"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-144 - Open Books Online2024-03-28T18:31:11Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/144?id=5170231%3ATopic%3A1085568&feed=yes&xn_auth=no//आ. अमीरुद्दीन साहब, अर्थ वि…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10859752022-06-25T17:42:47.400Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//आ. अमीरुद्दीन साहब, अर्थ विपर्यय पुनः हो जाएगा, अब । , और, वही दोष भी क्योकि में अथवा अब दोनों अव्यय अपादान कारक अर्थात् समय ( काल ) का बोध कराते हैं//</p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कृपया मंच पर ग़लत जानकारी प्रचारित न करें। आप '<strong>में</strong>' और '<strong>अब</strong>' दोनों को अव्यय अपादान कारक अर्थात् समय ( काल ) का बोध कराने वाले बता रहे हैं जो कि भ्रामक कथन है।</p>
<p>जबकि आप जानते होंगे कि '<strong>में</strong>' अधिकरण कारक संज्ञा है जिस से क्रिया के आधार का बोध होता है और…</p>
<p>//आ. अमीरुद्दीन साहब, अर्थ विपर्यय पुनः हो जाएगा, अब । , और, वही दोष भी क्योकि में अथवा अब दोनों अव्यय अपादान कारक अर्थात् समय ( काल ) का बोध कराते हैं//</p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कृपया मंच पर ग़लत जानकारी प्रचारित न करें। आप '<strong>में</strong>' और '<strong>अब</strong>' दोनों को अव्यय अपादान कारक अर्थात् समय ( काल ) का बोध कराने वाले बता रहे हैं जो कि भ्रामक कथन है।</p>
<p>जबकि आप जानते होंगे कि '<strong>में</strong>' अधिकरण कारक संज्ञा है जिस से क्रिया के आधार का बोध होता है और '<strong>अब</strong>' क्रिया विशेषण है जिस से काल का बोध होता है। जब व्याकरण की दृष्टि से दोनों अलग हैं तो दोनों का प्रभाव समान कैसे हो सकता है और कैसे पुनः अर्थ विपर्यय हो जाएगा? कृपया स्पष्ट करें। </p> //ज़माना यहाँ समय के लिए प्रयु…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10860612022-06-25T15:36:02.814Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//ज़माना यहाँ समय के लिए प्रयुक्त किया है। अतः को का प्रयोग उचित नहीं होगा। क्योंकि यहाँ पर कहन का अर्थ सदियों के अर्थ में प्रयुक्त है।//</p>
<p>ठीक है आदरणीय । </p>
<p>//ज़माना यहाँ समय के लिए प्रयुक्त किया है। अतः को का प्रयोग उचित नहीं होगा। क्योंकि यहाँ पर कहन का अर्थ सदियों के अर्थ में प्रयुक्त है।//</p>
<p>ठीक है आदरणीय । </p> //चलिए, माना, फिर भी, जनाब, 2…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10861272022-06-25T15:32:56.232Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//चलिए, माना, फिर भी, जनाब, 22 ( फैलुन ) पर एक ही साकिन की छूट होगी, 112 तक ही विस्तार मान्य है। //</p>
<p>जी नहीं ऐसा नहीं है आदरणीय, इस बह्र में अगर मिसरे में आख़िरी रुक्न फ़इलुन है तो एक साकिन की अतिरिक्त छूट ले सकते हैं।</p>
<p></p>
<p>इसी बह्र में कही गई ग़ज़लों से लिये गये चन्द अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएं :</p>
<p>2122 - 1122 - 1122 - 112 </p>
<p>जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसी<strong>म</strong> (<strong>म</strong> अतिरिक्त साकिन) </p>
<p>जैसे बीमर को बे-वज्ह क़रार आ जाए... फै़ज़ अहमद…</p>
<p>//चलिए, माना, फिर भी, जनाब, 22 ( फैलुन ) पर एक ही साकिन की छूट होगी, 112 तक ही विस्तार मान्य है। //</p>
<p>जी नहीं ऐसा नहीं है आदरणीय, इस बह्र में अगर मिसरे में आख़िरी रुक्न फ़इलुन है तो एक साकिन की अतिरिक्त छूट ले सकते हैं।</p>
<p></p>
<p>इसी बह्र में कही गई ग़ज़लों से लिये गये चन्द अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएं :</p>
<p>2122 - 1122 - 1122 - 112 </p>
<p>जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसी<strong>म</strong> (<strong>म</strong> अतिरिक्त साकिन) </p>
<p>जैसे बीमर को बे-वज्ह क़रार आ जाए... फै़ज़ अहमद फ़ैज़</p>
<p></p>
<p>ऐ नो-आमेज़-ए-फ़ना हिम्मत-ए-दुश्वार पसं<strong>द</strong> (<strong>द </strong>अतिरिक्त साकिन) </p>
<p>सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला... मिर्ज़ा ग़ालिब </p>
<p></p> आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10860602022-06-25T14:47:12.160Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार ।</p>
<p>आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार ।</p> जनाब अमित कुमार अमित जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10859722022-06-25T14:46:21.378Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब अमित कुमार अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।</p>
<p>जनाब अमित कुमार अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।</p> //मैंने कुछ शेरों को ठीक करने…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10860592022-06-25T14:44:31.805Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//मैंने कुछ शेरों को ठीक करने का प्रयास किया है आपका मार्गदर्शन चाहूंगा।</p>
<p></p>
<p>जानता है जो बखूबी तेरी आदत क्या है,</p>
<p>फिर भी बोले वो कभी झूठ हिमाकत क्या है।</p>
<p></p>
<p>दिल-ए-नाशाद को अब चैन तभी आएगा,</p>
<p>जो खबर हो उसे इस दिल की जरूरत क्या है।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>क्या कहेगा कोई सुनकर तू ये परवाह न कर,</p>
<p>ऐ 'अमित' कह दे तेरे इश्क की लज्जत क्या है।//</p>
<p>अच्छा परिमार्जन किया है, पुनः बधाई। </p>
<p></p>
<p>गजल के शेर नंबर 2 को मतला न रख शे'र में परिवर्तित करने का…</p>
<p>//मैंने कुछ शेरों को ठीक करने का प्रयास किया है आपका मार्गदर्शन चाहूंगा।</p>
<p></p>
<p>जानता है जो बखूबी तेरी आदत क्या है,</p>
<p>फिर भी बोले वो कभी झूठ हिमाकत क्या है।</p>
<p></p>
<p>दिल-ए-नाशाद को अब चैन तभी आएगा,</p>
<p>जो खबर हो उसे इस दिल की जरूरत क्या है।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>क्या कहेगा कोई सुनकर तू ये परवाह न कर,</p>
<p>ऐ 'अमित' कह दे तेरे इश्क की लज्जत क्या है।//</p>
<p>अच्छा परिमार्जन किया है, पुनः बधाई। </p>
<p></p>
<p>गजल के शेर नंबर 2 को मतला न रख शे'र में परिवर्तित करने का प्रयास किया जा सकता है। शुभ-शुभ। </p> आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी त…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10859712022-06-25T14:39:51.184ZDayaram Methanihttps://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी तरही मिसरे पर अति सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी तरही मिसरे पर अति सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p> आदाब एवं धन्यवाद आदरणीय लक्ष्…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10861242022-06-25T14:22:16.236Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदाब एवं धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी।</p>
<p>आदाब एवं धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी।</p> आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी एक…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10861232022-06-25T14:16:27.918ZAmit Kumar "Amit"https://openbooks.ning.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी एक बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए और हम सबका ज्ञान वर्धन करने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं बधाइयां। आभार </p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी एक बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए और हम सबका ज्ञान वर्धन करने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं बधाइयां। आभार </p> आदरणीया रचना भाटिया जी अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2022-06-25:5170231:Comment:10860572022-06-25T14:10:47.850ZAmit Kumar "Amit"https://openbooks.ning.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीया रचना भाटिया जी अच्छी ग़ज़ल कहीं बहुत-बहुत बधाइयां। आदरणीय अमीर उद्दीन जी की बात संज्ञान में लें</p>
<p>आदरणीया रचना भाटिया जी अच्छी ग़ज़ल कहीं बहुत-बहुत बधाइयां। आदरणीय अमीर उद्दीन जी की बात संज्ञान में लें</p>