"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-30 में शामिल लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-29T10:56:15Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/30-4?commentId=5170231%3AComment%3A886876&feed=yes&xn_auth=noयथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित tag:openbooks.ning.com,2017-10-24:5170231:Comment:8916602017-10-24T07:06:49.948Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित </p>
<p>यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित </p> आदरणीय योगराज जी, त्वरित संकल…tag:openbooks.ning.com,2017-10-12:5170231:Comment:8884992017-10-12T19:44:59.976ZBrajendra Nath Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/BrajendraNathMishra
<p>आदरणीय योगराज जी, त्वरित संकलन प्रकाशन हेतु ह्रदय तल से साधुवाद ! मेरी रचना को प्रकाशन के सातवें नंबर क्रम में स्थान देने के लिए आभार! ओ बी ओ की सहभागिता प्रधान गोष्ठी निरंतर चलती रहे यही मेरी शुभकामना है| </p>
<p>मैंने रचना में कुछ मामूली सुधार किये हैं| कृपया इस संशोधित स्वरुप को स्थान दें |</p>
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<p><strong><span style="text-decoration: underline;">उजाला दे दूंगी</span></strong></p>
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<p><strong><span style="text-decoration: underline;"><span>"</span></span>माँ, आज साहब के…</strong></p>
<p>आदरणीय योगराज जी, त्वरित संकलन प्रकाशन हेतु ह्रदय तल से साधुवाद ! मेरी रचना को प्रकाशन के सातवें नंबर क्रम में स्थान देने के लिए आभार! ओ बी ओ की सहभागिता प्रधान गोष्ठी निरंतर चलती रहे यही मेरी शुभकामना है| </p>
<p>मैंने रचना में कुछ मामूली सुधार किये हैं| कृपया इस संशोधित स्वरुप को स्थान दें |</p>
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<p><strong><span style="text-decoration: underline;">उजाला दे दूंगी</span></strong></p>
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<p><strong><span style="text-decoration: underline;"><span>"</span></span>माँ, आज साहब के बंगले में इतनी भीड़ क्यों है?" रोहित बाबु के बंगले के आउट हाउस में अपनी माँ के साथ रहने वाली छोटी बच्ची रानी ने अपनी माँ अहिल्या से पूछा था।<br/>अहिल्या जानती थी कि साहब के यहां नवरात्र में दुर्गा जी की पूजा होती है। आज उसी की पूर्णाहुति पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। उसके बाद दक्षिणा के रूप में उपहार भी दिया जता है।<br/>"वहां माँ दुर्गा जी की पूजा हो रही है।"<br/>"उससे क्या होता है?"<br/>"उससे दुर्गा जी सद्बुद्धि देती हैं। और सद्बुद्धि से जीवन में उजाला आ जाता है। उसके प्रकाश में जीवन जीने से कोई भय नहीं होता है।"<br/>"माँ, हम भी दुर्गा जी की पूजा क्यों नहीं करते?"<br/>"करती हूं न। जहां दुर्गा जी की पूजा होती है, वहां की सफाई तो मैं ही रोज करती हूं। हमारी यही पूजा है।"<br/>"तो फिर कन्या को बुलाकर खिला भी देंगे और दक्षिणा भी देंगें।"<br/>"मैं तो रोज खिलाती हुँ कन्या को।"<br/>"मैने तो किसी को आते हुये नहीं देखा।"<br/>"तुम जो मेरी कन्या हो।"<br/>"तुम दक्षिणा क्या दोगी?"<br/>"मैं दुर्गा जी के पूजा स्थल की सफाई करते हुए पूजा भी करती रहती हूँ| वहाँ से .... "<br/>"हां, तो वहां से दक्षिणा लायेगी क्या?<br/>"हां, वहीं से सद्बुद्धि का उजाला लेकर तुम्हें उसमें से थोड़ा सा उजाला दे दूंगी।"<br/>"तुम्हारी यही बात मेरी समझ में नही आती।"<br/>अहिल्या अपनी रानी को गले लगा लेती है।</strong></p> आदरणीय भाई साहब/ प्रणाम. व्यस…tag:openbooks.ning.com,2017-10-06:5170231:Comment:8871042017-10-06T13:05:14.043ZOmprakash Kshatriyahttps://openbooks.ning.com/profile/OmprakashKshatriya
<p>आदरणीय भाई साहब/ प्रणाम. व्यस्त था इसलिए अपनी लघुकथा के प्रतिस्थापन के लिए निवेदन नहीं कर सका . आप से निवेदन है कि मेरी लघुकथा को प्रतिस्थापित करने की कृपा करे. सादर.</p>
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<p>लघुकथा— एक कदम</p>
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<p>मनचले लखन को जोरदार थप्पड़ पड़ा था. उस समय लखन ने सोच लिया कि वह रिश्तेदार लड़की और उस की मालकिन के इस अड्डे का भण्डाफोड़ कर के रहेगा. वह मौहल्ले के 10 लोगों को बहलाफुसला कर ले आया.</p>
<p>'अरे ओ मैडमियाजी ! बाहर निकलो जरा ? मोहल्ले के लड़केलड़कियां को इकट्ठा कर के क्या करती हो ?…</p>
<p>आदरणीय भाई साहब/ प्रणाम. व्यस्त था इसलिए अपनी लघुकथा के प्रतिस्थापन के लिए निवेदन नहीं कर सका . आप से निवेदन है कि मेरी लघुकथा को प्रतिस्थापित करने की कृपा करे. सादर.</p>
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<p>लघुकथा— एक कदम</p>
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<p>मनचले लखन को जोरदार थप्पड़ पड़ा था. उस समय लखन ने सोच लिया कि वह रिश्तेदार लड़की और उस की मालकिन के इस अड्डे का भण्डाफोड़ कर के रहेगा. वह मौहल्ले के 10 लोगों को बहलाफुसला कर ले आया.</p>
<p>'अरे ओ मैडमियाजी ! बाहर निकलो जरा ? मोहल्ले के लड़केलड़कियां को इकट्ठा कर के क्या करती हो ? लोगों को यह तो पता चले.'</p>
<p>' हांहाँ सावित्रीजी ! हम आप की हकीकत जानना चाहते हैं, ' तभी कमरे से बाहर आई सावित्री से चिल्ला कर किसन बोला, ' आप अंदर क्या गुल खिलाती है ?' वह बहुत दिन पहले वह सावित्री से छेड़खानी करने के कारण मार खा चूका था.</p>
<p>चार लड़कियों से घिरी सावित्री ने उसी अंदाज में चिल्ला कर पूछा, ' काहे शोर मचा रहो भाई ?'</p>
<p>' अपनी असलियत तो बताओ ! इन्हें. तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो ,' लखन बदला लेने की नियत से सावित्री की दुखती रग पर चोट करते हुए बोला, ' यहां आने से पहले तुम्हारे साथ चार लोगों ने क्या किया था ? और तुम वहीं गंदा काम यहां की लड़कियों से क्यों करवा रही हो ?'</p>
<p>उस की बात पूरी होने से पहले ही वह रिश्तेदार लड़की हरकत में आ कर चिल्लाई, ' क्या कहा रे ! कल की मार...'</p>
<p>उस की बात पूरी होने से पहले ही सावित्री ने उसे इशारे से रोक दिया, फिर लोगों की ओर मुखातिब हो कर बोली, '’ आप यह जानना चाहते हैं ना कि मैं यहां क्या करती हूं ?''</p>
<p>सावित्री ने एक निगाहें मोहल्ले वालों पर डाली.</p>
<p>' जी हां.' किसन बोला , ' हम मौहल्ले में ऐसा गंदा काम नहीं होने देंगे.'</p>
<p>“ अबे चुप !’' सावित्री चींखी, '’ तुम उजालों में, रिश्तेदारी की आड़ में जो गंदा काम करते हो ना, यहां अंधेरे में, मैं लड़कियों को उस से बचने के लिए प्रशिक्षण देती हूं. ताकि वह तुम्हारे जैसे रिश्तेदारों के नापाक इरादों से बच सकें.'</p>
<p>सावित्री की दहाड़ सुनते ही मनचले लखन का हाथ अपने गाल पर चला गया. </p> बहुत-बहुत शुक्रिया सर. हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2017-10-06:5170231:Comment:8872302017-10-06T02:24:41.489ZMahendra Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>बहुत-बहुत शुक्रिया सर. हार्दिक आभार. सादर.</p>
<p>बहुत-बहुत शुक्रिया सर. हार्दिक आभार. सादर.</p> आपकी सशोधित कथा कम संख्या 30…tag:openbooks.ning.com,2017-10-05:5170231:Comment:8867042017-10-05T06:10:37.790Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आपकी सशोधित कथा कम संख्या 30 पर लगा दी गई है भाई महेंद्र कुमार जी. </p>
<p>आपकी सशोधित कथा कम संख्या 30 पर लगा दी गई है भाई महेंद्र कुमार जी. </p> यथा निवीदित तथा प्रतिस्थापितtag:openbooks.ning.com,2017-10-05:5170231:Comment:8869222017-10-05T04:34:21.878Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवीदित तथा प्रतिस्थापित</p>
<p>यथा निवीदित तथा प्रतिस्थापित</p> लघुकथा के सफल आयोजन के लिए बध…tag:openbooks.ning.com,2017-10-05:5170231:Comment:8866022017-10-05T04:09:38.627Zindravidyavachaspatitiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/indravidyavachaspatitiwari866
<p>लघुकथा के सफल आयोजन के लिए बधाई स्वीकार करें। हमें लगता है कि स्तरीय रचनाओं का प्रकाशन हमें अर्थात लेखकों को भी उत्साहित करता है। पुनश्च ढेर सारी बधाईयां।</p>
<p>लघुकथा के सफल आयोजन के लिए बधाई स्वीकार करें। हमें लगता है कि स्तरीय रचनाओं का प्रकाशन हमें अर्थात लेखकों को भी उत्साहित करता है। पुनश्च ढेर सारी बधाईयां।</p> आद0 योगराज प्रभाकर भाई जी साद…tag:openbooks.ning.com,2017-10-04:5170231:Comment:8868762017-10-04T23:14:13.044Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 योगराज प्रभाकर भाई जी सादर अभिवादन। लघुकथा गोष्ठी अंक 30 के त्वरित संकलन और सफ़ल संचालन् हेतु बधाई। सभी रचनाकारों को भी मुबारकबाद। लोगो के मिले सुझावों के अनुसार मैंने अपनी लघुकथा में परिवर्तन किया है, जिसे पुरानी लघुकथा से बदलने का अनुरोध करता हूँ। पहले शीर्षक ममता की कागज की जगह ममता का कागज।<br />
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ममता का काजल<br />
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"अगर वरुण तेरा यहीं हाल रहा तो कह देती हूँ, इस घर मे शहनाई नहीं गूँजने वाली। जो भी आता है वह एक ही सवाल पूछता है कि आपका बेटा करता क्या है?" माँ वरुण के घर मे प्रवेश करती ही बोल…
आद0 योगराज प्रभाकर भाई जी सादर अभिवादन। लघुकथा गोष्ठी अंक 30 के त्वरित संकलन और सफ़ल संचालन् हेतु बधाई। सभी रचनाकारों को भी मुबारकबाद। लोगो के मिले सुझावों के अनुसार मैंने अपनी लघुकथा में परिवर्तन किया है, जिसे पुरानी लघुकथा से बदलने का अनुरोध करता हूँ। पहले शीर्षक ममता की कागज की जगह ममता का कागज।<br />
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ममता का काजल<br />
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"अगर वरुण तेरा यहीं हाल रहा तो कह देती हूँ, इस घर मे शहनाई नहीं गूँजने वाली। जो भी आता है वह एक ही सवाल पूछता है कि आपका बेटा करता क्या है?" माँ वरुण के घर मे प्रवेश करती ही बोल पड़ीं।<br />
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वरुण माँ का माथा चूमते हुए बोला "क्यों आप मन छोटा करती हो मम्मी? कोई न कोई तो होंगा जो मुझे समझेगा।"<br />
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माँ झट से उसको दूर करते हुए चीखी- "ख़ाक समझेगा कोई। ऐसा काम जिसमे कमाई का तो छोड़ो,उल्टे घर से ही लगता हो, उसकी तारीफ कौन करेगा? और अगर कोई तारीफ कर भी दे, तो कम से कम वह अपनी बिटिया की शादी तुझ जैसे लड़के से तो नहीं करेगा जिसकी कमाई कुछ न हो।"<br />
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वरुण अचानक बहुत गम्भीर होकर माँ को कुर्सी पर बिठाते हुए बोला -"मम्मी मुझे दुःख है कि मैं उस तरह का बेटा नहीं बन सका जैसा आप चाहती थीं। पर मम्मी ! अगर आप ने मुझे गोद न लिया होता तो न जाने मैं किस अंधेरे में भटक रहा होता। यह बात बार बार मेरे जेहन में गूँजती रहती है। सिर्फ अपने लिए जीना मुझे धिक्कारता है। इसलिए मैंने भी अपने पास की झुग्गियों के बच्चों को गोद ले लिया है, ताकि उनको साक्षर कर इस काबिल बना सकूँ कि वे भी खुद के पैरों पर खड़ा हो सकें।<br />
<br />
माँ बात बीच मे काटते हुए बोली-"पर बेटा-अपने घर मे भी तो उजाला आना चाहिए। सामाजिक सरोकारों के साथ घर की भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं।"<br />
<br />
वरुण माँ के गोद मे सर रखते हुए बोला -"समझता हूँ मम्मी! और मैं इतना भी नक्कारा नहीं कि घर के जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लू। भले मैं घर मे वह उजाला न ला सकूँ, जिसकी आप कामना करती हैं, पर इतने घरों में जब दीपक एक साथ जलेंगे, तो उसकी रोशनी से अपना घर भी जगमगा उठेगा"।<br />
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माँ आज बेटे को सचमुच बड़ा होता देख ममता का काजल लगा दी, ताकि दुनिया की नजर न लगे। आ. वीरेन्द्र वीर मेहता जी, आप…tag:openbooks.ning.com,2017-10-04:5170231:Comment:8865902017-10-04T16:54:31.086ZMahendra Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>आ. वीरेन्द्र वीर मेहता जी, आपकी लघुकथा आयोजन के अन्त समय में पोस्ट होने (और तत्समय मेरी अनुपलब्धता) के कारण मैं वहाँ पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया. सच कहूँ तो आपने प्रदत्त विषय पर ज़बरदस्त लघुकथा लिखी है. इसकी जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी, वह है इसका प्रस्तुतीकरण. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा. सादर.</p>
<p>आ. वीरेन्द्र वीर मेहता जी, आपकी लघुकथा आयोजन के अन्त समय में पोस्ट होने (और तत्समय मेरी अनुपलब्धता) के कारण मैं वहाँ पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया. सच कहूँ तो आपने प्रदत्त विषय पर ज़बरदस्त लघुकथा लिखी है. इसकी जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी, वह है इसका प्रस्तुतीकरण. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा. सादर.</p> आ. योगराज सर, आपकी इस “ओबीओ ल…tag:openbooks.ning.com,2017-10-04:5170231:Comment:8865892017-10-04T16:40:30.903ZMahendra Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>आ. योगराज सर, आपकी इस <span>“ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-30 की समीक्षा को देख कर अत्यन्त ख़ुशी हुई. प्रदत्त विषय के साथ-साथ लघुकथा सम्बन्धी जो अन्य बारीक बातें आपने बतायी हैं वो हम लोगों के बहुत काम की हैं. हमें चाहिए कि हम इन्हें हमेशा ध्यान में रखें.</span> यह आपकी सदाशयता ही है जो आपने अपनी टिप्पणी में मेरा ज़िक्र किया. लघुकथा के विषय में मैंने जो कुछ भी सीखा है वो आप ही से सीखा है. इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. कृपया यूँ ही हम लोगों का मार्गदर्शन करते रहें. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.…</p>
<p>आ. योगराज सर, आपकी इस <span>“ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-30 की समीक्षा को देख कर अत्यन्त ख़ुशी हुई. प्रदत्त विषय के साथ-साथ लघुकथा सम्बन्धी जो अन्य बारीक बातें आपने बतायी हैं वो हम लोगों के बहुत काम की हैं. हमें चाहिए कि हम इन्हें हमेशा ध्यान में रखें.</span> यह आपकी सदाशयता ही है जो आपने अपनी टिप्पणी में मेरा ज़िक्र किया. लघुकथा के विषय में मैंने जो कुछ भी सीखा है वो आप ही से सीखा है. इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. कृपया यूँ ही हम लोगों का मार्गदर्शन करते रहें. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.</p>