"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-130 - Open Books Online2024-03-28T19:38:22Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/130?commentId=5170231%3AComment%3A1058898&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=no"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10591952021-04-24T18:37:48.992Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-130 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</span></p>
<p><span>इस बार अस्वस्थता की वजह से आ. भाई समर जी मंच पर उपस्थित नहीं हो सके इसका हमें खेद है । मैं समस्त परिवार की ओर से ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे शीघ्र स्वस्थ हो हमारा मार्गदर्शन करते रहें ।</span></p>
<p><span>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-130 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</span></p>
<p><span>इस बार अस्वस्थता की वजह से आ. भाई समर जी मंच पर उपस्थित नहीं हो सके इसका हमें खेद है । मैं समस्त परिवार की ओर से ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे शीघ्र स्वस्थ हो हमारा मार्गदर्शन करते रहें ।</span></p> सीख हमें ये नानक ने दी मिलजुल…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10593152021-04-24T18:26:17.352Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>सीख हमें ये नानक ने दी मिलजुल कर सब साथ रहो...</p>
<p>सीख हमें ये नानक ने दी मिलजुल कर सब साथ रहो...</p> आ. भाई मुनीश जी, अभिवादन । गज…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10594152021-04-24T18:23:27.451Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<div align="left"><p dir="ltr">आ. भाई मुनीश जी, अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है , पर कुछ शेर अभी और समय चाहते है। फिलहाल सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई।</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">/फिक्र धरा की दिल से सोचो कुछ तो <u><b>यारो</b></u> शर्म <b><u>करो</u></b></p>
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<div align="left"><p dir="ltr"><br></br> /<b><u>जिसने</u></b> इसको लूटा पीटा जख्म न इसके सहलाए </p>
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<div align="left"><p dir="ltr"><b><u>उसका</u></b> आखिर सब कुछ छूटा औ फिर <u><b>वो</b></u> गुमनाम हुए/ (इन सर्वनामों…</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">आ. भाई मुनीश जी, अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है , पर कुछ शेर अभी और समय चाहते है। फिलहाल सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई।</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">/फिक्र धरा की दिल से सोचो कुछ तो <u><b>यारो</b></u> शर्म <b><u>करो</u></b></p>
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<div align="left"><p dir="ltr"><br/> /<b><u>जिसने</u></b> इसको लूटा पीटा जख्म न इसके सहलाए </p>
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<div align="left"><p dir="ltr"><b><u>उसका</u></b> आखिर सब कुछ छूटा औ फिर <u><b>वो</b></u> गुमनाम हुए/ (इन सर्वनामों के गलत प्रयोग से यह शेर अभी समय चाहता है)</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">/जो चलते हैं <u><b>सीधे पथ पर</b></u> वो न कभी नाकाम हुए </p>
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<div align="left"><p dir="ltr">/घबराता न कभी तो "तन्हा" चाहे जितनी मुश्किल हो </p>
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<div align="left"><p dir="ltr">देखूँ जब भी मंज़िल आगे भारी फिर दो गाम हुए </p>
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<p dir="ltr">(यह शेर भी सुधार चाहता है देखिएगा।) सादर</p> आदरणीय सलिक जी उम्दा गज़ल हुयी…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10591942021-04-24T17:38:25.877Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आदरणीय सलिक जी उम्दा गज़ल हुयी बधाई स्वीकारें ...सभी शेर लाजवाब हैं</p>
<p></p>
<p>आदरणीय सलिक जी उम्दा गज़ल हुयी बधाई स्वीकारें ...सभी शेर लाजवाब हैं</p>
<p></p> शुक्रिया आदरणीय सलिक भाई अभी…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10594142021-04-24T17:32:53.252Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>शुक्रिया आदरणीय सलिक भाई अभी गज़ल में काफी सुधार की गुंजाइश है रमज़ान के बाद वक्त निकाल कर परिष्कृत करूँगा ।हौसला अफजाई का बहुत शुक्रिया</p>
<p>शुक्रिया आदरणीय सलिक भाई अभी गज़ल में काफी सुधार की गुंजाइश है रमज़ान के बाद वक्त निकाल कर परिष्कृत करूँगा ।हौसला अफजाई का बहुत शुक्रिया</p> आदरणीय चेतन जी गज़ल तक आने और…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10594132021-04-24T17:29:03.266Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आदरणीय चेतन जी गज़ल तक आने और सुझाओ का शुक्रिया ...चोर उचक्के शब्द मुझे नहीं लगता कुछ अभद्र शब्द हैं राजनीतिज्ञों के लिए... इनके ऊपर तो ऐसी ऐसी धाराएं लगी हुयी हैं कि इन्हें चोर उचक्के कहना बहुत soft word है मैंने बहुत सोच समझकर शब्द चयन किया है। हाँ मँहगाई टाइप कर कर के हम थक गए पर key बोर्ड में आ ही नहीं रहा था अब आपने लिख दिया तो इसे ही कॉपी पेस्ट किए देते हैं इसके लिए पुनः शुक्रिया..</p>
<p>आदरणीय चेतन जी गज़ल तक आने और सुझाओ का शुक्रिया ...चोर उचक्के शब्द मुझे नहीं लगता कुछ अभद्र शब्द हैं राजनीतिज्ञों के लिए... इनके ऊपर तो ऐसी ऐसी धाराएं लगी हुयी हैं कि इन्हें चोर उचक्के कहना बहुत soft word है मैंने बहुत सोच समझकर शब्द चयन किया है। हाँ मँहगाई टाइप कर कर के हम थक गए पर key बोर्ड में आ ही नहीं रहा था अब आपने लिख दिया तो इसे ही कॉपी पेस्ट किए देते हैं इसके लिए पुनः शुक्रिया..</p> देश अनोखा भारत अपना पैदा जिसम…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10592942021-04-24T17:13:55.884Zmunish tanhahttps://openbooks.ning.com/profile/munishtanha
<p>देश अनोखा भारत अपना पैदा जिसमें राम हुए </p>
<p>जिनकी अगुवाई में सोचो कितने अच्छे काम हुए </p>
<p>फिक्र धरा की दिल से सोचो कुछ तो यारों शर्म </p>
<p>फिर महकेगी ये फुलवारी दिल से जो ऐलाम हुए</p>
<p>जिसने इसको लूटा पीटा जख्म न इसके सहलाए </p>
<p>उसका आखिर सब कुछ छूटा औ फिर वो गुमनाम हुए</p>
<p>कोरोना ने काया बदली रूप बदल कर आया है </p>
<p>सांस गले में अटकी जैसे गैस के दुगने दाम हुए </p>
<p>अब सोचूं मैं क्यूं कूदा था आखिर उनके झगड़े में </p>
<p>एक हमीं हुशियार थे यारों एक हमीं बद-नाम…</p>
<p>देश अनोखा भारत अपना पैदा जिसमें राम हुए </p>
<p>जिनकी अगुवाई में सोचो कितने अच्छे काम हुए </p>
<p>फिक्र धरा की दिल से सोचो कुछ तो यारों शर्म </p>
<p>फिर महकेगी ये फुलवारी दिल से जो ऐलाम हुए</p>
<p>जिसने इसको लूटा पीटा जख्म न इसके सहलाए </p>
<p>उसका आखिर सब कुछ छूटा औ फिर वो गुमनाम हुए</p>
<p>कोरोना ने काया बदली रूप बदल कर आया है </p>
<p>सांस गले में अटकी जैसे गैस के दुगने दाम हुए </p>
<p>अब सोचूं मैं क्यूं कूदा था आखिर उनके झगड़े में </p>
<p>एक हमीं हुशियार थे यारों एक हमीं बद-नाम हुए </p>
<p>कब से कहते आए नानक मिल-जुल के तुम प्यार करो </p>
<p>जो चलते हैं सीधी राह पे वो न कभी नाकाम हुए </p>
<p>घबराता न कभी तो "तन्हा" चाहे जितनी मुश्किल हो </p>
<p>देखूँ जब भी मंज़िल आगे भारी फिर दो गाम हुए </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>मुनीश"तन्हा"नादौन</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण जी सुझाओ का शु…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10592932021-04-24T17:13:23.710Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी सुझाओ का शुक्रिया...</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी सुझाओ का शुक्रिया...</p> आदरणीय नीलेश जी अच्छी कोशिश र…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10594122021-04-24T17:08:12.577Zनादिर ख़ानhttps://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आदरणीय नीलेश जी अच्छी कोशिश रही आदरणीय लक्ष्मण जी से सहमत हूँ ।</p>
<p>आदरणीय नीलेश जी अच्छी कोशिश रही आदरणीय लक्ष्मण जी से सहमत हूँ ।</p> आ. भाई नादिर जी, अच्छी गजल हु…tag:openbooks.ning.com,2021-04-24:5170231:Comment:10594112021-04-24T16:23:52.399Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नादिर जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p><span>चोरों और उचक्कों के हाथों में दे दी सरदारी// में गेयता बाधित हो रही है । </span></p>
<p><span>//चोर </span><span>उचक्कों के हाथों में हमने दे दी सरदारी/ऐसा करके देखिएगा । सादर</span></p>
<p>आ. भाई नादिर जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p><span>चोरों और उचक्कों के हाथों में दे दी सरदारी// में गेयता बाधित हो रही है । </span></p>
<p><span>//चोर </span><span>उचक्कों के हाथों में हमने दे दी सरदारी/ऐसा करके देखिएगा । सादर</span></p>