"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-145 - Open Books Online2024-03-29T06:19:00Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/145-1?commentId=5170231%3AComment%3A1093273&feed=yes&xn_auth=noरचना की प्रशंसा करके मेरा उत्…tag:openbooks.ning.com,2022-11-13:5170231:Comment:10934302022-11-13T23:50:32.738Zindravidyavachaspatitiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/indravidyavachaspatitiwari866
<p>रचना की प्रशंसा करके मेरा उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>रचना की प्रशंसा करके मेरा उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आ. भाई विद्यावाचस्पति जी, साद…tag:openbooks.ning.com,2022-11-13:5170231:Comment:10932832022-11-13T08:58:57.398Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विद्यावाचस्पति जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई विद्यावाचस्पति जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।</p> आज जब दुनिया में
चारों तरफ
हा…tag:openbooks.ning.com,2022-11-13:5170231:Comment:10932802022-11-13T01:53:40.293Zindravidyavachaspatitiwarihttps://openbooks.ning.com/profile/indravidyavachaspatitiwari866
<p>आज जब दुनिया में</p>
<p>चारों तरफ</p>
<p>हाहाकार</p>
<p>मचा हुआ है।</p>
<p>आग के</p>
<p>बरसने से</p>
<p>दुनिया जल रही है</p>
<p>तब</p>
<p>हम</p>
<p>यह दिवास्वप्न </p>
<p>पाल रहे हैं</p>
<p>कि</p>
<p>एक ऐसा समय आयेगा जब</p>
<p>सब खुशहाल होंगे?</p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>आज जब दुनिया में</p>
<p>चारों तरफ</p>
<p>हाहाकार</p>
<p>मचा हुआ है।</p>
<p>आग के</p>
<p>बरसने से</p>
<p>दुनिया जल रही है</p>
<p>तब</p>
<p>हम</p>
<p>यह दिवास्वप्न </p>
<p>पाल रहे हैं</p>
<p>कि</p>
<p>एक ऐसा समय आयेगा जब</p>
<p>सब खुशहाल होंगे?</p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p> आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-11-12:5170231:Comment:10933182022-11-12T09:34:30.792Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।</p> दिवास्वप्न......एक ग़ज़ल
122…tag:openbooks.ning.com,2022-11-12:5170231:Comment:10932732022-11-12T00:04:42.870ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>दिवास्वप्न......एक ग़ज़ल </p>
<p>122 122 122 122</p>
<p>बह्र ए मुतकारिब मुसम्मन सालिम</p>
<p></p>
<p>कवायद उन्होंने वो की थी वफ़ा में</p>
<p>हैं करते जो तामीर मंज़िल हवा में</p>
<p></p>
<p>दुराग्रह से वो मुक्त कब हो सके हैं </p>
<p>दिवास्वप्न ये है किया सब वफ़ा में</p>
<p></p>
<p>हमेशा की ताबीर सबकी अहं वश</p>
<p>न सोचा पड़ेंगे कभी खुद करबला में</p>
<p></p>
<p>किनारे ग़लत है वो साहिल सही है</p>
<p>है अंदाज़ उनका गज़ब सुन कला है</p>
<p></p>
<p>कि फुरसत उन्हें सोचते वो मिथक…</p>
<p>दिवास्वप्न......एक ग़ज़ल </p>
<p>122 122 122 122</p>
<p>बह्र ए मुतकारिब मुसम्मन सालिम</p>
<p></p>
<p>कवायद उन्होंने वो की थी वफ़ा में</p>
<p>हैं करते जो तामीर मंज़िल हवा में</p>
<p></p>
<p>दुराग्रह से वो मुक्त कब हो सके हैं </p>
<p>दिवास्वप्न ये है किया सब वफ़ा में</p>
<p></p>
<p>हमेशा की ताबीर सबकी अहं वश</p>
<p>न सोचा पड़ेंगे कभी खुद करबला में</p>
<p></p>
<p>किनारे ग़लत है वो साहिल सही है</p>
<p>है अंदाज़ उनका गज़ब सुन कला है</p>
<p></p>
<p>कि फुरसत उन्हें सोचते वो मिथक हैं</p>
<p>समझते हैं खुद को वो ग़ालिब ख़ला में</p>
<p></p>
<p>वो करते हैं सेवा तो हिन्दी मगर दिल </p>
<p>है उर्दू ही उनके कहीं मन पढ़ा में </p>
<p></p>
<p>वो अवतार नफ़रत मुहब्बत ग़ज़ल की</p>
<p>नहीं जानते हैं वो मरक़ज बला है </p>
<p></p>
<p>कि बेज़ार जीवन हुआ हादसा है</p>
<p>बड़ी बेमज़ा ज़िन्दगी फलसफ़ा में</p>
<p></p>
<p>ख़ुदारा बचाए हमें मनपढ़ों से </p>
<p>घटाकर जो 'चेतन' रखें सच जरा में</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p> दोहे *** दिवास्वप्न की चादर…tag:openbooks.ning.com,2022-11-11:5170231:Comment:10931672022-11-11T23:13:18.547Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p dir="ltr"><b>दोहे</b><br></br> ***<br></br> दिवास्वप्न की चादरें, जो ओढ़े दिन-रात।<br></br> उसकी जग में है नहीं, बनती बिगड़ी बात।१।<br></br> *<br></br> रोटी, कपड़ा, गेह का, दिवास्वप्न नित बेच।<br></br> नेता निर्धन को कहें, सकल देश हित बेच।२।<br></br> *<br></br> अपनो के सिर रख दिया, भले लोक ने ताज।<br></br> दिवास्वप्न स्वाधीनता, फिर भी हमको आज।३।<br></br> *<br></br> दिवास्वप्न है देश का, तब तक सही विकास<br></br> नेताओं की जब तलक, बची लोभ की प्यास।४।<br></br> *<br></br> दिवास्वप्न की भीख पा , जनता हुई निहाल।<br></br> नेताओं के कंठ में, डाल रही …</p>
<p dir="ltr"><b>दोहे</b><br/> ***<br/> दिवास्वप्न की चादरें, जो ओढ़े दिन-रात।<br/> उसकी जग में है नहीं, बनती बिगड़ी बात।१।<br/> *<br/> रोटी, कपड़ा, गेह का, दिवास्वप्न नित बेच।<br/> नेता निर्धन को कहें, सकल देश हित बेच।२।<br/> *<br/> अपनो के सिर रख दिया, भले लोक ने ताज।<br/> दिवास्वप्न स्वाधीनता, फिर भी हमको आज।३।<br/> *<br/> दिवास्वप्न है देश का, तब तक सही विकास<br/> नेताओं की जब तलक, बची लोभ की प्यास।४।<br/> *<br/> दिवास्वप्न की भीख पा , जनता हुई निहाल।<br/> नेताओं के कंठ में, डाल रही जयमाल।५।<br/> *<br/> दिवास्वप्न मत देखना, नेताओं की ओट।<br/> उनके तो हर रूप में, भरा हुआ है खोट।६।<br/> *<br/> अभिलाषायें शेष जो, दिवास्वप्न है नाम।<br/> पूरित जो होती रहीं, बन जाती सुख धाम।७।<br/> *<br/> मौलिक/अप्रकाशित</p> सादर अभिवादन।tag:openbooks.ning.com,2022-11-11:5170231:Comment:10934092022-11-11T23:12:46.987Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>सादर अभिवादन।</p>
<p>सादर अभिवादन।</p> स्वागतमtag:openbooks.ning.com,2022-11-11:5170231:Comment:10931642022-11-11T18:34:14.166ZAdminhttps://openbooks.ning.com/profile/Admin
<p>स्वागतम</p>
<p>स्वागतम</p>