"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-14 (विषय: षडयंत्र) - Open Books Online2024-03-28T16:42:18Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/14-2?commentId=5170231%3AComment%3A771505&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय सर जी, जवाब हेतु आभार,…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7722532016-05-31T18:30:08.758ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
आदरणीय सर जी, जवाब हेतु आभार, किन्तु विषय अनुरूप न लगने का कारण भी बताइयेगा कभी। मेरे विचार से तो षड्यंत्र विषय पर आधारित रचना रही है। कमियों को विस्तार से बताइयेगा।
आदरणीय सर जी, जवाब हेतु आभार, किन्तु विषय अनुरूप न लगने का कारण भी बताइयेगा कभी। मेरे विचार से तो षड्यंत्र विषय पर आधारित रचना रही है। कमियों को विस्तार से बताइयेगा। आ. पवन जैन जी प्रदत्त शीर्षक…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7722522016-05-31T18:29:32.403ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आ. पवन जैन जी प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट करते इस कथानक केलिए हार्दिक बधाई </p>
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<p>आ. पवन जैन जी प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट करते इस कथानक केलिए हार्दिक बधाई </p>
<p></p> प्रिय बागी जी , पतंग , डोर और…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7720922016-05-31T18:29:28.703Zप्रदीप नील वसिष्ठhttps://openbooks.ning.com/profile/3ugsdsv98puvv
<p>प्रिय बागी जी , पतंग , डोर और आवारा हवा के माध्यम से लघुकथा रची जा सकती है , मानवीय रिश्तों को उकेरते हुए , यह आपकी रचना से समझा जा सकता है। बेशक कथा कुछ लम्बी हो गई है लेकिन ' आगे क्या होगा ' का रोमांच खत्म नहीं होता। पतंग उडी , खूब उडी मगर आवारा हवा अपने षड्यंत्र में कामयाब हो ही गई। अंत बहुत मार्मिक रहा // काँटों में उलझी पतंग धीरे धीरे दम तोड़ रही थी I आवारा हवाएँ विजयी भाव से एक दूसरे से हाथ मिला रही थीं, लेकिन डोर के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे I // ऐसा ही होता है ज़िंदगी में। बधाई…</p>
<p>प्रिय बागी जी , पतंग , डोर और आवारा हवा के माध्यम से लघुकथा रची जा सकती है , मानवीय रिश्तों को उकेरते हुए , यह आपकी रचना से समझा जा सकता है। बेशक कथा कुछ लम्बी हो गई है लेकिन ' आगे क्या होगा ' का रोमांच खत्म नहीं होता। पतंग उडी , खूब उडी मगर आवारा हवा अपने षड्यंत्र में कामयाब हो ही गई। अंत बहुत मार्मिक रहा // काँटों में उलझी पतंग धीरे धीरे दम तोड़ रही थी I आवारा हवाएँ विजयी भाव से एक दूसरे से हाथ मिला रही थीं, लेकिन डोर के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे I // ऐसा ही होता है ज़िंदगी में। बधाई बागी जी। </p> वाह वाह,बहुत खूब भाई चंद्रेश…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7720892016-05-31T18:29:10.078Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>वाह वाह,बहुत खूब भाई चंद्रेश जी - देर आयद दुरुस्त आयद ! हार्दिक बधाई स्वीकारें !</p>
<p>वाह वाह,बहुत खूब भाई चंद्रेश जी - देर आयद दुरुस्त आयद ! हार्दिक बधाई स्वीकारें !</p> चलते -चलते बेहद मार्मिक लघु…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7720872016-05-31T18:28:55.772Zkanta royhttps://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p> चलते -चलते बेहद मार्मिक लघुकथा लेकर आये है आप आदरणीय चंद्रेश जी , कल से ही आपको याद करती रही . अच्छा लगा इस तरह से आना आपका . व्यस्तता की विवशता मैं समझ सकती हूँ . बहुत -बहुत बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए . </p>
<p> चलते -चलते बेहद मार्मिक लघुकथा लेकर आये है आप आदरणीय चंद्रेश जी , कल से ही आपको याद करती रही . अच्छा लगा इस तरह से आना आपका . व्यस्तता की विवशता मैं समझ सकती हूँ . बहुत -बहुत बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए . </p> आदरणीय चंद्रेश जी बहुत शानदार…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7722502016-05-31T18:28:52.984Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय चंद्रेश जी बहुत शानदार लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई </p>
<p>शब्दों का भ्रम या शब्दों का षड्यंत्र ?</p>
<p>आदरणीय चंद्रेश जी बहुत शानदार लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई </p>
<p>शब्दों का भ्रम या शब्दों का षड्यंत्र ?</p> यह घिसा पिटा कथानक नहीं है? क…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7723232016-05-31T18:28:19.138ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>यह घिसा पिटा कथानक नहीं है? कथा चौथी लाइन में निहित नायलान की साडी से ही समझ में आ गयी थी. लघुकथा प्रभावित नहीं कर सकी आदरणीया शशि बंसल जी.</p>
<p>यह घिसा पिटा कथानक नहीं है? कथा चौथी लाइन में निहित नायलान की साडी से ही समझ में आ गयी थी. लघुकथा प्रभावित नहीं कर सकी आदरणीया शशि बंसल जी.</p> सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ग…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7720862016-05-31T18:27:32.667ZSheikh Shahzad Usmanihttps://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय गणेश जी।
सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय गणेश जी। अँधेरे के मर्म को शाब्दिक करत…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7720852016-05-31T18:25:26.336ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अँधेरे के मर्म को शाब्दिक करती इस लघुकथा केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया जानकी जी. </p>
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<p>अँधेरे के मर्म को शाब्दिक करती इस लघुकथा केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया जानकी जी. </p>
<p></p> “ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक…tag:openbooks.ning.com,2016-05-31:5170231:Comment:7722492016-05-31T18:25:21.387Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>“ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-14 को अपनी रचनाओं व विषद समीक्षात्मक टिप्पणियों से सफल बनाने हेतु सभी आदरणीय साथिओं का हार्दिक आभारI अब अगली मुलाकात इसी गोष्ठी के 15 वें अंक में 29 से 30 जून 2016 को होगीI </p>
<p>“ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-14 को अपनी रचनाओं व विषद समीक्षात्मक टिप्पणियों से सफल बनाने हेतु सभी आदरणीय साथिओं का हार्दिक आभारI अब अगली मुलाकात इसी गोष्ठी के 15 वें अंक में 29 से 30 जून 2016 को होगीI </p>