For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता के भाव पर व्याकरण की तलवार क्यों

कविता हमारे ह्रदय से सहज ही फूटती है, ये तो आवाज़ है दिल की ये तो गीत है धडकनों का एक बार जो लिख गया सो लिख गया ह्रदय के सहज भाव से ह्रदय क्या जाने व्याकरण दिल नही देखता वज्न ...वज्न तो दिमाग देखता है ...एक तो है जंगल जो अपने आप उगा है जहाँ मानव की बुद्धि ने अभी काम नही किया जिसे किसी ने सवारा नही बस सहज ही उगा जा रहा है , ऐसे ही है ह्रदय से निकली कविता ,,, पर दूसरे हैं बगीचे पार्क ये सजावटी हैं सुन्दर भी होते हैं बहुत काँट छाट होती है पेड़ो की, घास भी सजावटी तरीके से उगाई जाती है बस ज़रूरत भर ही रहने दिया जाता है , वहाँ सीमा है पेड़ एक सीमा से ज्यादा नही जा सकते ..तो ऐसे बगीचों में कुदरत के असीम सौन्दर्य को नही देखा जा सकता ,,,तो पूरे सच्चे भाव से लिखी कविता अपने असीम सौन्दर्य को लिए हुए है उसमे अब वज्न की कांट छांट नही होनी चाहिए फिर क्या पूछते हो विधा ये तो ऐसे ही हो गया जैसे हम किसी की जाति पूछे बस भाव देखो और देखो कवि क्या कह गया है जाने अनजाने, जब हम वज्न देखते हैं तो मूल सन्देश से भटक जाते हैं कविता की आत्मा खो जाती है और कविता के शरीर पर काम करना शुरू कर देते हैं कविता पर दिमाग चलाया कि कविता बदसूरत हो जाती है, दिमाग से शब्दों को तोड़ मरोड़ कर लिखी कविता में सौन्दर्य नही होता हो सकता है, आप शब्दों को सजाने में कामयाब हो गए हो और शब्दों की खूबसूरती भी नज़र आये तो भाव तो उसमे बिलकुल नज़र ही नही आएगा, ह्रदय का भाव तो सागर जैसा है सच तो ये है उसे शब्दों में नही बाँधा जा सकता है, बस एक नायाब कोशिश ही की जा सकती है और दिमाग से काम किया तो हाथ आयेंगे थोथे शब्द ही ....कवियों का पाठकों के मानस पटल से हटने का एक कारण ये भी है वो भाव से ज्यादा शब्दों की फिकर करते हैं . व्याकरण की फिकर करते हैं ..इसलिए तो पाठक कविताओं से ज्यादा शायरी पसंद करते हैं ..मै शब्दों के खिलाड़ी को कवि नही कहता हाँ अगर कोई भाव से भरा हो और उसके पास शब्द ना भी हो तो मेरी नज़र में वो कवि है ...उसके ह्रदय में कविता बह रही है, उसके पास से तो आ रही है काव्य की महक ....आप अगर दिमाग से कविता लिखोगे तो लोगो के दिमाग को ही छू पाओगे ,,,दिल से लिखी तो दिल को छू पाओगे ..और अगर आत्मा से लिखी तो सबकी आत्मा में बस जाओगे अपने ह्रदय की काव्य धारा को स्वतंत्र बहने दो मत बनाओ उसमे बाँध शब्दों के व्याकरण के वज्न के ..........बस इतना ही ..................आप सब आदरणीयों को प्रणाम करता हुआ .......

नीरज

Views: 5791

Reply to This

Replies to This Discussion

क्षमा कीजियेगा मित्रवर मैं आपके द्वारा बताये गए किसी भी तथ्य से सहमत नहीं हूँ यदि ऐसा होता तो मेरे घर में सभी के सभी कवि होते सभी एक दूसरे के साथ शेरो शायरी करते रहते हैं. कभी मेरी सोंच भी कुछ आपकी ही तरह थी मैं भी मात्रा गिनती, नियमों से बचना चाहता था तो मैं भी यही कहता था कविता दिल से होती है दिमाग से नहीं, भाई जी दिल से सभी के पास बराबर ही होता है पर सभी कविता या सभी कवि तो नहीं होते न. कौन कहता है कि कवि केवल दिल से लिखता है यदि उसके पास विचार नहीं व्याकरण नहीं सार्थक गहरी सोंच नहीं तो दिल अकेला क्या कर लेगा. फिर तो यह पंक्ति निरर्थक है "जहाँ न पहुंचे रवि - वहां पहुंचे कवि".  नियम पर चलना आसान नहीं होता, नियम भी आता हो और अभ्यास न हो तो रचना निखर कर नहीं आती, कमियां झलकती और हम कहते हैं कि नियम में लिखने में मज़ा नहीं आता देखो तो पढने में कैसी लग रही है, ऐसे नियम का क्या फायदा इत्यादि इत्यादि. सोने में भी चमक इतनी आसानी से नहीं आती भाई. मुझे पूर्ण आशा है यदि आप ओ बी ओ पर कुछ समय जमे रहे तो मेरा दावा है आपने जो लिखा है आप स्वयं इससे असहमत होंगे. आप कांटो के पथ से चलकर फूलों के पथपर जाना चाहते हैं या फूलों के पथ से चलकर काँटों के पथ पर यह आपकी मानसिकता ही निर्धारित करती है.

अंत में गुरुदेव श्री की एक बात कहूँगा... शुभ -शुभ.

भाई अरुण शर्मा अनंत  के सार्थक उत्तर से सहमत होते हुए, भाई नीरज मिश्र से कहना चाहूँगा कि यदि दिल से निकली बात को ही कविता मानने की परम्परा शुरू कर दी जाय तो हिन्दी सहित्य पर शोध- शोधार्थी- स्कूल- विश्यविद्यालयस्तरीय शिक्षादि की क्या कोई प्रासँगिकता रह जायेगी. दिल का काम दिल और दिमाग का काम दिमाग को करंने देना चाहिये.  दोनोँ का  घाल- मेल नहीँ. साहित्य मेँ जो बडी- बडी नायाब खोजेँ हुई हैँ और हो रही हैँ, उनमेँ खाली दिल नहीँ- दिमाग और वह भी थक जाने की हद तक लगता है. दिल से तो प्यार निकलता है- सद्भाव निकलता है- सहयोग- क्षमा-दया- भाई-चारा उपजते हैँ. इन विशयोँ पर दिमाग नहीँ केवल दिल की ज़रूरत है. कविता दिल से निकलती है. लेकिन कवि का दायित्व है कि वह मस्तिश्क का अपनी बुद्धि ( जो मस्तिस्क को संचलित करने का कार्य करती है) से प्रयोग करके, कविता को शिल्प से सजाये- संवारे- निखारे. विम्ब और प्रतीक बुद्धि से निकलते हैँ, ह्रिदय से नहीँ. शिल्प के बिना भाव बिना आवरण के इंसान जैसा है. अर्थात दिल से भाव और दिमाग से शिल्प आता है. कथ्य और शिल्प दोनोँ की उपस्थिति - किसी भी प्रस्तुति मेँ एक साथ् यदि नहीँ है, तो वह गीत-गज़ल-कविता नहीँ- सिर्फ बयान बन कर रह जायेगा.

 छन्द विधान युँ ही नहीँ बनाये गये. लिखते समय जो भाव अन्दर से आते हैँ,वह कागज पर उकेरे जाते हैँ या सीधे टँकित किये जाते हैँ. उस समय यकीनन यदि हम गणना / नाप तौल की फितरत मेँ फँसे,  तो कविता पीछे क्षूट जायेगी- यहाँ तक नीरज भाई मैँ आप के बात से सहमत हूँ. लेकिन फिर बाद मेँ छन्द विधान को ध्यान मेँ रख कर उस पर काम करना पडेगा - कविता-गीत-गज़ल-मुक्तक-मुक्त छन्द या छन्दोवद्ध- दोहा- हाइकू आदि आदि के होसाब से रचना को शिल्प- याकरणादि के आवरण / अभूशण से सजाना पडेगा और यह काम मंज़र-ए-आम से पहले ही होगा. लिखते समय भी विधा तय करके उस पर लिखना पडता है. इस पर कहने को बहुत है, लेकिन आज के लिये इतना ही बहुत और हाँ- एक बात और कि आप ने कविता को आसान रास्ते से चल कर पाने के प्रयास की वकालत की है, जब कि यह रास्ता कठिन है, लेकिन असम्भव कतई नहीँ. चुनौतियोँ से डर के पलायन करने वाले कुछ हासिल नहीँ कर सक्ते. कठिनाइयाँ ही बडे- कीर्तिमाण बनवाती हैँ. बहुत अक्षा विमर्श शुरू करवाने के लिये हार्दिक बधाए और शिखर तक पहुँकहने की अशेश मंगल कामनायेँ.

सस्नेह,

डा. रघुनाथ मिश्र्

शुभ हो..... शुरुआत को प्रोत्साहित करें..... मित्रवर... आदरणीयजन 

 

Priyanka Tripathi ji

शुरूआत निश्चित तौर पर प्रोत्साहित की जाती है यहां लेकिन साथ ही उसको दिशा भी देने का प्रयास किया जाता है। मां बच्चे को उंगली पकड़कर चलना सिखाती है क्योंकि वह जानती है कि यदि ऐसा न किया तो यह लद्द से गिर जाएगा।
आप भी धैर्य के साथ चलें। अपनी रचना प्रस्तुत करें और उन पर प्राप्त मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करें। यूं आपाधापी से कुछ न हासिल होने वाला।

अहा क्या बात कही है आपने! मजा आ गया आपकी बात पर!
गालिब, फैज, कैफी, महादेवी, कबीर, तुलसी, मीरा, मिल्टन, गोपाल दास नीरज, त्रिलोचन, श्मशेर बहादुर सिंह, वेद, पुराण, रामायण, हनुमान चालीसा, भजन, गीत आदि आदि सब पर पानी फेर दिया। कितनी सरल और सपाट बात कह गए।
ये एक नया ट्रेन्ड है जो शौकिया कविता करने वाले बना रहे हैं। दिल, मन या अंतस दर्द और खुशी को महसूस करता है शब्द दिमाग ही देता है। दिल के शब्द होते तो दुनिया का सारा साहित्य एक ही भाषा में होता। आप गम्भीर दिखते हैं। अच्छी रचना करते हैं। इस ट्रेन्ड में न बहें तो ही अच्छा। फेसबुकिया संस्कृति में रची गयी रचनायें साहित्य नहीं है। यह अच्छे से समझना होगा। जितना भी साहित्य है चाहे वह किसी भी भाषा का हो नियमों के तहत ही रचा गया है और पसन्द भी किया गया है। फिल्मों के गाने भी नियमों का पालन करते हैं।
तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी
या

नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढूं रे सांवरिया
पिया पिया करते मैं तो हो गयी रे बावरिया
या
दिले नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
या

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए

यह किसी मन से बहकर नहीं निकला है बल्कि मन के भावों को नियमों के तहत शब्दों में पिरोया गया है।

जंगलों और बाटिका में उलझाकर बातें सिद्ध नहीं होतीं। प्रकृति नियम से ही चलती है और उसका पालन भी कराती है। आम हमेशा जमीन के ऊपर उगता है और आलू जमीन के नीचे। वो पौधा चाहे जंगल में हो चाहे किसी वाटिका में।
आपकी जो रचनायें यहां पोस्ट हुई हैं वे अच्छे रचनाकार के संकेत हैं। नियमों के तहत लिखें बहुत आगे तक जाएंगे!

ब्रिजेश जी आज कल तो फिल्मो में भी कुछ गाने ऐसे  आ रहे हैं जो नीरज जी की ही भाषा बोलते नजर आते हैं :D :):):):)

जी आदरणीया तभी तो इन गानों की तरह वे कालजयी नहीं हो पाते। पानी के बुलबुले की तरह उठते हैं और गायब हो जाते हैं।

आदरणीय बृजेश  जी आपकी यही बात सबसे पहले लेना चाहूँगा वैसे इंसान आप मुझे बहुत जमते हैं 

प्यार , दर्द , भावनाएं , एहसास  सब दिल को महसूस होता है , और किसी का दिल कभी झूठा नही होता 
इसलिए ह्रदय के तल पर जीने वाले इंसान बहुत प्यारे होते हैं ,चूंकि कविता की सारी भावनाएं ह्रदय की हैं 
पर वो बोल नही पाता ,उसके पास शब्द नही हैं  अब शब्द तो दिमाग ने सीखे हैं और कविता ह्रदय में स्वतः 
अवतरित हुयी है ये एक प्राकृतिक घटना है जो कुछ ह्रदय केंद्र पर जीने वालों में स्वतः अवतरित होती है ,
अब स्वतः और सहज रूप से उपजी भावनाओं को सीखे हुए शब्द पूर्ण रूप से कह नही पाते 
ये कवियों की समस्या हमेशा से रही वो कविता लिख के संतुष्ट तो हो जाता है पर पूर्ण संतुष्ट नही हो पाता ,
इस लिए तो कवि लिखते चले जाते हैं सारी  ज़िन्दगी  और फिर भी कुछ पूरा नही हो पाता उन्हें लगता है 
कहीं ना कहीं कुछ अधूरा रह गया है श्री रविन्द्र नाथ  टैगोर से लेकर राहुल सांकृत्यायन  तक को मैंने पढ़ा 
और इन्होने जो अपने अंतिम समय में कहा वो बहुत महत्व पूर्ण है टैगोर साहब ने कहा हे प्रभु अभी तो बहुत 
कुछ कहना बाकी रह गया था अभी तो मै वीणा पर तार भी सही से नही बिठा पाया था अभी तो 
असली संगीत बजना शुरू ही न हुआ था ...और जीवन का अंतिम समय आ गया .......
इसलिए कवि जब तक ऋषि नही हो जाता अपनी कविता पूरी नही कर पायेगा ...
क्यों की अंतिम कविता तो मौन की है जो अस्तित्व में घटती  दिखाई देती है । 
सादर 

वाह ब्रिजेश जी, आप ने तो विद्वानोँ के नाम लेकर विमर्श मेँ ज़ानदार असर डाल  दिया और नीरज मिश्र की समझ को दुरुस्त करने मेँ अति सराहनीय वक्तय के जरिये बहस को अति सर्तक बनाया है, बधाई.

- डा. रघुनाथ मिश्र.

श्री नीरज जी , ये आपने एक पहलू की बात की है आपको अपनी बात इस मंच पर रख देने से संतोष मिला यही सुखकर है । खूब पढ़ते लिखते रहिये और हाँ सीखने का द्वार किसी तर्क वितर्क के परदे से न ढकिये ! हार्दिक शुभकामनायें !!

क्रौंच-वध से आहत, भाव विह्वल हुए आदि कवि के श्रीमुख से जो कुछ फूट पड़ा था वह भावभरा था, पद्यबद्ध था. हमने यानि इस जगती ने बाद में उसे अनुष्टुप छंद का नाम दिया. ऋक् अथवा श्रुतियों की ऋचायें साम के सान्निध्य में आते ही गेय हो जाती हैं जो शब्द-संयोजन का अभिनव स्वरूप व परिणाम हैं. स्वरारोह की कसौटी व आधार पर ही तय हो कर पाश्चात्य साहित्य अति समृद्ध हुआ है.  और तो और, अतुकांत रचनाओं में जो वैचारिक विन्यास तथा शाब्दिक व्याकरण होता है वह किसी छंद-रचना से कहीं कमतर नहीं होता. अन्यथा, अतुकांत या तथाकथित छंद-स्वतंत्र रचनाएँ कोरी भावुकता, या सही कहिए, कच्चे भावों से लदे बड़े-बड़े शब्दों का असहज गद्यात्मक कूड़ा ही हुआ करती हैं.

अध्ययन, मनन, मंथन, गठन तथा संप्रेषण इन पाँच विन्दुओं से जो रचना नहीं गुजरी, वह पाठक को स्पंदित क्या करेगी, अपने उथलेपन के कारण ग्राह्य ही नहीं होगी.

शुभ-शुभ

//अध्ययन, मनन, मंथन, गठन तथा संप्रेषण इन पाँच विन्दुओं से जो रचना नहीं गुजरी, वह पाठक को स्पंदित क्या करेगी, अपने उथलेपन के कारण ग्राह्य ही नहीं होगी.//

आदरणीय सौरभ जी आपने जो मूल मंत्र दिया है उसे हर रचनाकार को आत्मसात करना होगा तभी उसका विकास संभव है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
29 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सम्माननीय ऋचा जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल तकआने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service