"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-2 (विषय: पहचान) - Open Books Online2024-03-28T16:50:25Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/2?commentId=5170231%3AComment%3A660733&feed=yes&xn_auth=noइस आयोजन को सफल बनाने हेतु सभ…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6612482015-05-31T18:24:42.506Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>इस आयोजन को सफल बनाने हेतु सभी सुधि साथियों का हार्दिक आभार। </p>
<p>इस आयोजन को सफल बनाने हेतु सभी सुधि साथियों का हार्दिक आभार। </p> हमे नाम ध्यान न आ रहें थे ज्य…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6613202015-05-31T18:21:32.231Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p>हमे नाम ध्यान न आ रहें थे ज्यादा आपने तो खूब नाम गिना हमारी डिक्शनरी के अक्षर बढा दिए ..आभार आपका पुनः</p>
<p>हमे नाम ध्यान न आ रहें थे ज्यादा आपने तो खूब नाम गिना हमारी डिक्शनरी के अक्षर बढा दिए ..आभार आपका पुनः</p> सादर नमस्ते भैया
आदरणीय भैया…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611022015-05-31T18:19:53.998Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>सादर नमस्ते भैया</span>
</span> <span><span>आदरणीय भैया आप समझे हमे ख़ुशी हुई , असल में हमे लगा पगली जैसा नाम हम आंचलिक भाषा में ही लिखे तो सही होगा ...पर समझ न आएँगी बिल्कुल ही इसका ज्ञान न था ...अब हमने उत्तर में तो लिख दिया पर मूल कथा को कैसे हिंदी में लिखे समझ नही आ रहा ..यानि सही करें |<br></br>दिल से आभार आपका भैया आपकी टिप्पड़ी से हमे ख़ुशी दोहरी मिली
<br />
<span>शादी समारोह में चाचा-ताऊ की सभी भाई-बहन इक्कठे हुए | तभी रुक्मी चिल्लाती सी…</span></span></span></span></span></span></p>
<p><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>सादर नमस्ते भैया</span>
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</span><span><span>आदरणीय भैया आप समझे हमे ख़ुशी हुई , असल में हमे लगा पगली जैसा नाम हम आंचलिक भाषा में ही लिखे तो सही होगा ...पर समझ न आएँगी बिल्कुल ही इसका ज्ञान न था ...अब हमने उत्तर में तो लिख दिया पर मूल कथा को कैसे हिंदी में लिखे समझ नही आ रहा ..यानि सही करें |<br/>दिल से आभार आपका भैया आपकी टिप्पड़ी से हमे ख़ुशी दोहरी मिली
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<span>शादी समारोह में चाचा-ताऊ की सभी भाई-बहन इक्कठे हुए | तभी रुक्मी चिल्लाती सी बोली " ये पगली बहिन, आपको पापा बुला रहें हैं |"</span><br />
<span>"बिट्टी ये नाम नहीं लिया करो |सब कहेंगे पागल थी क्या जो ये नाम हैं |"</span><br />
<span>"अरे बहिन, अब क्या करे ? जुबान पर यही नाम रटा हैं | बाबा क्यों रखे ऐसा नाम ?"</span><br />
<span>"क्या मालुम ? नाम न लें फिर, सीधे बहिन बोल , नाम नहीं याद तो |</span><br />
<span>''दस बहिन हो . कैसे पता किसे बुला रहें | नामा भी सबका एक जैसा ही 'पगली' 'सगली' |जिसका नाम लो वही नाराज |"</span><br />
<span>''क्या करें बिट्टी ?ससुराल वाले सुन लेंगे तो पहचान जो बनी हैं मिटटी हो जाएँगी | सावित्री बहिन बोला करो , मेरी प्यारी छुटकी |" विनती (चिरौरी) करती हई बोली</span><br />
<span>''तीस-पैतीस साल हो गये ससुराल में , जीजा तो समझेंगे न |"</span><br />
<span>''क्या पता बिट्टी " कथन में अविश्वास आसमान छू रहा था</span><br />
<br />
<span>(मौलिक व अप्रकाशित)</span></span></span></span></span></span></p> इस लघुकथा के माध्यम से आयोजन…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6613192015-05-31T18:08:19.186ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस लघुकथा के माध्यम से आयोजन में सहभागिता बनाने केलिए शुभकामनाएँ.</p>
<p></p>
<p>इस लघुकथा के माध्यम से आयोजन में सहभागिता बनाने केलिए शुभकामनाएँ.</p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश जी,
विचार देने…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611972015-05-31T18:07:46.115ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीय अखिलेश जी, </p>
<p>विचार देने के लिये आभार.</p>
<p>सादर.</p>
<p></p>
<p>आदरणीय अखिलेश जी, </p>
<p>विचार देने के लिये आभार.</p>
<p>सादर.</p>
<p></p> आदरणीया मीनाजी, आपकी यह लघुकथ…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611962015-05-31T18:04:30.731ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया मीनाजी, आपकी यह लघुकथा उद्येश्यपरक है. बहुत ही सही विन्दु उठाया गया है. हार्दिक बधाइयाँ. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p>
<p>आदरणीया मीनाजी, आपकी यह लघुकथा उद्येश्यपरक है. बहुत ही सही विन्दु उठाया गया है. हार्दिक बधाइयाँ. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p> आदरणीया नेहा जी, जल्दबाजी में…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6612472015-05-31T18:04:20.029ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीया नेहा जी, जल्दबाजी में यह भागीदारी हुई है न ? आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ.</p>
<p>आदरणीया नेहा जी, जल्दबाजी में यह भागीदारी हुई है न ? आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ.</p> आदरणीय चन्द्रेश जी,
कथा की श…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611952015-05-31T18:04:11.831ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीय चन्द्रेश जी, </p>
<p>कथा की शैली को ले कर पहले भी बात हो चुकी है. कथा पर अपने विचार देने के लिय आभार,</p>
<p>सादर.</p>
<p></p>
<p>आदरणीय चन्द्रेश जी, </p>
<p>कथा की शैली को ले कर पहले भी बात हो चुकी है. कथा पर अपने विचार देने के लिय आभार,</p>
<p>सादर.</p>
<p></p> आदरणीया राजेश कुमारी दी सचमुच…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611942015-05-31T18:01:05.485Zneha agarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/nehaagarwal
आदरणीया राजेश कुमारी दी सचमुच बहुत अच्छी लधुकथा हुई है ।
आदरणीया राजेश कुमारी दी सचमुच बहुत अच्छी लधुकथा हुई है । आदरणीया कान्ता जी,
कथा पर अप…tag:openbooks.ning.com,2015-05-31:5170231:Comment:6611012015-05-31T18:01:04.944ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीया कान्ता जी, </p>
<p>कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. </p>
<p>सादर.</p>
<p></p>
<p>आदरणीया कान्ता जी, </p>
<p>कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. </p>
<p>सादर.</p>
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