"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-146 - Open Books Online2024-03-28T23:56:11Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/146-1?commentId=5170231%3AComment%3A1095228&feed=yes&xn_auth=noआदरणीया नूतन गर्ग जी, आपकी प…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10953092022-12-18T18:28:45.436ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीया नूतन गर्ग जी, आपकी प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>मुक्तक हो या कोई गेय रचना, उनकी तुकान्तता के लिए सटीक नियम बने हुए हैं. उन नियमों का अवगाहन आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आदरणीया नूतन गर्ग जी, आपकी प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>मुक्तक हो या कोई गेय रचना, उनकी तुकान्तता के लिए सटीक नियम बने हुए हैं. उन नियमों का अवगाहन आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कुण्डल…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10950852022-12-18T18:26:41.981ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कुण्डलिया छंद में प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>वैसे इस छंद के मूलभूत विधान पर तनिक अध्ययन आवश्यक है. </p>
<p>हार्दिक बधाई </p>
<p></p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कुण्डलिया छंद में प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>वैसे इस छंद के मूलभूत विधान पर तनिक अध्ययन आवश्यक है. </p>
<p>हार्दिक बधाई </p>
<p></p> आदरणीया नयना जी,
आपकी प्रस्तु…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10952402022-12-18T18:23:55.819ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया नयना जी,</p>
<p>आपकी प्रस्तुत रचना के माध्यम से आत्मीय भावनाएँ शाब्दिक हुई हैं. हताशा के गहन पलों में कन्धों को मिला आत्मीय स्पर्श पुनः ऊर्जस्वी कर देता है. </p>
<p>प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और बधाई. </p>
<p>शुभ-शुभ </p>
<p></p>
<p>आदरणीया नयना जी,</p>
<p>आपकी प्रस्तुत रचना के माध्यम से आत्मीय भावनाएँ शाब्दिक हुई हैं. हताशा के गहन पलों में कन्धों को मिला आत्मीय स्पर्श पुनः ऊर्जस्वी कर देता है. </p>
<p>प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और बधाई. </p>
<p>शुभ-शुभ </p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
भाव प…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10951452022-12-18T18:18:41.772ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,</p>
<p>भाव पक्ष से समृद्ध इस रचना के प्रति हार्दिक बधाई. आजके सम्बन्धों में जैसा हल्कापन व्याप गया है, उस पर आपकी कलम बखूब चली है. </p>
<p></p>
<p>वैसे कुछ बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>’कोई’ के साथ ’भी’ का प्रयोग उचित नहीं है. </p>
<p></p>
<p><span>कौन सोनी भला आज सोनी रही</span><br></br><span>कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।</span><br></br><span>सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं</span><br></br><span>तन को पाने को केवल बना मीत है .... वाह वाह वाह…</span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,</p>
<p>भाव पक्ष से समृद्ध इस रचना के प्रति हार्दिक बधाई. आजके सम्बन्धों में जैसा हल्कापन व्याप गया है, उस पर आपकी कलम बखूब चली है. </p>
<p></p>
<p>वैसे कुछ बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>’कोई’ के साथ ’भी’ का प्रयोग उचित नहीं है. </p>
<p></p>
<p><span>कौन सोनी भला आज सोनी रही</span><br/><span>कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।</span><br/><span>सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं</span><br/><span>तन को पाने को केवल बना मीत है .... वाह वाह वाह ! </span></p>
<p></p>
<p><span>मन के आँगन में भनी भीत है... ... क्या बात है ! </span></p>
<p></p>
<p><span>इस रचना के लिए पुनः हार्दिक बधाई. </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p> दिल का रिश्ता : पाँच आयाम
1.…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10950822022-12-18T18:07:37.405ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p><span style="font-size: 2em;">दिल का रिश्ता : पाँच आयाम</span></p>
<div class="xg_module_body"><div class="postbody"><div class="xg_user_generated"><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images"><div class="clear"><div dir="ltr"></div>
<div dir="ltr">1.</div>
<div dir="ltr">जिसका होना निर्लिप्त रखे <br></br>जिसका न होना</div>
<div dir="ltr">उद्विग्न </div>
<div dir="ltr"> </div>
<div dir="ltr">उससे<br></br>दिल का रिश्ता होता है। <br></br> <br></br>2.<br></br>रुधिर का<br></br>धमनियों में…</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<p><span style="font-size: 2em;">दिल का रिश्ता : पाँच आयाम</span></p>
<div class="xg_module_body"><div class="postbody"><div class="xg_user_generated"><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images"><div class="clear"><div dir="ltr"></div>
<div dir="ltr">1.</div>
<div dir="ltr">जिसका होना निर्लिप्त रखे <br/>जिसका न होना</div>
<div dir="ltr">उद्विग्न </div>
<div dir="ltr"> </div>
<div dir="ltr">उससे<br/>दिल का रिश्ता होता है। <br/> <br/>2.<br/>रुधिर का<br/>धमनियों में बहना / बहाना <br/>किसी रिश्ते को नाम दे, मगर <br/>परस्पर भावों की आवृतियाँ तय नहीं करता<br/>दिल तय करता है<br/>रिश्ते को नाम नहीं<br/>परस्पर उमगती भावनाओं को</div>
<div dir="ltr">आवृतियाँ देता है। <br/> <br/>3.<br/>तारी हो गयी चुप्पी</div>
<div dir="ltr">बोलती है<br/>जिसे बोलता<br/>न आँखें देख पाती हैं<br/>न उसके बोल कान सुन पाते हैं </div>
<div dir="ltr"> </div>
<div dir="ltr">वह दिल है<br/>चुप्पियों को बोलता देखता भी है<br/>उनके बोल सुनता भी है<br/>उसकी धड़कनों को अगर<br/>समझ सको..<br/> <br/>4.<br/>जब दिल की दिल से बातें होने लगती हैं <br/>देह किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है<br/> <br/>5.<br/>जन<br/>परिवार<br/>कुटुम्ब </div>
<div dir="ltr">समाज<br/>राष्ट्र.. <br/>लेन-देन से नहीं<br/>उद्दात्त भावनाओं से समझ में आते हैं.. <br/>***</div>
<div dir="ltr"></div>
<div dir="ltr">(मौलिक और अप्रकाशित) </div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div> मुक्तक
1.'रिश्ता छोटा बड़ा न…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10950062022-12-18T15:18:08.262ZNutan Garghttps://openbooks.ning.com/profile/0d57gb7kdckcj
मुक्तक<br />
<br />
1.'रिश्ता छोटा बड़ा नहीं देखता,<br />
रिश्ता अमीर गरीब नहीं देखता,<br />
रिश्ता जो लोगों के मध्य तारतम्य जोड़े,<br />
रिश्ता दिल के भावों को देखता।'<br />
<br />
<br />
2.'क्यों नहीं होता सबसे दिल का रिश्ता,<br />
सबसे अनमोल जो है दिल का रिश्ता,<br />
इसकी कद्र करना जो जानता,<br />
उससे ही जुड़ता दिल का रिश्ता।'<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
मुक्तक<br />
<br />
1.'रिश्ता छोटा बड़ा नहीं देखता,<br />
रिश्ता अमीर गरीब नहीं देखता,<br />
रिश्ता जो लोगों के मध्य तारतम्य जोड़े,<br />
रिश्ता दिल के भावों को देखता।'<br />
<br />
<br />
2.'क्यों नहीं होता सबसे दिल का रिश्ता,<br />
सबसे अनमोल जो है दिल का रिश्ता,<br />
इसकी कद्र करना जो जानता,<br />
उससे ही जुड़ता दिल का रिश्ता।'<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10951422022-12-18T08:19:33.940Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलिया हुई हैं। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलिया हुई हैं। हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई तपन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10950032022-12-18T07:57:44.324Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तपन जी, सादर अभिवादन। गीत और ओबीओ पर आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।</p>
<p>आ. भाई तपन जी, सादर अभिवादन। गीत और ओबीओ पर आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।</p> वाह लक्ष्मण जी बहुत समय बात आ…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10952282022-12-18T07:07:33.935ZTapan Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/TapanDubey
<p>वाह लक्ष्मण जी बहुत समय बात आज ओबीओ पर लोटा हूँ। आपकी रचना पड़ कर बड़ा अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।</p>
<p>वाह लक्ष्मण जी बहुत समय बात आज ओबीओ पर लोटा हूँ। आपकी रचना पड़ कर बड़ा अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।</p> कुण्डलिया छंद
दिल क…tag:openbooks.ning.com,2022-12-18:5170231:Comment:10951362022-12-18T03:25:26.966ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p> कुण्डलिया छंद </p>
<p></p>
<p>दिल का रिश्ता हे नहीं, सियासत का गुलाम !</p>
<p>बिछें खूब जग गोटियाँ, शतरंज सरे आम !!</p>
<p>शतरंज सरे आम, धर्म कब आयोजक का !</p>
<p>कवि हुलास चाहिए, शान्त वातावरण हल्का !!</p>
<p>सुख का घर साम्राज्य, उल्लास जगती सस्ता !</p>
<p>रचे बहुजन हिताय, विश्व हो दिल का रिश्ता !!</p>
<p></p>
<p>यह जगती है ईश की, अनुपम रचना जान !</p>
<p>रचयिता समाया सृजन, दिव्य दृष्टि हो ज्ञान !!</p>
<p>दिव्य दृष्टि हो ज्ञान, ईश झाँकता सृष्टि से …</p>
<p> कुण्डलिया छंद </p>
<p></p>
<p>दिल का रिश्ता हे नहीं, सियासत का गुलाम !</p>
<p>बिछें खूब जग गोटियाँ, शतरंज सरे आम !!</p>
<p>शतरंज सरे आम, धर्म कब आयोजक का !</p>
<p>कवि हुलास चाहिए, शान्त वातावरण हल्का !!</p>
<p>सुख का घर साम्राज्य, उल्लास जगती सस्ता !</p>
<p>रचे बहुजन हिताय, विश्व हो दिल का रिश्ता !!</p>
<p></p>
<p>यह जगती है ईश की, अनुपम रचना जान !</p>
<p>रचयिता समाया सृजन, दिव्य दृष्टि हो ज्ञान !!</p>
<p>दिव्य दृष्टि हो ज्ञान, ईश झाँकता सृष्टि से !</p>
<p>स्वीकृति उसकी हुआ, सृजन काव्य कवि दृष्टि से !!</p>
<p>दिल से रिश्ता रचा , कविता भजन लगती है !</p>
<p>कृपा मात्र ब्रह्म की, हो सृजन जगती है !!</p>
<p></p>
<p>जिम्मेदारी छोड़ सुन, किया कुठाराघात !</p>
<p>कुदृष्टि कविता क्या पड़ी, खेत तुषारापात !!</p>
<p>खेत तुषारापात, सूखते सारे पौधे !</p>
<p>संकल्प भूल गये, पड़े सब आसन औंधे !!</p>
<p>कह 'चेतन' कविराय, लगी आग फुलवारी !</p>
<p> कि पहरेदार गये, भूल सब जिम्मेदारी !!</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>