानि, किसी एक छन्द में, जो कि चार पदों का होता है, हर पद में अलग-अलग यति बन…</p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाईसाहब, <br/>किसी विधान सम्बन्धित आलेख पर पर आये प्रश्नों के माध्यम से न केवल प्रश्नकर्ता की शंकाओं का समाधान होता है बल्कि उक्त आलेख के अन्य पाठकों की शंकाओं का निवारण भी होता है. आपके प्रश्न इस अर्थ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं और मैं हृदयतल से आभार अभिव्यक्त करता हूँ. <br/><br/>आदरणीय, हरिगीतिका के पदों की सामान्य यति १६-१२ की होती है. जबकि यही यति १४-१४ की भी होती है. यह प्रति पद व्यवहृत होती है. यानि, किसी एक छन्द में, जो कि चार पदों का होता है, हर पद में अलग-अलग यति बन सकती है. यतियाँ उस पद में निहित अर्थ को स्पष्ट करने के अनुसार होती है. <br/><br/>यतियों के होने का मूल मकसद (कारण) यही हुआ करता है कि लम्बे-लम्बे पदों को पढ़ने के क्रम में भाव के अस्पष्ट होने का खतरा हुआ करता है. यतियों के माध्यम से वाचन प्रवाह को रोकने का काम किया जाता है, ताकि पद को दो भागों में बाँट दिया जाये और पद का अर्थ स्पष्ट हो.<br/><br/>विश्वास है, आपकी शंका का निवारण हो पाया. <br/>सादर<br/><br/></p> आदरणीय सौरभ भाईजी ,
पाठकों के…tag:openbooks.ning.com,2014-11-07:5170231:Comment:5861412014-11-07T05:33:29.853Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p><span>आदरणीय सौरभ भाईजी ,</span></p>
<p>पाठकों के संशय और आपके जवाब से ही हरिगीतिका छंद पर प्रायः सभी संभावित प्रश्नों का समाधान स्वयं ही मिल गया। हृदय से धन्यवाद के साथ एक संशय भी दूर कर लेना चाहता हूँ ।.....</p>
<p><strong>यति अमूमन १६-१२ पर हुआ करती है. किन्हीं-किन्हीं पदों में यह यति १४-१४ मात्राओं पर भी देखी गयी है,</strong></p>
<p><span>दो पदों की तुकांतता में यदि एक पद में यति 16 - 12 पर हो और दूसरे में 14 - 14 पर तो क्या यह विधान के अनुसार होगा ? या 16-12 और 14-14 में से किसी एक…</span></p>
<p><span>आदरणीय सौरभ भाईजी ,</span></p>
<p>पाठकों के संशय और आपके जवाब से ही हरिगीतिका छंद पर प्रायः सभी संभावित प्रश्नों का समाधान स्वयं ही मिल गया। हृदय से धन्यवाद के साथ एक संशय भी दूर कर लेना चाहता हूँ ।.....</p>
<p><strong>यति अमूमन १६-१२ पर हुआ करती है. किन्हीं-किन्हीं पदों में यह यति १४-१४ मात्राओं पर भी देखी गयी है,</strong></p>
<p><span>दो पदों की तुकांतता में यदि एक पद में यति 16 - 12 पर हो और दूसरे में 14 - 14 पर तो क्या यह विधान के अनुसार होगा ? या 16-12 और 14-14 में से किसी एक नियम का ही पालन ज़रूरी है। कोई प्रयास अभी किया नहीं पर 14 - 14 सरल प्रतीत होता है और मिला जुला लिखना शायद और भी सरल हो। </span></p>
<p>सादर </p>
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<p></p> जय हो.. :-)
tag:openbooks.ning.com,2014-11-04:5170231:Comment:5856552014-11-04T13:57:20.762ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>जय हो.. :-)</p>
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<p>जय हो.. :-)</p>
<p></p> ज़रूर आदरणीय सौरभ भाई , वो टिप…tag:openbooks.ning.com,2014-11-04:5170231:Comment:5855032014-11-04T12:28:06.149Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>ज़रूर आदरणीय सौरभ भाई , वो टिप्पणी भी पढ लिया हूँ , बहुत कुछ समझ में आया है , आभार आपका ।</p>
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<p>ज़रूर आदरणीय सौरभ भाई , वो टिप्पणी भी पढ लिया हूँ , बहुत कुछ समझ में आया है , आभार आपका ।</p>
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