"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 36 (Now closed with 966 Replies) - Open Books Online2024-03-29T10:14:33Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/36-2?feed=yes&xn_auth=noसाझा चूल्हा नहीं जला औ’, सुख…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4540332013-10-12T18:30:45.475Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>साझा चूल्हा नहीं जला औ’, सुख की बहती थी रसधार<br/> चाहे सीमित थी सुविधायें, घटा नहीं सुख का भण्डार ||<br/> परम्परा पल्लवित जहाँ थी , पोषित होते थे संस्कार<br/> कहाँ गये वे दिवस सुनहरे, कहाँ खो गये वे घर-बार ||</p>
<p></p>
<p>बहुत सुंदर सार्थक भाव, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण निगम जी</p>
<p>साझा चूल्हा नहीं जला औ’, सुख की बहती थी रसधार<br/> चाहे सीमित थी सुविधायें, घटा नहीं सुख का भण्डार ||<br/> परम्परा पल्लवित जहाँ थी , पोषित होते थे संस्कार<br/> कहाँ गये वे दिवस सुनहरे, कहाँ खो गये वे घर-बार ||</p>
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<p>बहुत सुंदर सार्थक भाव, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण निगम जी</p> "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक -…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4540322013-10-12T18:30:34.720ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 36 के सफल आयोजन पर सभी सदस्य गण, कार्यकारिणी व प्रबंधन दल के सभी सदस्यों को आभार प्रेषित करता हूँ । <br/> सादर ।</p>
<p>"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 36 के सफल आयोजन पर सभी सदस्य गण, कार्यकारिणी व प्रबंधन दल के सभी सदस्यों को आभार प्रेषित करता हूँ । <br/> सादर ।</p> आ०मंजरी जी बड़ी चतुराई से ग़…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4539002013-10-12T18:28:16.899Zअजीत शर्मा 'आकाश'https://openbooks.ning.com/profile/AjeetSharmaAakash
<p>आ०मंजरी जी बड़ी चतुराई से ग़ज़ल को कविता का रूप देकर बहलाया है आपने !!! मगर ग़ज़ल तो ग़ज़ल है..... बह्र से निकाल फेंकने के कारण ग़ज़ल जी नाराज़ सी नहीं लग रही हैं क्या ??? आप ही बताएँ आ० !!!</p>
<p>आ०मंजरी जी बड़ी चतुराई से ग़ज़ल को कविता का रूप देकर बहलाया है आपने !!! मगर ग़ज़ल तो ग़ज़ल है..... बह्र से निकाल फेंकने के कारण ग़ज़ल जी नाराज़ सी नहीं लग रही हैं क्या ??? आप ही बताएँ आ० !!!</p> मंच संचालिका डॉo प्राची सिंह…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4538992013-10-12T18:27:03.259ZAVINASH S BAGDEhttps://openbooks.ning.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>मंच संचालिका </span><br></br><span>डॉo प्राची सिंह ,</span></p>
<p><span><span>ओ बी ओ परिवार की गौरवशाली परम्परानुसार </span></span></p>
<div><strong><span>"लाइव महा उत्सव" अंक - 36 अपने ३६ के आंकड़े को धता बता कर सफलता की बादान पर मुस्कुरा रहा है </span></strong></div>
<div><font face="arial, sans-serif"><b>श्रेष्ठ रचनाओं के साथ ही आदरणीय सर्व श्री योगराज प्रभाकर जी,इं.गणेश जी बागी ,सौरभ पाण्डेय जैसे महानुभावों के मार्गदर्शक प्रतिक्रियाओं ने आयोजन को चार चाँद लगा दिए। डॉ.प्राची जी आप का…</b></font></div>
<p><span>मंच संचालिका </span><br/><span>डॉo प्राची सिंह ,</span></p>
<p><span><span>ओ बी ओ परिवार की गौरवशाली परम्परानुसार </span></span></p>
<div><strong><span>"लाइव महा उत्सव" अंक - 36 अपने ३६ के आंकड़े को धता बता कर सफलता की बादान पर मुस्कुरा रहा है </span></strong></div>
<div><font face="arial, sans-serif"><b>श्रेष्ठ रचनाओं के साथ ही आदरणीय सर्व श्री योगराज प्रभाकर जी,इं.गणेश जी बागी ,सौरभ पाण्डेय जैसे महानुभावों के मार्गदर्शक प्रतिक्रियाओं ने आयोजन को चार चाँद लगा दिए। डॉ.प्राची जी आप का संचालन भी साधुवाद का पात्र है। बधाइयाँ स्वीकार हो सभी सदस्यों की ओरे से। शुभ रात्रि। </b></font></div>
<div><font face="arial, sans-serif"><span>अविनाश बागडे </span></font></div> आदरणीया मंजरी जी, रचना अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4541292013-10-12T18:23:51.248ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीया मंजरी जी, रचना अच्छी लगी, आधुनिक जीवन शैली पर गहरा तंज किया है , बधाई प्रेषित है । </p>
<p>आदरणीया मंजरी जी, रचना अच्छी लगी, आधुनिक जीवन शैली पर गहरा तंज किया है , बधाई प्रेषित है । </p> रचना शिल्प पर कमजोर लगी, भाव…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4540312013-10-12T18:21:05.963ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>रचना शिल्प पर कमजोर लगी, भाव पक्ष बढ़िया है । बधाई । </p>
<p>रचना शिल्प पर कमजोर लगी, भाव पक्ष बढ़िया है । बधाई । </p> आपका हार्दिक आभार आदरणीय जिते…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4541282013-10-12T18:21:01.207ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय जितेन्द्र जी आपको रचना पसंद आई आपको भी शुभकामनायें</p>
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय जितेन्द्र जी आपको रचना पसंद आई आपको भी शुभकामनायें</p> गहन भाव युक्त रचना, प्रवाह कई…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4540302013-10-12T18:18:40.855ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>गहन भाव युक्त रचना, प्रवाह कई जगह बाधित है,कृपया पुर्नावलोकन करना चाहेंगे । </p>
<p>गहन भाव युक्त रचना, प्रवाह कई जगह बाधित है,कृपया पुर्नावलोकन करना चाहेंगे । </p> परिवारों की देन है, गांव-स…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4541272013-10-12T18:15:43.742Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>परिवारों की देन है, गांव-समाज-सुदेश।<br/>फलीभूत सुसंस्कृति से, परम्परा औ वेश।।</p>
<p>एकाकी परिवार से, सुध्दृढ़ रहे संयुक्त।<br/>संस्कार नित प्रेम मिले, आशीष स्नेह युक्त।</p>
<p></p>
<p>एक से बढकर, एक दोहा , बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल जी</p>
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<p>परिवारों की देन है, गांव-समाज-सुदेश।<br/>फलीभूत सुसंस्कृति से, परम्परा औ वेश।।</p>
<p>एकाकी परिवार से, सुध्दृढ़ रहे संयुक्त।<br/>संस्कार नित प्रेम मिले, आशीष स्नेह युक्त।</p>
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<p>एक से बढकर, एक दोहा , बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल जी</p>
<p></p> अधिक क्या कहें क्या -क्या
“प…tag:openbooks.ning.com,2013-10-12:5170231:Comment:4541252013-10-12T18:15:26.050ZAVINASH S BAGDEhttps://openbooks.ning.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p>अधिक क्या कहें क्या -क्या</p>
<p> “परिवार बनाम परंपरा” !</p>
<p> बन कर महज़ विषय एक</p>
<p> वाद-विवाद मे बंट गए !..<span> कुछ हट के</span><span> काम <span>आदरणीय मंजरी जी </span></span><span> !</span></p>
<p>अधिक क्या कहें क्या -क्या</p>
<p> “परिवार बनाम परंपरा” !</p>
<p> बन कर महज़ विषय एक</p>
<p> वाद-विवाद मे बंट गए !..<span> कुछ हट के</span><span> काम <span>आदरणीय मंजरी जी </span></span><span> !</span></p>