"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-135 - Open Books Online2024-03-29T11:28:52Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/135?xg_source=activity&id=5170231%3ATopic%3A1068262&feed=yes&xn_auth=noउम्दा गज़ल हुयी बधाई आदरणीय tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10701222021-09-25T18:27:01.285Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>उम्दा गज़ल हुयी बधाई आदरणीय </p>
<p>उम्दा गज़ल हुयी बधाई आदरणीय </p> ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:-अंक-13…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10702112021-09-25T18:26:12.570ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:-अंक-135 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का दिल से आभार व धन्यवाद ।</p>
<p>ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:-अंक-135 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का दिल से आभार व धन्यवाद ।</p> भाई सौरभ जी, इस बिंदु पर मैंन…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10699412021-09-25T18:23:16.685ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>भाई सौरभ जी, इस बिंदु पर मैंने अभी तक एक भी टिप्पणी नहीं की है, इसका सिर्फ़ एक ही मक़सद है कि मैंने "धुआँ" क़ाफ़िया को इस ज़मीन के लिये ग़लत बताया था, उसके बाद आपकी टिप्पणी आई,मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं आपने अपने विचार रखे, उसके बाद जनाब अनिल जी ने आपकी टिप्पणी के जवाब में माक़ूल तर्क दिये, जिससे मेरी भी सहमति है,मैं आपकी तरह ज्ञानी तो नहीं हूँ मगर क़वाइद-ए-ज़बान से ज़रूर वाक़फ़ियत रखता हूँ,और क़वाइद-ए-ज़बान की रु से "धुआँ से हम" जुमला किसी सूरत में भी दुरुस्त नहीं है मेरे नज़दीक, दूसरे सदस्यों ने जो इस पर…</p>
<p>भाई सौरभ जी, इस बिंदु पर मैंने अभी तक एक भी टिप्पणी नहीं की है, इसका सिर्फ़ एक ही मक़सद है कि मैंने "धुआँ" क़ाफ़िया को इस ज़मीन के लिये ग़लत बताया था, उसके बाद आपकी टिप्पणी आई,मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं आपने अपने विचार रखे, उसके बाद जनाब अनिल जी ने आपकी टिप्पणी के जवाब में माक़ूल तर्क दिये, जिससे मेरी भी सहमति है,मैं आपकी तरह ज्ञानी तो नहीं हूँ मगर क़वाइद-ए-ज़बान से ज़रूर वाक़फ़ियत रखता हूँ,और क़वाइद-ए-ज़बान की रु से "धुआँ से हम" जुमला किसी सूरत में भी दुरुस्त नहीं है मेरे नज़दीक, दूसरे सदस्यों ने जो इस पर अपनी टिप्पणी दी है वो पढ़े और समझे बग़ैर दी है ये मैं नहीं कह सकता,बहरहाल ये एक आज़ाद मंच है और यहाँ सबको अपने विचार रखने का पूरा अधिकार है, मैंने अपने विचार रखे,आपने अपने,दूसरों ने अपने, अब जिन जिन सदस्यों ने "धुआँ" क़ाफ़िया इस्तेमाल किया है वो इन टिप्पणियों की रौशनी में फ़ैसला कर लें कि उन्हें ये क़ाफ़िया अपनी ग़ज़ल में रखना है या नहीं ।</p>
<p>इसकी वज्ह से आपके हमारे दरमियान कोई धुआँ न आये,इसी आशा के साथ बात ख़त्म करता हूँ, शुभरात्रि । </p> मतले में पुनः कोशिश कि है
सबक…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10701212021-09-25T18:16:19.568Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>मतले में पुनः कोशिश कि है</p>
<p>सबकी अलग हैं बोलियाँ पर इक ज़बाँ से हम</p>
<p>हमको है फ़ख्र ये कि हैं हिन्दोस्ताँ से हम</p>
<p>या </p>
<p>तंग आ चुके हैं ज़िंदगी के इम्तिहाँ से हम</p>
<p>यूँ लग रहा है हो गए हैं नीम जाँ से हम</p>
<p>मतले में पुनः कोशिश कि है</p>
<p>सबकी अलग हैं बोलियाँ पर इक ज़बाँ से हम</p>
<p>हमको है फ़ख्र ये कि हैं हिन्दोस्ताँ से हम</p>
<p>या </p>
<p>तंग आ चुके हैं ज़िंदगी के इम्तिहाँ से हम</p>
<p>यूँ लग रहा है हो गए हैं नीम जाँ से हम</p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर प…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10702102021-09-25T18:07:16.442ZDeepanjali Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/DeepanjaliDubey
<ol>
<li>आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर प्रणाम। बहुत ख़ूब आदरणीय बधाई स्वीकार करें सादर।</li>
</ol>
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<li>आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर प्रणाम। बहुत ख़ूब आदरणीय बधाई स्वीकार करें सादर।</li>
</ol> आदरणीय अनिल सिंह जी सादर प्रण…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10699402021-09-25T18:04:50.487ZDeepanjali Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/DeepanjaliDubey
<p>आदरणीय अनिल सिंह जी सादर प्रणाम। ग़ज़ल बहुत ख़ूब हुई है आदरणीय सादर बधाई स्वीकारें करें।</p>
<p>आदरणीय अनिल सिंह जी सादर प्रणाम। ग़ज़ल बहुत ख़ूब हुई है आदरणीय सादर बधाई स्वीकारें करें।</p> आदरणीय समर साहब, और धुआँ यदि…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10699392021-09-25T17:58:59.845ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर साहब, और धुआँ यदि कर्म हुआ तो ?</p>
<p>तनिक इस ओर भी हम एकाग्र हों. </p>
<p></p>
<p>सभी आयामों पर गौर करें हम और इस हेतु पटल पर आयोजन का वातावरण बने.</p>
<p></p>
<p>कई सदस्यों ने संभवत: टिप्पणियाँ कायदे पढ़ी तक नहीं हैं और जजमेंटल बने हुए हैं कि कौन सही है. स्पष्ट कहा गया है कि किसी एक के विरुद्ध दूसरे को सही या गलत कहने का अनावश्यक प्रयास न करें. क्या आ० अनिल जी के कहे पर मेरी टिप्पणी का आशय यही नहीं है ? </p>
<p>आदरणीय समर साहब, और धुआँ यदि कर्म हुआ तो ?</p>
<p>तनिक इस ओर भी हम एकाग्र हों. </p>
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<p>सभी आयामों पर गौर करें हम और इस हेतु पटल पर आयोजन का वातावरण बने.</p>
<p></p>
<p>कई सदस्यों ने संभवत: टिप्पणियाँ कायदे पढ़ी तक नहीं हैं और जजमेंटल बने हुए हैं कि कौन सही है. स्पष्ट कहा गया है कि किसी एक के विरुद्ध दूसरे को सही या गलत कहने का अनावश्यक प्रयास न करें. क्या आ० अनिल जी के कहे पर मेरी टिप्पणी का आशय यही नहीं है ? </p> आदरणीय नादिर खान जी नमस्कार।…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10701202021-09-25T17:56:51.492ZDeepanjali Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/DeepanjaliDubey
<p>आदरणीय नादिर खान जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सालिक गणवीर जी व आदरणीय चेतन जी व आदरणीय समर कबीर सर जी तथा सभी की टिप्पणी पर गौर कीजिए सादर।</p>
<p>आदरणीय नादिर खान जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सालिक गणवीर जी व आदरणीय चेतन जी व आदरणीय समर कबीर सर जी तथा सभी की टिप्पणी पर गौर कीजिए सादर।</p> आदरणीय समर कबीर सर जी सादर प्…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10699382021-09-25T17:50:21.535ZDeepanjali Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/DeepanjaliDubey
<p>आदरणीय समर कबीर सर जी सादर प्रणाम। आप के अनमोल सुझाव के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय सदा हमारा मार्गदर्शन करते रहें। ग़ज़ल में आपके सुझाव अनुसार सुधार किया है। कृपया देखें सादर।</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p>कर लें यक़ी हमारा ये कहते ज़बांँ से हम<br></br>गुज़रे तुम्हारे वास्ते हर इम्तिहाँ से हम/1</p>
<p></p>
<p>वादा जो साथ हमसे निभाने का तुम करो<br></br>तारे भी तोड़ लाएँगे इसआसमाँ से हम/2</p>
<p></p>
<p>दिलवर हमारा इतना हसीं है कि दोस्तों<br></br>लड़ जाएंँ उसके वास्ते सारे जहाँ से…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर जी सादर प्रणाम। आप के अनमोल सुझाव के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय सदा हमारा मार्गदर्शन करते रहें। ग़ज़ल में आपके सुझाव अनुसार सुधार किया है। कृपया देखें सादर।</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p>कर लें यक़ी हमारा ये कहते ज़बांँ से हम<br/>गुज़रे तुम्हारे वास्ते हर इम्तिहाँ से हम/1</p>
<p></p>
<p>वादा जो साथ हमसे निभाने का तुम करो<br/>तारे भी तोड़ लाएँगे इसआसमाँ से हम/2</p>
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<p>दिलवर हमारा इतना हसीं है कि दोस्तों<br/>लड़ जाएंँ उसके वास्ते सारे जहाँ से हम/3</p>
<p></p>
<p>हमने सफ़र शुरू'अ किया भीड़ जुड़ गई<br/>राहों में जाने कितने मिले कारवाँ से हम/4</p>
<p></p>
<p>गुलशन तो खुशबुओं से मुअत्तर नहीं मिले<br/>होकर उदास लौट गए यूँ खिजांँ से हम/5</p>
<p></p>
<p>परवरदिगार कोई हमें रास्ता दिखा<br/>मरते हुए की साँस को लाएं कहाँ सेहम/6</p>
<p></p>
<p>*गिरह*का शेर*</p>
<p>हम चाक कर कलेजा तुम्हें हाथ में दे दे<br/>अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बा से हम</p>
<p></p>
<p>स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p> भाई नादिर ख़ान जी
आदाब
हँसते…tag:openbooks.ning.com,2021-09-25:5170231:Comment:10701192021-09-25T17:30:53.677Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>भाई नादिर ख़ान जी</p>
<p>आदाब</p>
<p>हँसते हुये ही जायेंगे अब इस जहाँ से हम ....</p>
<p>क्या मिसरा कहा है आपने.. वाह. बहुत ख़ूब</p>
<p> </p>
<p>भाई नादिर ख़ान जी</p>
<p>आदाब</p>
<p>हँसते हुये ही जायेंगे अब इस जहाँ से हम ....</p>
<p>क्या मिसरा कहा है आपने.. वाह. बहुत ख़ूब</p>
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