ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-127 - Open Books Online2024-03-28T13:24:50Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/126-1?groupUrl=pop&commentId=5170231%3AComment%3A1073783&groupId=5170231%3AGroup%3A68907&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी …tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10738532021-11-21T18:45:38.048ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी संवेदना और तदनुरूप रचनाकर्म मणिकाञ्चन संयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण है. </p>
<p>शैल्पिकता के आलम्ब पर सुंदर एवं सार्थक प्रयास के लिए बधाइयाँ </p>
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी संवेदना और तदनुरूप रचनाकर्म मणिकाञ्चन संयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण है. </p>
<p>शैल्पिकता के आलम्ब पर सुंदर एवं सार्थक प्रयास के लिए बधाइयाँ </p>
<p></p> वाह वाह, आदरणीय चेतन प्रकाश ज…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10740192021-11-21T18:41:57.055ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह वाह, आदरणीय चेतन प्रकाश जी. </p>
<p>त</p>
<p>चित्र के सापेक्ष आपके सुझाव संवेदनापूरित हैं जोआपकी रचनात्मकता का मूल है. </p>
<p>हार्दिक बधाई. जय-जय .. </p>
<p>वाह वाह, आदरणीय चेतन प्रकाश जी. </p>
<p>त</p>
<p>चित्र के सापेक्ष आपके सुझाव संवेदनापूरित हैं जोआपकी रचनात्मकता का मूल है. </p>
<p>हार्दिक बधाई. जय-जय .. </p> आदरणीय मुकुल कुमारजी, आपकी को…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10737912021-11-21T18:39:22.004ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मुकुल कुमारजी, आपकी कोई रचना संभवत: पहली बार देख रहा हूँ. आप आदरणीय अशोक भाईसाहब के कहे का संज्ञान लेंगे, इसी आशा के साथ आपको हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>आदरणीय मुकुल कुमारजी, आपकी कोई रचना संभवत: पहली बार देख रहा हूँ. आप आदरणीय अशोक भाईसाहब के कहे का संज्ञान लेंगे, इसी आशा के साथ आपको हार्दिक बधाई. </p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश भाईजी, समाज के…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10740182021-11-21T18:36:04.312ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, समाज के प्रचि आपकी चिंता सार्थक है. चित्र के हवाले से आपने स्पष्टता से जाहिर भी किया है. </p>
<p>शुभ-शुभ </p>
<p></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, समाज के प्रचि आपकी चिंता सार्थक है. चित्र के हवाले से आपने स्पष्टता से जाहिर भी किया है. </p>
<p>शुभ-शुभ </p>
<p></p> आदरणीया दीपांजलि जी, आपके प्र…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10738522021-11-21T18:33:58.333ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया दीपांजलि जी, आपके प्रयास के प्रति मन प्रसन्न है. रजनाकर्म अवश्य सायास प्रतीत हो रहा है जहाँ विधान निर्वहन का दवाब दृष्टि से अलोत नहीं होता. किंतु, संप्रेषणीयता निभ पाने से प्रयास की सार्थकता बनी दिखती है. </p>
<p>हार्दिक बधाइयाँ.. </p>
<p></p>
<p>आदरणीया दीपांजलि जी, आपके प्रयास के प्रति मन प्रसन्न है. रजनाकर्म अवश्य सायास प्रतीत हो रहा है जहाँ विधान निर्वहन का दवाब दृष्टि से अलोत नहीं होता. किंतु, संप्रेषणीयता निभ पाने से प्रयास की सार्थकता बनी दिखती है. </p>
<p>हार्दिक बधाइयाँ.. </p>
<p></p> आदरणीय छोटेलालजी, वाह !
तार्…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10738512021-11-21T18:29:10.960ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय छोटेलालजी, वाह ! </p>
<p>तार्किकता मुग्धकारी है. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, अंतिम दो पंक्तियों मेॆ व्याकरण का निर्वहन नेष्ट है. सावधानीपूर्वक ध्यान दें तो स्पष्ट होगा. बाकी, आदरणीय अशोक भाई साहब के कहे का संज्ञान लें. </p>
<p></p>
<p>बहरहाल, इस प्रयास पर हार्दिक बधाई</p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p>आदरणीय छोटेलालजी, वाह ! </p>
<p>तार्किकता मुग्धकारी है. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, अंतिम दो पंक्तियों मेॆ व्याकरण का निर्वहन नेष्ट है. सावधानीपूर्वक ध्यान दें तो स्पष्ट होगा. बाकी, आदरणीय अशोक भाई साहब के कहे का संज्ञान लें. </p>
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<p>बहरहाल, इस प्रयास पर हार्दिक बधाई</p>
<p>शुभातिशुभ </p> आदरणीय अशोक भाई जी, चित्र का…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10740172021-11-21T18:25:05.064ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक भाई जी, चित्र का शाब्दिक होना शैल्पिक एवं रुचिकर ढंग से हुआ है. </p>
<p>सार्थक एवं सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई ! </p>
<p>असावधानीवश अंतिम पंक्ति में तो बचा रह गया है. आपको भान होगा भी..</p>
<p>जय-जय</p>
<p>आदरणीय अशोक भाई जी, चित्र का शाब्दिक होना शैल्पिक एवं रुचिकर ढंग से हुआ है. </p>
<p>सार्थक एवं सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई ! </p>
<p>असावधानीवश अंतिम पंक्ति में तो बचा रह गया है. आपको भान होगा भी..</p>
<p>जय-जय</p> सत्य वचन !
tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10738502021-11-21T18:23:21.428ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>सत्य वचन ! </p>
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<p>सत्य वचन ! </p>
<p></p> आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10738492021-11-21T17:28:30.707Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-11-21:5170231:Comment:10740162021-11-21T17:26:23.029Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>