"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-18 में स्वीकृत सभी रचनाएँ (विषय पर्दे के पीछे) - Open Books Online2024-03-28T23:14:45Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/18-1?commentId=5170231%3AComment%3A805638&feed=yes&xn_auth=noसादर नमस्ते भैया | सही कर दिए…tag:openbooks.ning.com,2016-10-27:5170231:Comment:8106392016-10-27T06:29:20.118Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>सादर नमस्ते भैया | सही कर दिए |</span></span></span></span></span></span><br></br><br></br>~बाजी~</span><br></br><br></br><span>"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।</span></span> <span><span><br></br><span>"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।</span> <br></br><span>"…</span></span></span></span></span></span></span></p>
<p><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>सादर नमस्ते भैया | सही कर दिए |</span></span></span></span></span></span><br/><br/>~बाजी~</span><br/><br/><span>"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।</span></span> <span><span><br/><span>"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।</span> <br/><span>" पर पत्रकार भाई, आजकल तो जलवा आपकी ही कलम का है। आपकी कलम चलते ही, सब घूम जाते हैं । फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है। आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं, हम सब वो कर गुजरते हैं। " डाक्टर साहब व्यंग करते हुए बोल उठे।</span> <br/><br/><span>"सही कह रहे हो आप सब। वैसे हम सब एक ही तालाब के मगरमच्छ हैं। एक-दूजे का ख्याल रखें तो अच्छा होगा। वरना लोग लाठी-डंडे लेकर खोपड़ी फोड़ने पर आमदा हो जाते हैं।" लेखपाल ने बात आगे बढ़ाई|</span><br/><br/><span>"पर ये ताकतवर कलम, हम तक नहीं पहुँच पाती है।" ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोला।</span> <br/><span>"क्यों? आप कोई दूध के धुले तो हैं नहीं।" गाँव का प्रधान बोला।</span> <br/><span>"अरे कौन मूर्ख कहता है हम दूध के धुले हैं। पर काम ऐसा है जल्दी किसी को समझ नहीं आता है हमरा खेल।" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरा जैसे इसका दम्भ था उन्हें ।</span> <br/><span>सारी नालियाँ जैसे बड़े परनाले से मिलती हैं, वैसे ही विधायक महोदय के आते ही, सब उनसे मिलने उनके नजदीक जा पहुँचे।</span> <br/><br/><span>"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोला ।</span> <br/><span>"बिल्कुल, कल आ जाइये हमारे आवास पर। मिल बैठकर बात करतें हैं।" विधायक जी बोले।</span><br/><span>"क्यों ठेकेदार साहब, आप काहे छुप रहे हैं। अरे मियाँ, यह कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका। इतने कम कीमत में तो मैंने तुम्हारा टेंडर पास करवा दिया था, फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...।"</span> <br/><span>"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा। गलती हो गयी, माफ़ करियेगा ।" हाथ जोड़ते हुए ठेकेदार बोला।</span><br/><br/><span>विधायक जी ठेकेदार को छोड़, दूसरी तरफ मुखातिब हुए, "अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें हैं। आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो ही तो हम आपका रख पाएंगे।" विधायक साहब कान के पास बोले।</span><br/><br/><span>"जी सर, पर इस दंगे की तलवार से, मेरा सिर कटने से बचा लीजिए। दामन पर दाग़ नहीं लगाना चाहता । आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा।" साथ में डीएम साहब भी हाथ जोड़ खड़े थे।</span> <br/><span>सुनकर नेता जी मुस्करा उठे।</span> <br/><br/><span>सारे लोगों से मिलने के पश्चात उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी । दो साल पहले तक, जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था। आज अपने आगे-पीछे बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे घूमते देख, गर्व से फूला नहीं समा रहा था।</span><br/><br/><span>तभी सभा कक्ष के दरवाजे पर खड़ा हुआ एक नौजवान सबसे मुखातिब हुआ। उसने विनम्रता से कहा, ‘’और मैं एक किसान परिवार का बेटा हूँ। जिसकी पढ़ाई करवाते-करवाते पिता कर्जे से दबकर आत्महत्या कर बैठे। परिवार का पेट भरने के लिए मुझे चपरासी की नौकरी करनी पड़ रही है। पर मुझे आज समझ आया कि मेरे पिता की आत्महत्या और मेरे परिवार को इस स्थिति में लाने में आप सबका हाथ है। आपका कच्चा चिठ्ठा अब मेरे पास है।‘’</span> <br/><span>बाजी पलट चुकी थी! विधायक से लेकर ठेकेदार तक, सब एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे।<br/><br/>मौलिक और अप्रकाशित</span> <br/><br/></span></span></span></span></span></span></p> अरे ! भैया यह गलती से लिखा र…tag:openbooks.ning.com,2016-10-25:5170231:Comment:8103162016-10-25T11:27:00.040Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p>अरे ! भैया यह गलती से लिखा रह गया | लिखना न था..कापी पेस्ट में कट नहीं पाया ..सादर नमस्ते |</p>
<p>अरे ! भैया यह गलती से लिखा रह गया | लिखना न था..कापी पेस्ट में कट नहीं पाया ..सादर नमस्ते |</p> //पाठको, आगे क्या हुआ होगा,…tag:openbooks.ning.com,2016-10-25:5170231:Comment:8103142016-10-25T11:04:00.761Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>//<span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span><span>पाठको, आगे क्या हुआ होगा, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है।</span></span></span></span></span></span></span>//</p>
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<p>लघुकथा में ऐसा नहीं लिखा जाताI</p>
<p>//<span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span><span>पाठको, आगे क्या हुआ होगा, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है।</span></span></span></span></span></span></span>//</p>
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<p>लघुकथा में ऐसा नहीं लिखा जाताI</p> संशोधित करने की कोशिश की है,…tag:openbooks.ning.com,2016-10-22:5170231:Comment:8096612016-10-22T18:50:40.602Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>संशोधित करने की कोशिश की है, कृपया आदरणीय प्रभाकर भैया जी इसे प्रस्थापित कर दीजिए पहले वाले से ...सादर नमस्ते भैया <br></br><br></br>~बाजी~</span><br></br><br></br><span>"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।</span></span> <span><span><br></br><span>"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।</span> <br></br><span>" पर पत्रकार भाई, आजकल तो…</span></span></span></span></span></span></span></p>
<p><span><span><span><span class="UFICommentBody _1n4g"><span><span>संशोधित करने की कोशिश की है, कृपया आदरणीय प्रभाकर भैया जी इसे प्रस्थापित कर दीजिए पहले वाले से ...सादर नमस्ते भैया <br/><br/>~बाजी~</span><br/><br/><span>"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।</span></span> <span><span><br/><span>"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।</span> <br/><span>" पर पत्रकार भाई, आजकल तो जलवा आपकी ही कलम का है। आपकी कलम चलते ही, सब घूम जाते हैं । फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है। आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं, हम सब वो कर गुजरते हैं। " डाक्टर साहब व्यंग करते हुए बोल उठे।</span> <br/><br/><span>"सही कह रहे हो आप सब। वैसे हम सब एक ही तालाब के मगरमच्छ हैं। एक-दूजे का ख्याल रखें तो अच्छा होगा। वरना लोग लाठी-डंडे लेकर खोपड़ी फोड़ने पर आमदा हो जाते हैं।" लेखपाल ने बात आगे बढ़ाई|</span><br/><br/><span>"पर ये ताकतवर कलम, हम तक नहीं पहुँच पाती है।" ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोला।</span> <br/><span>"क्यों? आप कोई दूध के धुले तो हैं नहीं।" गाँव का प्रधान बोला।</span> <br/><span>"अरे कौन मूर्ख कहता है हम दूध के धुले हैं। पर काम ऐसा है जल्दी किसी को समझ नहीं आता है हमरा खेल।" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरा जैसे इसका दम्भ था उन्हें ।</span> <br/><span>सारी नालियाँ जैसे बड़े परनाले से मिलती हैं, वैसे ही विधायक महोदय के आते ही, सब उनसे मिलने उनके नजदीक जा पहुँचे।</span> <br/><br/><span>"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोला ।</span> <br/><span>"बिल्कुल, कल आ जाइये हमारे आवास पर। मिल बैठकर बात करतें हैं।" विधायक जी बोले।</span><br/><span>"क्यों ठेकेदार साहब, आप काहे छुप रहे हैं। अरे मियाँ, यह कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका। इतने कम कीमत में तो मैंने तुम्हारा टेंडर पास करवा दिया था, फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...।"</span> <br/><span>"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा। गलती हो गयी, माफ़ करियेगा ।" हाथ जोड़ते हुए ठेकेदार बोला।</span><br/><br/><span>विधायक जी ठेकेदार को छोड़, दूसरी तरफ मुखातिब हुए, "अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें हैं। आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो ही तो हम आपका रख पाएंगे।" विधायक साहब कान के पास बोले।</span><br/><br/><span>"जी सर, पर इस दंगे की तलवार से, मेरा सिर कटने से बचा लीजिए। दामन पर दाग़ नहीं लगाना चाहता । आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा।" साथ में डीएम साहब भी हाथ जोड़ खड़े थे।</span> <br/><span>सुनकर नेता जी मुस्करा उठे।</span> <br/><br/><span>सारे लोगों से मिलने के पश्चात उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी । दो साल पहले तक, जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था। आज अपने आगे-पीछे बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे घूमते देख, गर्व से फूला नहीं समा रहा था।</span><br/><br/><span>तभी सभा कक्ष के दरवाजे पर खड़ा हुआ एक नौजवान सबसे मुखातिब हुआ। उसने विनम्रता से कहा, ‘’और मैं एक किसान परिवार का बेटा हूँ। जिसकी पढ़ाई करवाते-करवाते पिता कर्जे से दबकर आत्महत्या कर बैठे। परिवार का पेट भरने के लिए मुझे चपरासी की नौकरी करनी पड़ रही है। पर मुझे आज समझ आया कि मेरे पिता की आत्महत्या और मेरे परिवार को इस स्थिति में लाने में आप सबका हाथ है। आपका कच्चा चिठ्ठा अब मेरे पास है।‘’</span> <br/><span>बाजी पलट चुकी थी! विधायक से लेकर ठेकेदार तक, सब एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे।</span> <br/><span>पाठको, आगे क्या हुआ होगा, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है।</span></span></span></span></span></span></span></p> यथा निवेदित तथा प्रस्थापित.tag:openbooks.ning.com,2016-10-10:5170231:Comment:8070132016-10-10T06:23:30.171Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित.</p>
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित.</p> आदरणीय योगराज प्रभाकर जी मेरी…tag:openbooks.ning.com,2016-10-09:5170231:Comment:8067902016-10-09T13:56:48.392Zविनोद खनगवालhttps://openbooks.ning.com/profile/VinodKhanagwal
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी मेरी लघुकथा का यह संसोधित रूप स्वीकार किया जाए। आपसे विनम्र निवेदन है।<br />
<br />
<br />
पर्दे के पीछे<br />
<br />
सरकार के द्वारा इस बार दिवाली पर चीन निर्मित उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। टीवी पर खबरों में लोग इन उत्पादों का बहिष्कार करके देशभक्ति निभाने की कसमें खा रहे थे। इस विषय पर पड़ोसी दोस्तों के साथ एक गर्मागर्म चर्चा के बाद मैं भी अपनी बेटी के साथ दिवाली की खरीदारी करने चल दिया था।<br />
"पापा ये लो! पापा ये भी ले लो!!"-बेटी ने एक दुकान पर कई चीजें पसंद आ गई थीं।<br />
"कितने का होगा भाई ये…
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी मेरी लघुकथा का यह संसोधित रूप स्वीकार किया जाए। आपसे विनम्र निवेदन है।<br />
<br />
<br />
पर्दे के पीछे<br />
<br />
सरकार के द्वारा इस बार दिवाली पर चीन निर्मित उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। टीवी पर खबरों में लोग इन उत्पादों का बहिष्कार करके देशभक्ति निभाने की कसमें खा रहे थे। इस विषय पर पड़ोसी दोस्तों के साथ एक गर्मागर्म चर्चा के बाद मैं भी अपनी बेटी के साथ दिवाली की खरीदारी करने चल दिया था।<br />
"पापा ये लो! पापा ये भी ले लो!!"-बेटी ने एक दुकान पर कई चीजें पसंद आ गई थीं।<br />
"कितने का होगा भाई ये सब सामान?"<br />
"साहब! दस हजार के करीब हो जाएगा।"-दुकानदार ने हिसाब लगाकर बताया।<br />
"दस हजार का!!! भाई जी और अच्छी सी वेरायटी का सामान नहीं है क्या तुम्हारे पास.....?"<br />
"साहब, आप अंदर चले जाइए। आपको आपके हिसाब का सारा सामान मिल जाएगा।"- दुकानदार की अनुभवी आँखों ने मेरे चेहरे के भाव पढते हुए पर्दे के पीछे बनी दुकान में जाने का इशारा कर दिया।<br />
"ये तो चाइनीज आइटम हैं!!! सरकार ने इसको बैन कर रखा है ना...?"<br />
"साहब, पर्दे के पीछे सब चलता है। कोई दिक्कत नहीं है सभी के पास दिवाली की मिठाई पहुँच चुकी है।"<br />
अब दिवाली की खरीदारी मजबूरी थी इसलिए बिना कोई बहस किये अंदर चला गया। वहाँ जाकर देखा तो देशभक्ति की कसमें खाने वाले दोस्तों की मंडली पहले से ही वहाँ मौजूद थी। सभी की नजरें आपस में मिली तो चहरों पर एक खिसियानी मुस्कुराहट दौड़ गई। सभी के मुँह से एक साथ निकला- "यार, हम तो सिर्फ देखने आए थे।"<br />
<br />
मौलिक और अप्रकाशित हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह ज…tag:openbooks.ning.com,2016-10-09:5170231:Comment:8065762016-10-09T04:17:12.634Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p><span>हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जीI</span></p>
<p><span>हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जीI</span></p> यथा निवेदित तथा संशोधितtag:openbooks.ning.com,2016-10-09:5170231:Comment:8063842016-10-09T04:16:25.783Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p><span>यथा निवेदित तथा संशोधित</span></p>
<p><span>यथा निवेदित तथा संशोधित</span></p> आ० अनुज , प्रथम तो आपके सञ्च…tag:openbooks.ning.com,2016-10-07:5170231:Comment:8067232016-10-07T15:23:35.873Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० अनुज , प्रथम तो आपके सञ्चालन को साधुवाद . पुनः उसी त्रुटि के प्रक्षालन का अनुरोध जिसका संकेत आपने किया था -चौधरी ने साध्वी का हाथ थाम लिया.---इसे कथा से डिलीट करने की कृपा करें . सादर</p>
<p>आ० अनुज , प्रथम तो आपके सञ्चालन को साधुवाद . पुनः उसी त्रुटि के प्रक्षालन का अनुरोध जिसका संकेत आपने किया था -चौधरी ने साध्वी का हाथ थाम लिया.---इसे कथा से डिलीट करने की कृपा करें . सादर</p> सादर हार्दिक आभार सँग सादर नम…tag:openbooks.ning.com,2016-10-07:5170231:Comment:8064232016-10-07T09:05:24.356Zसतविन्द्र कुमार राणाhttps://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
सादर हार्दिक आभार सँग सादर नमन श्रद्धेय योगराज सर।
सादर हार्दिक आभार सँग सादर नमन श्रद्धेय योगराज सर।