'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१७ - Open Books Online2024-03-28T16:05:03Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:257401?groupUrl=pop&commentId=5170231%3AComment%3A262347&groupId=5170231%3AGroup%3A68907&feed=yes&xn_auth=noधन्यवाद आदरणीय प्रधान संपादक…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2629122012-08-20T18:30:47.481ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p style="text-align: left;">धन्यवाद आदरणीय प्रधान संपादक जी ! सादर नमन !</p>
<p style="text-align: left;">धन्यवाद आदरणीय प्रधान संपादक जी ! सादर नमन !</p> भगत गुरु सुखदेव हैं, जिस भू क…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2628482012-08-20T18:30:44.456ZUMASHANKER MISHRAhttps://openbooks.ning.com/profile/UMASHANKERMISHRA
<p>भगत गुरु सुखदेव हैं, जिस भू के आधार।WAAH आदरणीय शहीदों के महत्व को सामने लाया शुक्रिया</p>
<p>अङ्गारों का देश है, कितना अब लाचार॥....सही कहा अंगारों को जन्म देनी वाली मातृभूमि आज लाचार है</p>
<p> </p>
<p>सब जानें मर जायगा, किस विध भ्रष्टाचार। सभी को मालूम है की भ्रष्टाचार कैसे मिटेगा </p>
<p>फिरें चकोरा बन सभी, अरु चुगते अङ्गार॥ चकोर पक्षी को सामने रख सुन्दर वाक्यात </p>
<p> </p>
<p>जाने क्यों सुलगे हुये, हैं सब के उदगार।वाह क्या बात है क्यों सुलगते हैं ये आग</p>
<p>अङ्गारों का फल रहा,…</p>
<p>भगत गुरु सुखदेव हैं, जिस भू के आधार।WAAH आदरणीय शहीदों के महत्व को सामने लाया शुक्रिया</p>
<p>अङ्गारों का देश है, कितना अब लाचार॥....सही कहा अंगारों को जन्म देनी वाली मातृभूमि आज लाचार है</p>
<p> </p>
<p>सब जानें मर जायगा, किस विध भ्रष्टाचार। सभी को मालूम है की भ्रष्टाचार कैसे मिटेगा </p>
<p>फिरें चकोरा बन सभी, अरु चुगते अङ्गार॥ चकोर पक्षी को सामने रख सुन्दर वाक्यात </p>
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<p>जाने क्यों सुलगे हुये, हैं सब के उदगार।वाह क्या बात है क्यों सुलगते हैं ये आग</p>
<p>अङ्गारों का फल रहा, खूब यहाँ व्यापार॥इस आग के आड़ में खूब चल रहा व्यापार बहेतरीन है</p>
<p> </p>
<p>ज्ञान चराचर देव है, दिव्य रूप साकार। क्या कहने है बहुत सुन्दर व्याख्या की है ज्ञान की</p>
<p>अंतर में ज्वाला जली, हारा है अँधियार॥..भीतर के प्रकाश से अन्धकार का नाश</p>
<p> </p>
<p>माया छाया मोह की, काया को अङ्गार।वाहवाह है माया छाया मोह से ही ये शरीर जलता है</p>
<p>ज्वाला हाथों में लिए, नाच रहा संसार॥ पूरा संसार आज खतरनाक आणविक प्रयोजन ले जूझ रहा है</p>
<p> </p>
<p>अम्बर में छायेँ चलो, बन कर प्रेम उदभार। प्यार रस बहाने के लिए सुन्दर उदगार</p>
<p>हम बरसें बुझ जायगा, हर दिल से अङ्गार॥यदि हम प्रेम धार बहाएं तो ही आतंक का नाश होगा</p>
<p> </p>
<p>क्रोध अंकुरित जो हुआ, बन जाता अङ्गार। क्रोध ही अंगार का रूप है</p>
<p>क़हत हबीब न राखिये, मन में किंचित रार।वाह हबीब जी धन्य हैं जय हो कबीर दास की</p> धन्यवाद भाई रत्ती जी !tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2627542012-08-20T18:30:18.937ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>धन्यवाद भाई रत्ती जी !</p>
<p>धन्यवाद भाई रत्ती जी !</p> मुट्ठी में जो आग है, वही हृदय…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2627532012-08-20T18:29:57.754ZUMASHANKER MISHRAhttps://openbooks.ning.com/profile/UMASHANKERMISHRA
<p>मुट्ठी में जो आग है, वही हृदय में आग…..परिभाषित कर दिया चित्र को बहुत सुन्दर</p>
<p>हत्यारे जो भ्रूण के, उन्हें दीजिए दाग.........दागना याने आँक देना सही कहा बहुत खूब</p>
<p>उन्हें दीजिए दाग, सदा अंतर में ऐसा.......ऐसा आँके की आँक की लपट दिल तक पहुंचे</p>
<p>त्यागें झूठी शान, व्यर्थ इज्जत औ पैसा. ...व्यर्थ दिखावा करने वाले भ्रूण हत्यारे...</p>
<p>अम्बरीष अविराम, चेताएं ले कर लट्ठी.......वाह अम्बरीश जी अच्छा डराया</p>
<p>यदि मारा फिर भ्रूण, याद रखना यह मुट्ठी......सुन्दर ललकार भरा…</p>
<p>मुट्ठी में जो आग है, वही हृदय में आग…..परिभाषित कर दिया चित्र को बहुत सुन्दर</p>
<p>हत्यारे जो भ्रूण के, उन्हें दीजिए दाग.........दागना याने आँक देना सही कहा बहुत खूब</p>
<p>उन्हें दीजिए दाग, सदा अंतर में ऐसा.......ऐसा आँके की आँक की लपट दिल तक पहुंचे</p>
<p>त्यागें झूठी शान, व्यर्थ इज्जत औ पैसा. ...व्यर्थ दिखावा करने वाले भ्रूण हत्यारे...</p>
<p>अम्बरीष अविराम, चेताएं ले कर लट्ठी.......वाह अम्बरीश जी अच्छा डराया</p>
<p>यदि मारा फिर भ्रूण, याद रखना यह मुट्ठी......सुन्दर ललकार भरा आहवान</p>
<p>बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय प्रिय अनुज सादर बधाई साथ धन्यवाद</p> धन्यवाद आदरणीय बागी जी ! आपकी…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2629112012-08-20T18:29:55.244ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>धन्यवाद आदरणीय बागी जी ! आपकी सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हुआ !</p>
<p>धन्यवाद आदरणीय बागी जी ! आपकी सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हुआ !</p> जय हिंदीजय हिंद !tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2627522012-08-20T18:29:48.055ZAlbela Khatrihttps://openbooks.ning.com/profile/AlbelaKhatri
<p><b><span style="color: #ff0000;">जय हिंदी</span><br style="color: #ff0000;"/><span style="color: #ff0000;">जय हिंद !</span></b></p>
<p><b><span style="color: #ff0000;">जय हिंदी</span><br style="color: #ff0000;"/><span style="color: #ff0000;">जय हिंद !</span></b></p> स्वागत है अनुज संजय .....आभारtag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2628472012-08-20T18:29:42.388ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>स्वागत है अनुज संजय .....आभार</p>
<p>स्वागत है अनुज संजय .....आभार</p> धन्यवाद अशोक जी !tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2627512012-08-20T18:29:18.158ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>धन्यवाद अशोक जी !</p>
<p>धन्यवाद अशोक जी !</p> कवित्त रचने का अति सुन्दर प्र…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2628462012-08-20T18:28:41.447ZEr. Ambarish Srivastavahttps://openbooks.ning.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>कवित्त रचने का अति सुन्दर प्रयास बधाई अलबेला जी ! सादर</p>
<p>कवित्त रचने का अति सुन्दर प्रयास बधाई अलबेला जी ! सादर</p> तेरह ग्यारह प्रति चरण, मात्रा…tag:openbooks.ning.com,2012-08-20:5170231:Comment:2628452012-08-20T18:28:29.007ZUMASHANKER MISHRAhttps://openbooks.ning.com/profile/UMASHANKERMISHRA
<p><strong>तेरह ग्यारह प्रति चरण,</strong> <strong>मात्राओं का रूप|</strong></p>
<p><strong>चार चरण का अर्धसम,</strong> <strong>शोभा दिव्य अनूप|| </strong> <strong>यह दोहा है </strong></p>
<p>विषम चरण वर्जित जगण, सबसे इसकी प्रीति|</p>
<p>अंत पताका, सम चरण, दोहे की यह रीति||</p>
<p><b><u>रोले के माध्यम से रोले की परिभाषा</u></b> <b>:-</b></p>
<p>सम मात्रिक है छंद, चार चरणों का रोला |</p>
<p>मात्राएँ चौबीस, रूप मन भाये भोला |</p>
<p>यति ग्यारह पर मित्र, शेष तेरह…</p>
<p><strong>तेरह ग्यारह प्रति चरण,</strong> <strong>मात्राओं का रूप|</strong></p>
<p><strong>चार चरण का अर्धसम,</strong> <strong>शोभा दिव्य अनूप|| </strong> <strong>यह दोहा है </strong></p>
<p>विषम चरण वर्जित जगण, सबसे इसकी प्रीति|</p>
<p>अंत पताका, सम चरण, दोहे की यह रीति||</p>
<p><b><u>रोले के माध्यम से रोले की परिभाषा</u></b> <b>:-</b></p>
<p>सम मात्रिक है छंद, चार चरणों का रोला |</p>
<p>मात्राएँ चौबीस, रूप मन भाये भोला |</p>
<p>यति ग्यारह पर मित्र, शेष तेरह मात्रायें |</p>
<p>अंत समापन दीर्घ, तभी पूरी आशायें || <strong> </strong> <strong>यह रोला है</strong></p>
<p><br/> सादर</p>
<p>आदरणीय प्रिय अनुज इस बार का चित्र काव्य हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है इस बार ज्ञान की धारा बही</p>
<p>सभी प्रतियोगी एवं अन्य सहभागियों को बहुत कुछ सिखने को मिला|खास कर अनुज अम्बरीश जी की</p>
<p>सक्रियता ने सबमें जोश और उमंग के साथ शालीनता पूर्वक जो सारगर्भित ज्ञान का सन्देश दिया वह</p>
<p>तारीफ से भी बढ़ कर है जिसका मै शब्दों में बखान नहीं कर पा रहा हूँ|</p>
<p>अतः प्रिय अनुज अम्बरीश का सादर आभार आपकी गिनती रत्नों में है|</p>
<p>प्रिय अलबेला जी के संगत में प्रतियोगिता में रोचकता बनी रही|उनके द्वारा कमेंट्स हो या छंद सभी</p>
<p>आकर्षण बनाने में मददगार साबित हुवे उनका भी ह्रदय से आभार |सभी प्रतिभागी एवं सहभागी एवं दर्शक दीर्घा</p>
<p>का आभार|हमारी ये कामना है की ये मंच दिन दुनी रत चौगुनी प्रगति कर एक से बढ़ कर एक नए पौध को जन्म दे|आदरणीय प्रिय अलबेला जी ने इस बार बहुत सुन्दर ढंग से प्रतिभागियों की रचनाओं में सुधार कर सभी को सुन्दर राह दिखाने का प्रयास किया वह भी तारीफे काबिले रही ,.......धन्यवाद </p>