"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-136 - Open Books Online2024-03-29T11:20:23Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/136?commentId=5170231%3AComment%3A1072183&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726512021-10-29T18:30:37.223Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। बहुत खूब गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p> हमसे कोई रंग जमा ना सब ने मिलकर कोशिश की</p>
<p>- ढलती महफिल को यूँ तुमने आकर के आबाद किया।।</p>
<p>आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। बहुत खूब गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p> हमसे कोई रंग जमा ना सब ने मिलकर कोशिश की</p>
<p>- ढलती महफिल को यूँ तुमने आकर के आबाद किया।।</p> "ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:'' अंक…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726492021-10-29T18:29:06.208ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:'' अंक-136 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p>
<p>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:'' अंक-136 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p> 22 22 22 22 22 22 22 2
हमने…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726482021-10-29T18:25:32.049ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>हमने तुमको तुमने हमको दिल से जब आज़ाद किया</p>
<p>चैन सुकूँ तो मिल न सका इक दर्द नया ईजाद किया</p>
<p></p>
<p>हम भी थे छलनी छलनी और तुम भी टूटे टूटे थे</p>
<p>कितना वक़्त लगा जब दो बिखरे जिस्मों को शाद किया</p>
<p></p>
<p>हमने तुमने हाथों में ले हाथ बुने कितने सपने</p>
<p>टूट गये जब सारे बंधन लम्हा लम्हा याद किया</p>
<p></p>
<p>इक वीराना ज़िंदा था दिल के अंदर तुमसे पहले </p>
<p>पूछ रहा है रो रो कर दिल क्यों हमने आबाद किया</p>
<p></p>
<p>तुम भी अपनी हम…</p>
<p>22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>हमने तुमको तुमने हमको दिल से जब आज़ाद किया</p>
<p>चैन सुकूँ तो मिल न सका इक दर्द नया ईजाद किया</p>
<p></p>
<p>हम भी थे छलनी छलनी और तुम भी टूटे टूटे थे</p>
<p>कितना वक़्त लगा जब दो बिखरे जिस्मों को शाद किया</p>
<p></p>
<p>हमने तुमने हाथों में ले हाथ बुने कितने सपने</p>
<p>टूट गये जब सारे बंधन लम्हा लम्हा याद किया</p>
<p></p>
<p>इक वीराना ज़िंदा था दिल के अंदर तुमसे पहले </p>
<p>पूछ रहा है रो रो कर दिल क्यों हमने आबाद किया</p>
<p></p>
<p>तुम भी अपनी हम भी अपनी जिद पर देखो अड़े रहे</p>
<p>एक जरा सी ज़िद ने आखिर दोनों को बर्बाद किया</p>
<p></p>
<p>ग़म भी सुनाया दर्द भी गाया महफ़िल लेकिन जमी नहीं</p>
<p>खून से लिक्खी रूदाद अपनी तब सब ने इरशाद किया</p>
<p></p>
<p>होगा कोई हमसा पागल क्या इस बस्ती में आज़ी</p>
<p>ख़ुद ही ख़ुद को कैद किया और ख़ुद को ही सैय्याद किया</p>
<p></p>
<p></p> //मुझे लगा था कि आप ग़जल को ध्…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726472021-10-29T18:25:30.884Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//मुझे लगा था कि आप ग़जल को ध्यान से पढ़कर रक <strong>मिसरे में लिए गये २१२१ पर आपत्ति लेंगे</strong> ..जिसे आप इस बहर में ग़लत मानते हैं.. आप ऐसे ही मान गये यह प्रसन्नता का विषय है//</p>
<p></p>
<p>आदरणीय निलेश जी, मैं अपनी बात पर क़ायम हूँ और अब भी बह्र-ए-मीर में 2121 को सहीह तस्लीम नहीं करता हूँ। अब बात आपकी ग़ज़ल को ध्यान से पढ़कर आपत्ति लेने की... मुहतरम मैं बिना वज्ह की आपत्ति नहीं लिया करता हूँ.., ये अलग बात है कि आपने सीखने वालों के लिए तो खुलकर खेलने की छूट देकर मौज कर दी है, बह्र में…</p>
<p>//मुझे लगा था कि आप ग़जल को ध्यान से पढ़कर रक <strong>मिसरे में लिए गये २१२१ पर आपत्ति लेंगे</strong> ..जिसे आप इस बहर में ग़लत मानते हैं.. आप ऐसे ही मान गये यह प्रसन्नता का विषय है//</p>
<p></p>
<p>आदरणीय निलेश जी, मैं अपनी बात पर क़ायम हूँ और अब भी बह्र-ए-मीर में 2121 को सहीह तस्लीम नहीं करता हूँ। अब बात आपकी ग़ज़ल को ध्यान से पढ़कर आपत्ति लेने की... मुहतरम मैं बिना वज्ह की आपत्ति नहीं लिया करता हूँ.., ये अलग बात है कि आपने सीखने वालों के लिए तो खुलकर खेलने की छूट देकर मौज कर दी है, बह्र में 112-211-1212-2121-22 अरकान कहीं भी और किसी भी क्रम पर लेने की और किसी के टोकने पर आपकी पोस्ट चस्पा करने की मगर....आप ख़ुद ही ऐसा करने में नाकाम रहे हैं।</p>
<p></p>
<p>आप अपनी इस ग़ज़ल में 2121 को लेते हुए एक भी मिसरा नहीं कह पाये हैं हालांकि आप पूरी तरह सक्षम हैं , ये अलग बात है कि दूसरों को ऐसा करने की सलाह और इसकी पैरवी भरपूर कर रहे हैं और बेवज्ह मेरे आपत्ति न करने पर ख़ुश हो रहे हैं, ये उचित नहीं है।</p>
<p></p>
<p>आपकी ग़ज़ल की तक़्तीअ कर आपके और मंच के अवलोकन के लिए पेश कर रहा हूँ, सादर।</p>
<p></p>
<p>तन्हा बैठा / बोतल खोली / और ख़ुद से सं / वाद किया. </p>
<p>2222 / 2222 / 2222 / 2112</p>
<p>मैं जब मरने / वाला था किस / किस ने मुझ को / याद किया.</p>
<p>2222 / 2222 / 2222 / 2112</p>
<p>सर पे क़ज़ा के / अनुभव को यूँ / मिसरे में रु / दाद किया. (रू टंकण त्रुटि) </p>
<p>21122. / 2222 / 2222 / 2112</p>
<p>मौत बदन को / छू भी न पाई / ज़ह’न को जब आ / ज़ाद किया</p>
<p>21122 / 21122 / 21122. / 2112</p>
<p>सदियों से हर / काम है जारी / फिर भी सब को / ग़फ़लत है </p>
<p>11222 / 21122 / 2222. / 222</p>
<p>सब से पहले / मैंने किया है / सबने मेरे / बाद किया.</p>
<p>2222 / 21122 / 2222 / 2112</p>
<p>एक मुहब्बत / रास न आई / उस पर दूजी / कर बैठे</p>
<p>21122 / 21122 / 2222. / 222</p>
<p>या’नी ज़ख्म के / भरते भरते / दर्द नया ई / जाद किया.</p>
<p>22211. / 2222 / 21122. / 2112</p>
<p>दोनों मिसरे / अच्छे थे पर / दोनों ही में / रब्त न था</p>
<p>2222 / 2222. / 2222 / 2112</p>
<p>“एक ज़रा सी / ज़िद ने आख़िर / दोनों को बर / बाद किया.”</p>
<p>21122 / 2222 / 2222 / 2112</p>
<p>वन टू वन टू, / टू वन टू वन / ये इस बह्र में / जाइज़ है</p>
<p>2222 / 2222. / 22211 / 222</p>
<p>मेरे ऐसा / कहते ही फिर / सबने वाद वि /वाद किया.</p>
<p>2222 / 2222 / 22211 / 2112 </p>
<p>बहर-ए-मीर में / कोशिश की है / “नूर” ग़ज़ल यह / कहने की</p>
<p>22211 / 2222 / 21122 / 222 </p>
<p>मुझे ख़बर है / इस कोशिश ने / कितनों को नक़् / क़ाद किया.</p>
<p>12122. / 2222 / 2222 / 2112</p> सहृदय शुक्रिया गुरु जी आप एक…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726462021-10-29T18:21:30.764ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>सहृदय शुक्रिया गुरु जी आप एक बार पहले भी ये बात बता चुके हैं</p>
<p>क्षमा चाहूंगा फिर से वही गलती दुहरा दी</p>
<p>मार्गदर्शन करने के लिए सहृदय अभार</p>
<p>सहृदय शुक्रिया गुरु जी आप एक बार पहले भी ये बात बता चुके हैं</p>
<p>क्षमा चाहूंगा फिर से वही गलती दुहरा दी</p>
<p>मार्गदर्शन करने के लिए सहृदय अभार</p> आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10724682021-10-29T18:17:17.629Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब, उम…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10725542021-10-29T18:16:29.061Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।</p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।</p> आदरणीय रवि जी, नमस्कार
बहुत ख़…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10724662021-10-29T17:45:36.862ZRicha Yadavhttps://openbooks.ning.com/profile/RichaYadav
<p>आदरणीय रवि जी, नमस्कार</p>
<p>बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए</p>
<p>इलाहाबाद बहुत ख़ूब कहा आपने।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय रवि जी, नमस्कार</p>
<p>बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए</p>
<p>इलाहाबाद बहुत ख़ूब कहा आपने।</p>
<p>सादर।</p> आ रवि जी खूब ग़ज़ल हुई
बधाई स…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10726442021-10-29T17:43:17.811ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>आ रवि जी खूब ग़ज़ल हुई</p>
<p>बधाई स्वीकार करें</p>
<p>आ रवि जी खूब ग़ज़ल हुई</p>
<p>बधाई स्वीकार करें</p> 'बड़ी देर की मह्रबाँ आते आते'…tag:openbooks.ning.com,2021-10-29:5170231:Comment:10725522021-10-29T17:32:45.368ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>'बड़ी देर की मह्रबाँ आते आते'</p>
<p>जनाब रवि शुक्ल जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>'बड़ी देर की मह्रबाँ आते आते'</p>
<p>जनाब रवि शुक्ल जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>