ओपन बुक्स ऑन-लाईन, लखनऊ चैप्टर की तृतीय जयन्ती कार्यक्रम (17 मई 2015 ) की एक संक्षिप्त रिपोर्ट – डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव - Open Books Online2024-03-28T12:18:26Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/17-2015?feed=yes&xn_auth=noहार्दिक अभिनंदन एवं बधाई ....…tag:openbooks.ning.com,2015-05-28:5170231:Comment:6591602015-05-28T03:38:29.093ZMohan Sethi 'इंतज़ार'https://openbooks.ning.com/profile/MohanSethi
<p>हार्दिक अभिनंदन एवं बधाई ....लखनऊ चैप्टर की तृतीय जयन्ती के अवसर पर... और इस सुंदर प्रस्तुति के माध्यम से हम सब को भी सम्मलित करने के लिये आभार ...सादर </p>
<p>हार्दिक अभिनंदन एवं बधाई ....लखनऊ चैप्टर की तृतीय जयन्ती के अवसर पर... और इस सुंदर प्रस्तुति के माध्यम से हम सब को भी सम्मलित करने के लिये आभार ...सादर </p> आदरणीय गोपाल नारायनजी, मैंने…tag:openbooks.ning.com,2015-05-25:5170231:Comment:6585372015-05-25T07:36:16.696ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, मैंने इस आयोजन की रूपरेखा में कोई योगदान नहीं दिया है. आयोजन की सफलता आप सभी लखनऊवासी सदस्यों की सचेष्ट संलग्नता का परिणाम है. सभी ने अपने दायित्व का विन्दुवत निर्वहन किया है. आपने भी, देखिये, जिस मनोयोग से स्मारिका ’सृसिक्षा’ का सम्पादन किया है, वह आपकी विद्वता का परिचायक है. इस कार्य में किसी सदस्य ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. आदरणीय शरदिन्दुजी ने निर्णय लेने के क्रम में सभी सदस्यों से सुझाव स्वीकार किये लेकिन अंतिम निर्णय सर्वमान्य तथा स्वीकृत सोच-समझ पर ही बनी.…</p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, मैंने इस आयोजन की रूपरेखा में कोई योगदान नहीं दिया है. आयोजन की सफलता आप सभी लखनऊवासी सदस्यों की सचेष्ट संलग्नता का परिणाम है. सभी ने अपने दायित्व का विन्दुवत निर्वहन किया है. आपने भी, देखिये, जिस मनोयोग से स्मारिका ’सृसिक्षा’ का सम्पादन किया है, वह आपकी विद्वता का परिचायक है. इस कार्य में किसी सदस्य ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. आदरणीय शरदिन्दुजी ने निर्णय लेने के क्रम में सभी सदस्यों से सुझाव स्वीकार किये लेकिन अंतिम निर्णय सर्वमान्य तथा स्वीकृत सोच-समझ पर ही बनी. <br/>लखनऊ चैप्टर का सदस्य होने के बावज़ूद यह मेरी बदकिस्मती रही कि मै एक भी मासिक गोष्ठी में शिरकत नहीं कर पाया. <br/>आगे से इस हेतु अवश्य मेरा सकारात्मक प्रयास रहेगा. <br/>सादर<br/><br/></p> आदरणीय सौरभ जी
सच्चाई तो…tag:openbooks.ning.com,2015-05-24:5170231:Comment:6582862015-05-24T08:50:18.452Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p> सच्चाई तो यह है की आप स्वयं लखनऊ चैप्टर के सदस्य है और सोने में सुगंध यह भी कि ओ बी ओ प्रबंधन टीम के सदस्य भी हैं फिर भी स्वयं को हाशिये में डाले हुए हैं I सच्चाई यह है की हमारी टीम ने आपके और आदरणीय दादा शरदिंदु जी के निर्देशन में कार्य किया है और सजग एवं कुशल नेतृत्व ही सदैव सफलता का राज हुआ करत़ा है I अभी तो यह एक शरुआत है .सादर .</p>
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<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p> सच्चाई तो यह है की आप स्वयं लखनऊ चैप्टर के सदस्य है और सोने में सुगंध यह भी कि ओ बी ओ प्रबंधन टीम के सदस्य भी हैं फिर भी स्वयं को हाशिये में डाले हुए हैं I सच्चाई यह है की हमारी टीम ने आपके और आदरणीय दादा शरदिंदु जी के निर्देशन में कार्य किया है और सजग एवं कुशल नेतृत्व ही सदैव सफलता का राज हुआ करत़ा है I अभी तो यह एक शरुआत है .सादर .</p>
<p></p> आभासी संसार के एक हिस्से का स…tag:openbooks.ning.com,2015-05-24:5170231:Comment:6582782015-05-24T07:54:25.019ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आभासी संसार के एक हिस्से का सापेक्ष स्वरूप लखनऊ में अपना स्थापना दिवस मना रहा हो तो इस पूरे ’संसार’ की समस्त सकारात्मक शक्तियाँ इस हेतु तत्पर विचारों से प्रभावित हुई दिखीं. ऐसा होना किसी वैचारिक मंच का सबसे बड़ा संबल हुआ करता है. <br></br>आदरणीय शरदिन्दु जी के ऊर्जस्वी नेतृत्व तथा आदरणीय गोपाल नारायणजी की उत्साही क्रियाशीलता में सम्पन्न हुआ आयोजन कई कारणों के चिर-स्मरणीय हो गया. इसकी अनुभूति आयोजन में उपस्थित सदस्यों और प्रतिभागियों को अवश्य हुई है. यह रिपोर्ताज़ भी इसी आशय का आईना बना है. कुशल…</p>
<p>आभासी संसार के एक हिस्से का सापेक्ष स्वरूप लखनऊ में अपना स्थापना दिवस मना रहा हो तो इस पूरे ’संसार’ की समस्त सकारात्मक शक्तियाँ इस हेतु तत्पर विचारों से प्रभावित हुई दिखीं. ऐसा होना किसी वैचारिक मंच का सबसे बड़ा संबल हुआ करता है. <br/>आदरणीय शरदिन्दु जी के ऊर्जस्वी नेतृत्व तथा आदरणीय गोपाल नारायणजी की उत्साही क्रियाशीलता में सम्पन्न हुआ आयोजन कई कारणों के चिर-स्मरणीय हो गया. इसकी अनुभूति आयोजन में उपस्थित सदस्यों और प्रतिभागियों को अवश्य हुई है. यह रिपोर्ताज़ भी इसी आशय का आईना बना है. कुशल नेतृत्व की क्षमता और सकर्मक क्रियाप्रणाली का अनुकरणीय संयोग था, सुचारू रूप से सम्पन्न हुआ कार्यक्रम !<br/> <br/>मैं आदरणीय शरदिन्दुजी और उनकी पूरी टीम को मुझे इस कार्यक्रम में किसी उत्तरदायित्व हेतु सूचीबद्ध करने के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूँ. साथ ही, आदरणीय गोपाल नारायनजी को इस सुन्दर् और सर्वसमाही रिपोर्ताज़ के लिए सादर धन्यवाद देता हूँ. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p> वाह !अतिउत्तम , बहुत ही सुंदर…tag:openbooks.ning.com,2015-05-24:5170231:Comment:6582742015-05-24T07:45:05.974Zasha pandey ojhahttps://openbooks.ning.com/profile/ashapandeyojha
<p><span>वाह !अतिउत्तम , बहुत ही सुंदर आयोजन के लिए बधाई स्वीकारें दिल से । समस्त ओबीओ परिवार को बहुत-बहुत बधाई इस सफल आयोजन के लिए । </span></p>
<p><span>वाह !अतिउत्तम , बहुत ही सुंदर आयोजन के लिए बधाई स्वीकारें दिल से । समस्त ओबीओ परिवार को बहुत-बहुत बधाई इस सफल आयोजन के लिए । </span></p> वाह !!!! बहुत ही सुंदर और सुख…tag:openbooks.ning.com,2015-05-24:5170231:Comment:6581852015-05-24T07:20:09.716Zkanta royhttps://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
वाह !!!! बहुत ही सुंदर और सुखद रहा पढना और देखना आयोजन के इस सुंदरतम पोस्ट का । पढने और देखने के बाद लालसा जाग उठी कि काश हम भी इसके हिस्से होते । ओबीओ परिवार को बहुत बहुत बधाई इस भव्यतम सफल आयोजन के लिए । आभार
वाह !!!! बहुत ही सुंदर और सुखद रहा पढना और देखना आयोजन के इस सुंदरतम पोस्ट का । पढने और देखने के बाद लालसा जाग उठी कि काश हम भी इसके हिस्से होते । ओबीओ परिवार को बहुत बहुत बधाई इस भव्यतम सफल आयोजन के लिए । आभार आदरणीय शरदिंदु भाई साहब , इस…tag:openbooks.ning.com,2015-05-23:5170231:Comment:6578732015-05-23T07:44:10.138Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय शरदिंदु भाई साहब , इस विशाल और सफल आयोजन का रिपोर्ट विसतार से पढ़ के वहाँ न पहुँच पाना खूब अखरा । स्मारिका तो आन लाइन पढ़ चुका , बहुत सुन्दर लगा , अपने अंदर साहित्य के सभी रंग समेटे हुये है । बहुत बहुत आभार आपका स्मारिका साझा करने के लिये । सभी चित्र भी बहुत मोहक हैं । सफल आयोजन के लिये आपको और मंच को हार्दिक बधाइयाँ ॥</p>
<p>आदरणीय शरदिंदु भाई साहब , इस विशाल और सफल आयोजन का रिपोर्ट विसतार से पढ़ के वहाँ न पहुँच पाना खूब अखरा । स्मारिका तो आन लाइन पढ़ चुका , बहुत सुन्दर लगा , अपने अंदर साहित्य के सभी रंग समेटे हुये है । बहुत बहुत आभार आपका स्मारिका साझा करने के लिये । सभी चित्र भी बहुत मोहक हैं । सफल आयोजन के लिये आपको और मंच को हार्दिक बधाइयाँ ॥</p> आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी सुंदर…tag:openbooks.ning.com,2015-05-23:5170231:Comment:6577922015-05-23T07:27:25.935Zsharadindu mukerjihttps://openbooks.ning.com/profile/sharadindumukerji
आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभार. आप आते तो और अच्छा लगता वैसे 'विवशताएँ' मैं भी समझता हूँ. सादर.
आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभार. आप आते तो और अच्छा लगता वैसे 'विवशताएँ' मैं भी समझता हूँ. सादर. आदरणीय गोपाल नारायन जी, आयोजन…tag:openbooks.ning.com,2015-05-23:5170231:Comment:6578682015-05-23T07:24:20.708Zsharadindu mukerjihttps://openbooks.ning.com/profile/sharadindumukerji
आदरणीय गोपाल नारायन जी, आयोजन की सफलता में हम सबका सम्मिलित प्रयास, आप लोगों की मेहनत और ओ.बी.ओ.प्रबंधन टीम द्वारा यथास्थान समयोचित दिशानिर्देश सभी कुछ कारण स्वरूप निहित है. हमें और शायद अन्य बहुतों को इस आयोजन की सफलता ने प्रोत्साहित किया है, यही सबसे बड़ी उपलब्धि है. सभी सम्बद्ध शुभचिंतकों का हार्दिक आभार. सादर.
आदरणीय गोपाल नारायन जी, आयोजन की सफलता में हम सबका सम्मिलित प्रयास, आप लोगों की मेहनत और ओ.बी.ओ.प्रबंधन टीम द्वारा यथास्थान समयोचित दिशानिर्देश सभी कुछ कारण स्वरूप निहित है. हमें और शायद अन्य बहुतों को इस आयोजन की सफलता ने प्रोत्साहित किया है, यही सबसे बड़ी उपलब्धि है. सभी सम्बद्ध शुभचिंतकों का हार्दिक आभार. सादर. परम आदरणीय शरदिंदु मुकर्जी सर…tag:openbooks.ning.com,2015-05-22:5170231:Comment:6575812015-05-22T19:54:23.990Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>परम आदरणीय <span>शरदिंदु मुकर्जी सर, </span></p>
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<p>इस भव्य आयोजन में उपस्थित न हो पाने का बहुत खेद हो रहा है. विवशताएँ ...?</p>
<p>आपने आयोजन की विस्तृत रिपोर्ट सचित्र प्रस्तुत कर हमें भी आयोजन से जोड़ दिया. </p>
<p><strong> </strong>स्मारिका <strong>‘<a href="http://www.docdroid.net/10rj1/obo-smarika.pdf.html" target="_blank">सिसृक्षा</a>’</strong> तो पढ़ चुका था किन्तु आयोजन के कविसम्मेलन/मुशायरे की विस्तृत झांकी और परिचर्चा के महत्वपूर्ण विन्दुओं पर रिपोर्ट के लिए हार्दिक आभार.</p>
<p>परम आदरणीय <span>शरदिंदु मुकर्जी सर, </span></p>
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<p>इस भव्य आयोजन में उपस्थित न हो पाने का बहुत खेद हो रहा है. विवशताएँ ...?</p>
<p>आपने आयोजन की विस्तृत रिपोर्ट सचित्र प्रस्तुत कर हमें भी आयोजन से जोड़ दिया. </p>
<p><strong> </strong>स्मारिका <strong>‘<a href="http://www.docdroid.net/10rj1/obo-smarika.pdf.html" target="_blank">सिसृक्षा</a>’</strong> तो पढ़ चुका था किन्तु आयोजन के कविसम्मेलन/मुशायरे की विस्तृत झांकी और परिचर्चा के महत्वपूर्ण विन्दुओं पर रिपोर्ट के लिए हार्दिक आभार.</p>