ओबीओ, लखनऊ चैप्टर वार्षिकोत्सव-2016 - Open Books Online2024-03-29T01:59:56Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/2016-4?commentId=5170231%3AComment%3A767566&feed=yes&xn_auth=noभाई पवन कुमारजी, आपकी संलग्नत…tag:openbooks.ning.com,2016-06-01:5170231:Comment:7725162016-06-01T11:28:15.350ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई पवन कुमारजी, आपकी संलग्नता और समर्पण अनुकरणीय है. यह कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है. लेकिन साथ ही यह भी अपेक्षित है कि आप समय निकाल कर सतत रचनाकर्म के प्रति आग्रही रहें. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
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<p>भाई पवन कुमारजी, आपकी संलग्नता और समर्पण अनुकरणीय है. यह कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है. लेकिन साथ ही यह भी अपेक्षित है कि आप समय निकाल कर सतत रचनाकर्म के प्रति आग्रही रहें. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> आदरणीय,ये तो आपलोगों का स्नेह…tag:openbooks.ning.com,2016-06-01:5170231:Comment:7724232016-06-01T07:30:19.449ZPawan Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/PawanKumar
<p>आदरणीय,<br/>ये तो आपलोगों का स्नेह है, जो मुझ जैसे अदना को भी इतना मान देते है।<br/>वहां तो मेरा खुद का ही स्वार्थ होता है, क्योकि आप लोगो के सानिध्य में होना मेरे लिये किसी सुखद स्वप्न से कम नही है।</p>
<p>आदरणीय,<br/>ये तो आपलोगों का स्नेह है, जो मुझ जैसे अदना को भी इतना मान देते है।<br/>वहां तो मेरा खुद का ही स्वार्थ होता है, क्योकि आप लोगो के सानिध्य में होना मेरे लिये किसी सुखद स्वप्न से कम नही है।</p> इस आयोजन का हिस्सा बनकर अपार…tag:openbooks.ning.com,2016-05-28:5170231:Comment:7696412016-05-28T03:52:34.481ZRavi Prabhakarhttps://openbooks.ning.com/profile/RaviPrabhakar
<p>इस आयोजन का हिस्सा बनकर अपार प्रसन्नता हुई । ज्ञानी और गुणी सज्जनों से बहुत कुछ सीखने को मिला। आदरणीय शरदिन्दु सर , आदरणीय गोपाल नारायण जी, आदरणीय केवल प्रसाद व समस्त आयोजकों को इस सफल आयोजन के लिए बधाई देता हूं। श्रद्धेय सौरभ भाई जी ने नवगीत पर जिस प्रकार और सहजता से बोला उसने बहुत प्रभावित किया, परत दर परत खोलते इस जानकारी भरपूर वक्तव्य के लिए मैं आदरणीय भाई जी को धन्यवाद देता हूं। सभी गुणीजनों ने मंच से बहुत अच्छी जानकारीयां दी। आदरणीय एहतराम इस्लाम जी के बोलने के दौरान तो वक्त…</p>
<p>इस आयोजन का हिस्सा बनकर अपार प्रसन्नता हुई । ज्ञानी और गुणी सज्जनों से बहुत कुछ सीखने को मिला। आदरणीय शरदिन्दु सर , आदरणीय गोपाल नारायण जी, आदरणीय केवल प्रसाद व समस्त आयोजकों को इस सफल आयोजन के लिए बधाई देता हूं। श्रद्धेय सौरभ भाई जी ने नवगीत पर जिस प्रकार और सहजता से बोला उसने बहुत प्रभावित किया, परत दर परत खोलते इस जानकारी भरपूर वक्तव्य के लिए मैं आदरणीय भाई जी को धन्यवाद देता हूं। सभी गुणीजनों ने मंच से बहुत अच्छी जानकारीयां दी। आदरणीय एहतराम इस्लाम जी के बोलने के दौरान तो वक्त का कुछ पता ही नहीं लगा। जी चाह रहा था कि वे बोलते जाएं और हम मोती इकट्ठे करते जाएं। हिन्दी लघुकथा की सर्वप्रथम लघुकथा कार्यशाला आयोजन के लिए प्रधान संपादक बधाई के पात्र है। लाइव लघुकथा आयोजन के बाद कार्यशाला आयोजन ने ओबीओ के मुकुट पर एक और मोती जड़ दिया है। मैं आयोजन से बहुत कुछ हासिल करके लौटा हूं। ओबीओ की जय हो।</p> सादर आभार आदरणीय सुशील सरना ज…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7687082016-05-26T18:02:03.371ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>सादर आभार आदरणीय सुशील सरना जी. </p>
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<p>सादर आभार आदरणीय सुशील सरना जी. </p>
<p></p> आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी ओर से…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7686532016-05-26T17:55:31.107ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी ओर से मिला अनुमोदन आश्वस्तिकारी लगा.</p>
<p>वस्तुतः, एक प्रवृति हो गयी है कि किसी ने सलाह दी नहीं कि लोग उसे ही जुए में जोत देते हैं. कि, इतना बोले तो अब आगे बढ़ो ! और सभी पीछे से तमाशा देखेंगे ! जबकि ओबीओ के मंच से सदा सहयोगात्मक रवैये को तरज़ीह देने की बात होती रही है. </p>
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<p>कोई कुछ और सहयोग न दे, कमसे कम कुछ व्यय तो उठा ही सकता है. ताकि संचालक/संयोजक और उसकी टीम आर्थिक रूप से थोड़ा-बहुत संबल पा सके. कहते हैं न, बूँद-बूँद से तालाब भरता है. क्या प्रति उपस्थित…</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी ओर से मिला अनुमोदन आश्वस्तिकारी लगा.</p>
<p>वस्तुतः, एक प्रवृति हो गयी है कि किसी ने सलाह दी नहीं कि लोग उसे ही जुए में जोत देते हैं. कि, इतना बोले तो अब आगे बढ़ो ! और सभी पीछे से तमाशा देखेंगे ! जबकि ओबीओ के मंच से सदा सहयोगात्मक रवैये को तरज़ीह देने की बात होती रही है. </p>
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<p>कोई कुछ और सहयोग न दे, कमसे कम कुछ व्यय तो उठा ही सकता है. ताकि संचालक/संयोजक और उसकी टीम आर्थिक रूप से थोड़ा-बहुत संबल पा सके. कहते हैं न, बूँद-बूँद से तालाब भरता है. क्या प्रति उपस्थित सदस्य २००/ की सहायता राशि नहीं दे सकता ? लेकिन आप दंग रह जायेंगे ?</p>
<p>यदि यह नहीं सही, तन से सहयोग दे. ताकि टीम को मज़बूत हाथ मिल सकें. दो से तीन, तीन से चार, चार से छः की संख्या बने और टीम का स्वरूप आकार लेता जाय !</p>
<p>या मन से कोई सहयोग दे. कोई बेहतर सुझाव दे कर उस पर अपने अनुभव साझा करे. कि कोई आयोजन कैसे सुचारू रूप से व्यवस्थित सम्पन्न हो सके. लेकिन ऐसा नहीं होता. जो आयोजन या प्रयोजन इनिशियेट करे वही भोगे. बाकी, निर्लिप्त बने ऊँंट के करवट लेने की प्रतीक्षा करते दिखते हैं.</p>
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<p>यह तो हुई एक बात. दूसरी बात, कि ओबीओ के परिवार से कई लोग जुड़े और आवश्यक एवं अपनी क्षमता भर ’ज्ञान’ लेकर अपनी ओर से ही ’उर्वारुक बन्धन’ को प्राप्त हो गये. कुछ तो बाहर की दुनिया में भरपूर क्षमता से ’वाही-तबाही’ बकते रहे. लम्बे समय तक. साढ़े तीन-चार साल पहले एक सज्जन ने मुझे फोन कर कहा था, कि मंच तो अब बन्द ही हो रहा है. कौन चलायेगा इसे !? अब वे सज्जन आयोजन के अपलोड हुए फोटुओं को लाइक करना शुरु कर दिये हैं. ऐसे मौके ऐसी बातों को याद करने और सचेत होने केलिए भी हुआ करते हैं. </p>
<p>बातें बहुत सी हैं.</p>
<p></p> आदरणीय गोपाल नारायन जी, लखनऊ…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7686512016-05-26T17:36:28.872ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, लखनऊ चैप्टर के संयोजक आदरणीय शरदिन्दु जी जिस तरह के झंझावात में घिरे थे, उसका पूरा भान है हमें. करीब-करीब सारी गतिविधियों और पारिवारिक परेशानियों की आदरणीय स्वयं जानाकारी देते थे, या, मैं अपनी क्षमतानुसार पूछ लिया करता था. सर्वोपरि, मुझे आप सभी के सदैव तत्पर होने और हर हाल में मासिक गोष्ठी करा पाने के ऊपर आश्वस्ति बनी रहती है. साहित्यिक गतिविधियों को सुचारू रूप से करा पाना इतना सहज नहीं है. सर्वोपरि किसी को सार्थक रचनाकर्म के प्रति प्रोत्साहित करना सदा से कठिन कार्य…</p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, लखनऊ चैप्टर के संयोजक आदरणीय शरदिन्दु जी जिस तरह के झंझावात में घिरे थे, उसका पूरा भान है हमें. करीब-करीब सारी गतिविधियों और पारिवारिक परेशानियों की आदरणीय स्वयं जानाकारी देते थे, या, मैं अपनी क्षमतानुसार पूछ लिया करता था. सर्वोपरि, मुझे आप सभी के सदैव तत्पर होने और हर हाल में मासिक गोष्ठी करा पाने के ऊपर आश्वस्ति बनी रहती है. साहित्यिक गतिविधियों को सुचारू रूप से करा पाना इतना सहज नहीं है. सर्वोपरि किसी को सार्थक रचनाकर्म के प्रति प्रोत्साहित करना सदा से कठिन कार्य रहा है. कहना अनुचित नहीं होगा, लोग इतने आत्ममुग्ध हैं कि बिना आवश्यक अध्ययन के पता नहीं क्या-क्या लिख कर, जाने क्या-क्या बने होने के भ्रम में पड़े रहते हैं. ऐसे में हर माह गोष्ठियों के माध्यम से सकारात्मक और सार्थक रचनाओं के प्रति उत्सुक करना मज़ाक़ नहीं है.</p>
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<p>आप सबोंकी लगनशीलता के प्रति सादर नमन. </p>
<p></p> यह भी अवश्य है कि मर्सिया पढ़न…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7684052016-05-26T17:13:56.939Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
यह भी अवश्य है कि मर्सिया पढ़ने वालों को ईश्वर सदबुद्धि दें और थोड़ी सी साहित्यिक समझ भी। ओबीओ और ओबीओ का सदस्य होने का मतलब समझने के लिए कम से कम उतनी समझ तो आवश्यक है। वैसे भी यह आत्ममुग्ध और विघ्न संतोषियों का परिवार नहीं है। ओबीओ मंच पर आना अलग बात है और ओबीओ परिवार का होना अलग बात। खैर नेट साथ नहीं दे रहा इसलिए मोबाइल से लिख रहा हूँ। यह भी कारण है कि कम लिख रहा हूँ। इस विन्दु पर बहुत बातें उठती है मन में। ओबीओ सीखने सिखाने का मंच है वमन का नहीं, ये बात पता नहीं कई लोग अब तक समझ क्यों नहीं…
यह भी अवश्य है कि मर्सिया पढ़ने वालों को ईश्वर सदबुद्धि दें और थोड़ी सी साहित्यिक समझ भी। ओबीओ और ओबीओ का सदस्य होने का मतलब समझने के लिए कम से कम उतनी समझ तो आवश्यक है। वैसे भी यह आत्ममुग्ध और विघ्न संतोषियों का परिवार नहीं है। ओबीओ मंच पर आना अलग बात है और ओबीओ परिवार का होना अलग बात। खैर नेट साथ नहीं दे रहा इसलिए मोबाइल से लिख रहा हूँ। यह भी कारण है कि कम लिख रहा हूँ। इस विन्दु पर बहुत बातें उठती है मन में। ओबीओ सीखने सिखाने का मंच है वमन का नहीं, ये बात पता नहीं कई लोग अब तक समझ क्यों नहीं पाये हैं? बकुछ आवश्यक तथ्य स्पष्ट करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ सर। यह स्पष्ट करना इन दिनों फिर आवश्यक लग रहा है। सादर यही तो एहतराम साहिब फरमा रहे…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7685852016-05-26T15:30:09.169Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यही तो एहतराम साहिब फरमा रहे थे मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब !</p>
<p>यही तो एहतराम साहिब फरमा रहे थे मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब !</p> सादर प्रणाम आदरणीय प्रदीप कुम…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7685842016-05-26T15:28:03.009ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>सादर प्रणाम आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी मैं अवश्य ही आता किन्तु यह तिथि हमारे यहाँ चल रहे सिंहस्थ की समाप्ति के दिन से जुडी हुई है इसलिए अवकाश मिल पाना संभव नहीं था.अवश्य ही कभी अवसर मिला तो मैं वहां उपस्थित होउंगा. सादर.</p>
<p>सादर प्रणाम आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी मैं अवश्य ही आता किन्तु यह तिथि हमारे यहाँ चल रहे सिंहस्थ की समाप्ति के दिन से जुडी हुई है इसलिए अवकाश मिल पाना संभव नहीं था.अवश्य ही कभी अवसर मिला तो मैं वहां उपस्थित होउंगा. सादर.</p> आदरणीय सौरभ जी
आप् स्वयं ओ बी…tag:openbooks.ning.com,2016-05-26:5170231:Comment:7683992016-05-26T15:12:19.534Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>आप् स्वयं ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के महत्वपूर्ण पथ-प्रदर्शक सदस्य हैं . मुझसे डॉ० धनञ्जय सिंह ने कहा यह सचमुच एक सर्वांग संपन्न साहित्यिक कार्यक्रम था . इससे बढ़कर और काम्प्लीमेंट क्या हो सकता है . हम सब इस अनुभूति से आश्वस्त हैं कि ओ बी ओ परिवार और उसके उच्च पदाधिकारियों का सानिध्य और स्नेह हमें मिला और शायद हमारा प्रयास भी उन्हें आश्वस्त कर सका . आ० दादा इस कार्यक्रम के ठीक पूर्व जिन झंझावातों से घिरे थे , उसकी जानकारी कम लोगों को है . एक समय तो ऐसा लग रहा था…</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>आप् स्वयं ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के महत्वपूर्ण पथ-प्रदर्शक सदस्य हैं . मुझसे डॉ० धनञ्जय सिंह ने कहा यह सचमुच एक सर्वांग संपन्न साहित्यिक कार्यक्रम था . इससे बढ़कर और काम्प्लीमेंट क्या हो सकता है . हम सब इस अनुभूति से आश्वस्त हैं कि ओ बी ओ परिवार और उसके उच्च पदाधिकारियों का सानिध्य और स्नेह हमें मिला और शायद हमारा प्रयास भी उन्हें आश्वस्त कर सका . आ० दादा इस कार्यक्रम के ठीक पूर्व जिन झंझावातों से घिरे थे , उसकी जानकारी कम लोगों को है . एक समय तो ऐसा लग रहा था की शायद वह कार्यक्रम में हिस्सा ही न ले सकें परन्तु अंतत स्थितियां अनुकूल हुईं और यह अविस्मरणीय आयोजन संभव हुआ . आ० योगराज अनुज की जिन्दादिली और बागी जी की सौम्यता से आयोजन में चार चाँद लगे .आपके विद्वतापूर्ण आख्यान से उपस्थित जन लाभान्वित हुए . आशा है लखनऊ चैप्टर आगे और भी अच्छा करने में सफल होगा . आ० रविप्रभाकर और शुभ्रांशु जी से मिलना एक सुखद अनुभव रहा . सादर .</p>