तरही मुशायरे में ग़ज़लों की संख्या - Open Books Online2024-03-28T11:46:59Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:242365?groupUrl=complainsujession&commentId=5170231%3AComment%3A243244&groupId=5170231%3AGroup%3A970&feed=yes&xn_auth=noधन्यवाद सौरभ सर , आपके सकारात…tag:openbooks.ning.com,2012-07-04:5170231:Comment:2440432012-07-04T05:18:24.988ZArun Srihttps://openbooks.ning.com/profile/ArunSrivastava
<p>धन्यवाद सौरभ सर , आपके सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद उम्मीद करता हूँ कि इस सम्बन्ध में कोई न कोई संख्या निर्धारित जरूर की जाएगी ! सादर !</p>
<p>धन्यवाद सौरभ सर , आपके सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद उम्मीद करता हूँ कि इस सम्बन्ध में कोई न कोई संख्या निर्धारित जरूर की जाएगी ! सादर !</p> अरुण भाई, आपकी सकारात्मक सोच…tag:openbooks.ning.com,2012-07-01:5170231:Comment:2432452012-07-01T06:37:01.895ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अरुण भाई, आपकी सकारात्मक सोच से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ. यों, इस तरह का कोई निर्णय प्रबन्ध समिति की सलाह पर प्रधान सम्पादक ही लेंगे जिसमें इस आयोजन के संचालक की भूमिका महती होगी. किन्तु, मेरा एक निवेदन अवश्य है.</p>
<p>एक नया लिखने वाला अक्सर ग़ज़ल के स्तर की बात नहीं सोचता. वह अपनी भावनाओं को दिये गये फॉर्मेट में फिट करने की कोशिश में रहता है. इस क्रम में वह हर तरह के भावों को शब्दबद्ध करता जाता है --गलत-सही-आरोपित-अमान्य-अनगढ़ हर ढंग से. यह सारा कुछ उसे अपने अभ्यास की प्रक्रिया का हिस्सा…</p>
<p>अरुण भाई, आपकी सकारात्मक सोच से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ. यों, इस तरह का कोई निर्णय प्रबन्ध समिति की सलाह पर प्रधान सम्पादक ही लेंगे जिसमें इस आयोजन के संचालक की भूमिका महती होगी. किन्तु, मेरा एक निवेदन अवश्य है.</p>
<p>एक नया लिखने वाला अक्सर ग़ज़ल के स्तर की बात नहीं सोचता. वह अपनी भावनाओं को दिये गये फॉर्मेट में फिट करने की कोशिश में रहता है. इस क्रम में वह हर तरह के भावों को शब्दबद्ध करता जाता है --गलत-सही-आरोपित-अमान्य-अनगढ़ हर ढंग से. यह सारा कुछ उसे अपने अभ्यास की प्रक्रिया का हिस्सा भर लगता है. इसी कारण पाठकों को ग़ज़ल में भरती के ढेरम्ढेर शेर झेलने पड़ते हैं.</p>
<p>एक नये शायर केलिये जितना आवश्यक लिखने की कोशिश है उतना ही आवश्यक अपनी धुन और लालच पर (शेरों की संख्या के लिहाज से) अंकुश लगाना भी है. इसके लिये भी उपाय है, और वह है, अपनी तथाकथित ग़ज़ल को पोस्ट करने के पूर्व इस्लाह लेलें. लेकिन यह उपाय व्यक्तिगत विचार को साध कर ही अपनाया जा सकता है. </p>
<p>मग़र एक रोचक तथ्य यह भी है कि, अधिकांश सदस्य/ प्रतिभागी इस आयोजन को ’ग़ज़ल पर के एक वर्कशॉप’ की तरह लेते हैं. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है ग़ज़ल के अश’आर की संख्या बढ़ते जाने का.</p>
<p>हम सभी देखते हैं कि इस मंच पर अक्सर समृद्ध गज़लकार अपने शेरों की संख्या ग्यारह के आस-पास ही रखते हैं, पाँच या सात या ग्यारह, या इसी के कुछ ऊपर-नीचे. शेरों की ज्यादा संख्या उनकी ग़ज़लों में होती है जो एकदम से सीखना चाहते हैं. जैसे-जैसे उनकी समझ बढ़ती जाती है, उनके शेरों की संख्या अपने आप कम होने लगती है.</p>
<p>मेरी समझ ग़ज़ल के लिहाज से बढ़ी है कि नहीं यह सवालिया है, लेकिन <strong>मैं भी मंच के आयोजन में शामिल ग़ज़लों के कुल शेरों की संख्या ग्यारह से अधिक रखना नहीं चाहता.</strong></p>
<p>कोई चाहे तो आयोजन के अलावे अपनी ग़ज़ल में शेरों की संख्या चाहे जितनी रखे. लोग-बाग पढेंगे ही और तदनुरूप कोमेण्ट्स भी आयेंगे. यह कोमेण्ट्स ही उस ग़ज़लकार की समझ के बढ़ने के सकारात्मक कारण होंगे.</p>
<p>वैसे, एक रोचक तथ्य यह भी है कि एक ग़ज़ल में कम से कम पाँच अश’आर का नियम अवश्य है लेकिन अधिकतम अश’आर की संख्या का कोई नियम नहीं है. ऐसा ही मैं जानता हूँ. क्योंकि यह भी देखा गया है कि कितनी ही ग़ज़लों में कई ग़ज़लकारों ने शेरों की संख्या सैकड़ों में रखी हैं.</p>
<p></p> ji shukriya bhai. maine faqat…tag:openbooks.ning.com,2012-07-01:5170231:Comment:2433172012-07-01T05:49:41.134ZVipul Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/VipulKumar
<p>ji shukriya bhai. maine faqat isliye poochha tha kyoNki yahaN is tarah ke comment ka koii samanya uddeshya mujhe nahiN dikhaaii paDa. aur Yograj ji ne meri baat ka jawab bhi nahiN diya to mujhe laga shjayad maiN hi baais-e-naarazagi huN. khair, spasht karne ke liye shukriya. khuda is manch ki raanaiyaN banaaye rakkhe....</p>
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<p>ji shukriya bhai. maine faqat isliye poochha tha kyoNki yahaN is tarah ke comment ka koii samanya uddeshya mujhe nahiN dikhaaii paDa. aur Yograj ji ne meri baat ka jawab bhi nahiN diya to mujhe laga shjayad maiN hi baais-e-naarazagi huN. khair, spasht karne ke liye shukriya. khuda is manch ki raanaiyaN banaaye rakkhe....</p>
<p></p> आदरणीय योगराज भाईजी का इशारा…tag:openbooks.ning.com,2012-07-01:5170231:Comment:2432442012-07-01T05:44:26.560ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय योगराज भाईजी का इशारा आपकी ओर कत्तई नहीं है, विपुलकुमारजी. आदरणीय एक सामान्य किन्तु इस मंच के लिहाज से एक तथ्यपरक बात कर रहे हैं. </p>
<p>आज साहित्य क्षेत्र में जिस आचरण की सबसे अधिक कमी दीख रही है वह अनुजों का अग्रजों के प्रति आदर और सम्मान है, तो उसी तरह, अनुज भी अग्रजों द्वारा प्रतिष्ठा के नाम पर घिनौने अहंकार को झेलते हैं. इस रेसिप्रोकल मानसिक गन्दगी से सदस्यों को यह मंच भरसक दूर रहने की सलाह ही नहीं देता बल्कि इस लिहाज से एक सकारात्मक परिपाटी शुरू कर चुका है.</p>
<p>कहना न होगा,…</p>
<p>आदरणीय योगराज भाईजी का इशारा आपकी ओर कत्तई नहीं है, विपुलकुमारजी. आदरणीय एक सामान्य किन्तु इस मंच के लिहाज से एक तथ्यपरक बात कर रहे हैं. </p>
<p>आज साहित्य क्षेत्र में जिस आचरण की सबसे अधिक कमी दीख रही है वह अनुजों का अग्रजों के प्रति आदर और सम्मान है, तो उसी तरह, अनुज भी अग्रजों द्वारा प्रतिष्ठा के नाम पर घिनौने अहंकार को झेलते हैं. इस रेसिप्रोकल मानसिक गन्दगी से सदस्यों को यह मंच भरसक दूर रहने की सलाह ही नहीं देता बल्कि इस लिहाज से एक सकारात्मक परिपाटी शुरू कर चुका है.</p>
<p>कहना न होगा, साहित्य-सेवा रचनाधर्मिता के अंतर्गत मात्र रचना-कर्म ही नहीं है. न ही यह केवल किसी एक अलहदे या किसी समूह का मनस-रंजन है. ज्ञान जब नम्रता से विलग हो जाय तो अहंकारी हो जाता है. इस अहंकार और आत्मश्लाघा (अपनी प्रशंसा और प्रतिष्ठा के लिये किसी हद तक जाने की कुचेष्टा) का साहित्य-क्षेत्र बहुत बड़ी कीमत दे चुका है. और अभी दे रहा है. इन्हीं सारे नकारात्मक व्यवहारों से निजात पाने के लिये अपना मंच एक माहौल बनाने का प्रयास कर रहा है. जिसकी चर्चा आदरणीय योगराजभाई ने की है.</p>
<p>आप इस तरह के कोमेण्ट्स को कृपया अपने ऊपर न लिया करें. आप अभी नये हैं. बहुत कुछ स्वयं स्पष्ट होता जायेगा. आप इस मंच के उद्येश्य और तदनुरूप व्यवहार को जान लेंगे तो आपके सामने सारा कुछ खुलता जायेगा. इस समय आपका इस मंच पर जुड़ना संतुष्टि कारक है. आपका इस मंच की परिपाटियों से समरस हो आगे बने रहना हम सभी सदस्यों के लिये आह्लादकारी होगा.</p>
<p>सधन्यवाद</p>
<p></p> धन्यवाद वीनस सर जी अनुमोदन हे…tag:openbooks.ning.com,2012-07-01:5170231:Comment:2430912012-07-01T04:52:05.558ZArun Srihttps://openbooks.ning.com/profile/ArunSrivastava
<p>धन्यवाद वीनस सर जी अनुमोदन हेतु ! मेरे मन में भी यही संख्या थी अधिकतम शे'र के सम्बन्ध में !</p>
<p>धन्यवाद वीनस सर जी अनुमोदन हेतु ! मेरे मन में भी यही संख्या थी अधिकतम शे'र के सम्बन्ध में !</p> मैं अरुण जी के सुझाव का समर्थ…tag:openbooks.ning.com,2012-06-30:5170231:Comment:2427712012-06-30T12:57:45.131Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>मैं अरुण जी के सुझाव का समर्थन करता हूँ <br/><br/>अधिकतम तीन ग़ज़ल तथा ग़ज़ल में अधिकतम ७ शेर की पाबंदी होनी चाहिए</p>
<p>मैं अरुण जी के सुझाव का समर्थन करता हूँ <br/><br/>अधिकतम तीन ग़ज़ल तथा ग़ज़ल में अधिकतम ७ शेर की पाबंदी होनी चाहिए</p> मैं अधिकतम तीन का नियम से तो…tag:openbooks.ning.com,2012-06-30:5170231:Comment:2431402012-06-30T06:52:01.328ZArun Srihttps://openbooks.ning.com/profile/ArunSrivastava
<p>मैं अधिकतम तीन का नियम से तो सहमति रखता हूँ क्योकि नए लोगों के अभ्यास और सिखने के लिए ये एक जरूरी कदम है ! लेकिन तरही गज़ल में असआर की भी अधिकतम संख्या निर्धारित कर देनी चाहिए ! ताकि भरती के शे'रों की तादाद कम हो सके और ज्यादा अच्छी गज़लें मिल सकें मंच को ! सादर !</p>
<p>मैं अधिकतम तीन का नियम से तो सहमति रखता हूँ क्योकि नए लोगों के अभ्यास और सिखने के लिए ये एक जरूरी कदम है ! लेकिन तरही गज़ल में असआर की भी अधिकतम संख्या निर्धारित कर देनी चाहिए ! ताकि भरती के शे'रों की तादाद कम हो सके और ज्यादा अच्छी गज़लें मिल सकें मंच को ! सादर !</p> मैं आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत…tag:openbooks.ning.com,2012-06-30:5170231:Comment:2427282012-06-30T03:10:03.735Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>मैं आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत हूँ विपुल कुमार जी. थोक के भाव में शेअर कहने से सब से बड़ी केजुएलिटी तखय्युल की ही होती है.</p>
<p>मैं आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत हूँ विपुल कुमार जी. थोक के भाव में शेअर कहने से सब से बड़ी केजुएलिटी तखय्युल की ही होती है.</p> चौंकाया हो या कि पकाया हो ??…tag:openbooks.ning.com,2012-06-30:5170231:Comment:2427272012-06-30T03:07:04.691Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>चौंकाया हो या कि पकाया हो ?? :))))<br/> (कुछेक अपवादों को छोड़कर)</p>
<p>चौंकाया हो या कि पकाया हो ?? :))))<br/> (कुछेक अपवादों को छोड़कर)</p> Yograj ji. ye sanbhavik hai.…tag:openbooks.ning.com,2012-06-29:5170231:Comment:2427092012-06-29T18:21:18.324ZVipul Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/VipulKumar
<p>Yograj ji. ye sanbhavik hai. maiN pahle bhi kah chuka huN ki 30 kaafiye to ustaadoN ke liye bhi sar dard ho jaate haiN.... aur agar wo unhiN kawaafi ko baar baar istemaal karenge to gunvatta kahaN se aayegi</p>
<p>Yograj ji. ye sanbhavik hai. maiN pahle bhi kah chuka huN ki 30 kaafiye to ustaadoN ke liye bhi sar dard ho jaate haiN.... aur agar wo unhiN kawaafi ko baar baar istemaal karenge to gunvatta kahaN se aayegi</p>