"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-144 - Open Books Online2024-03-28T11:30:58Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/144-1?commentId=5170231%3AComment%3A1091926&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर…tag:openbooks.ning.com,2022-10-16:5170231:Comment:10919392022-10-16T16:22:02.558ZDayaram Methanihttps://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।</p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।</p> आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2022-10-16:5170231:Comment:10918262022-10-16T15:12:48.341Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।</p> चलो उजाले ओर
उषा अवस्थी
अवि…tag:openbooks.ning.com,2022-10-15:5170231:Comment:10919362022-10-15T16:58:24.806ZUsha Awasthihttps://openbooks.ning.com/profile/UshaAwasthi
चलो उजाले ओर<br />
<br />
उषा अवस्थी<br />
<br />
अविश्वास का घना अँधेरा<br />
फैला चारों ओर<br />
आपस का सौहार्द न टूटे<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
जितने मुँह, उतनी ही बातें<br />
भ्रम फैलाते नहीं अघाते<br />
सत्य झूठ विलगा न पाएँ<br />
बातों में उनकी आ जाएँ<br />
भ्रम जीवी चँहु ओर<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
इन्टरनेट का आज ज़माना<br />
सच्चा झूठा लिखें फ़साना<br />
आपा धापी, मारा मारी<br />
कितने दीख रहे व्यभिचारी<br />
जिसका ओर न छोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
कोई कुछ, कोई कुछ कहता<br />
संशय का कोहरा नित बढ़ता<br />
धुन्ध जल्द ही छँट जाएगी<br />
हो समाप्त अज्ञान की <br />
रात्रि, खिलेगी भोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
<br />
<br />
चलो उजाले…
चलो उजाले ओर<br />
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उषा अवस्थी<br />
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अविश्वास का घना अँधेरा<br />
फैला चारों ओर<br />
आपस का सौहार्द न टूटे<br />
चलो उजाले ओर<br />
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जितने मुँह, उतनी ही बातें<br />
भ्रम फैलाते नहीं अघाते<br />
सत्य झूठ विलगा न पाएँ<br />
बातों में उनकी आ जाएँ<br />
भ्रम जीवी चँहु ओर<br />
चलो उजाले ओर<br />
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इन्टरनेट का आज ज़माना<br />
सच्चा झूठा लिखें फ़साना<br />
आपा धापी, मारा मारी<br />
कितने दीख रहे व्यभिचारी<br />
जिसका ओर न छोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
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कोई कुछ, कोई कुछ कहता<br />
संशय का कोहरा नित बढ़ता<br />
धुन्ध जल्द ही छँट जाएगी<br />
हो समाप्त अज्ञान की <br />
रात्रि, खिलेगी भोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
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मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
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चलो उजाले ओर<br />
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उषा अवस्थी<br />
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अविश्वास का घना अँधेरा<br />
फैला चारों ओर<br />
आपस का सौहार्द न टूटे<br />
चलो उजाले ओर<br />
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जितने मुँह, उतनी ही बातें<br />
भ्रम फैलाते नहीं अघाते<br />
सत्य झूठ विलगा न पाएँ<br />
बातों में उनकी आ जाएँ<br />
भ्रम जीवी चँहु ओर<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
इन्टरनेट का आज ज़माना<br />
सच्चा झूठा लिखें फ़साना<br />
आपा धापी, मारा मारी<br />
कितने दीख रहे व्यभिचारी<br />
जिसका ओर न छोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
<br />
कोई कुछ, कोई कुछ कहता<br />
संशय का कोहरा नित बढ़ता<br />
धुन्ध जल्द ही छँट जाएगी<br />
हो समाप्त अज्ञान की <br />
रात्रि, खिलेगी भोर<br />
चलो उजाले ओर<br />
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मौलिक एवं अप्रकाशित गज़लमापनी: 1222 1222
अँधेरे…tag:openbooks.ning.com,2022-10-15:5170231:Comment:10919322022-10-15T15:07:34.963ZDayaram Methanihttps://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p></p>
<p>गज़ल<br/>मापनी: 1222 1222</p>
<p></p>
<p>अँधेरे को भगाना है <br/>सुहानी भोर लाना है</p>
<p></p>
<p>करें हम काम कुछ ऐसा<br/>गरीबी को मिटाना है</p>
<p></p>
<p>बुराई है बहुत फैली<br/>अनपढ़ों को पढ़ाना है</p>
<p></p>
<p>नई राहें नई चाहें<br/>सभी को अब बताना है</p>
<p></p>
<p>नहीं कोई रहे पीछे <br/>सभी को साथ लाना है</p>
<p></p>
<p>सदा रौशन वतन अपना<br/>नया सूरज उगाना है</p>
<p></p>
<p>नई मंजिल मिले हमको<br/>नये सपने सजाना है</p>
<p><br/>(मौलिक एवं अप्रकाशित)<br/>- दयाराम मेठानी</p>
<p></p>
<p>गज़ल<br/>मापनी: 1222 1222</p>
<p></p>
<p>अँधेरे को भगाना है <br/>सुहानी भोर लाना है</p>
<p></p>
<p>करें हम काम कुछ ऐसा<br/>गरीबी को मिटाना है</p>
<p></p>
<p>बुराई है बहुत फैली<br/>अनपढ़ों को पढ़ाना है</p>
<p></p>
<p>नई राहें नई चाहें<br/>सभी को अब बताना है</p>
<p></p>
<p>नहीं कोई रहे पीछे <br/>सभी को साथ लाना है</p>
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<p>सदा रौशन वतन अपना<br/>नया सूरज उगाना है</p>
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<p>नई मंजिल मिले हमको<br/>नये सपने सजाना है</p>
<p><br/>(मौलिक एवं अप्रकाशित)<br/>- दयाराम मेठानी</p> आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-10-15:5170231:Comment:10920272022-10-15T07:35:25.344Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई.</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई.</p> दोहा-छंद
तिमिर छोड़ अब दीजि…tag:openbooks.ning.com,2022-10-15:5170231:Comment:10919262022-10-15T01:56:39.795ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>दोहा-छंद </p>
<p></p>
<p>तिमिर छोड़ अब दीजिए, चलें उजाले छोर । </p>
<p>मित्रता न तम की भली, दीप जलें हर ओर ।।</p>
<p></p>
<p>जीत सत्य की झूठ पर, होती..........बारम्बार ।</p>
<p>अंधकार सदैव क्षणिक, सच की जय जय कार।।</p>
<p></p>
<p>भ्रमित हुआ मानव जगत, मानस... होता द्वन्द ।</p>
<p>माँ सीता ...रावण ...ठगा, साधू बन छल-छन्द ।।</p>
<p></p>
<p>श्रेय - प्रेय का ..द्वन्द.. सुन, नाट्य कला मशहूर ।</p>
<p>प्रिय हित वध या देश हित, नायक मरण जरूर।।</p>
<p></p>
<p>सूर्य तिमिर अदृश्य ग्रहण, बिम्ब सदा यह…</p>
<p>दोहा-छंद </p>
<p></p>
<p>तिमिर छोड़ अब दीजिए, चलें उजाले छोर । </p>
<p>मित्रता न तम की भली, दीप जलें हर ओर ।।</p>
<p></p>
<p>जीत सत्य की झूठ पर, होती..........बारम्बार ।</p>
<p>अंधकार सदैव क्षणिक, सच की जय जय कार।।</p>
<p></p>
<p>भ्रमित हुआ मानव जगत, मानस... होता द्वन्द ।</p>
<p>माँ सीता ...रावण ...ठगा, साधू बन छल-छन्द ।।</p>
<p></p>
<p>श्रेय - प्रेय का ..द्वन्द.. सुन, नाट्य कला मशहूर ।</p>
<p>प्रिय हित वध या देश हित, नायक मरण जरूर।।</p>
<p></p>
<p>सूर्य तिमिर अदृश्य ग्रहण, बिम्ब सदा यह छद्म ।</p>
<p>जयद्रथ सोचा दिन छिपा, माया थी वह ब्रह्म । ।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p> स्वागतमtag:openbooks.ning.com,2022-10-14:5170231:Comment:10919232022-10-14T18:31:09.812ZAdminhttps://openbooks.ning.com/profile/Admin
<p>स्वागतम</p>
<p>स्वागतम</p>