"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-01 की सभी स्वीकृत लघुकथाओं का संकलन - Open Books Online2024-03-29T04:44:00Zhttps://openbooks.ning.com/forum/topics/1-1?commentId=5170231%3AComment%3A747468&x=1&feed=yes&xn_auth=noमैं भी अक्सर ओबीओ आयोजनों के…tag:openbooks.ning.com,2016-03-05:5170231:Comment:7474682016-03-05T06:45:39.429Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>मैं भी अक्सर ओबीओ आयोजनों के पुराने अंक पढ़ा करता हूँI कल ही २०१५ का "होली के हुडदंग" पूरा पढ़ाI </p>
<p>मैं भी अक्सर ओबीओ आयोजनों के पुराने अंक पढ़ा करता हूँI कल ही २०१५ का "होली के हुडदंग" पूरा पढ़ाI </p> नई मंजिलों को पाते हुए ,अपनी…tag:openbooks.ning.com,2016-03-05:5170231:Comment:7472802016-03-05T05:59:10.026Zkanta royhttps://openbooks.ning.com/profile/kantaroy
<p>नई मंजिलों को पाते हुए ,अपनी जड़ों की ओर देखना अच्छा लगता है। आज मन हुआ कि पलट कर जरा पीछे देखूँ कि ये सफर हमने कहाँ से शुरू किया था। पिछले पन्नो में भी , संभलती -दरकती -खिसकती -सुदृढ़ होती कई दीवारें आज भी यथावत कायम है। अच्छा है इनको बार -बार पढ़ना। </p>
<p>नई मंजिलों को पाते हुए ,अपनी जड़ों की ओर देखना अच्छा लगता है। आज मन हुआ कि पलट कर जरा पीछे देखूँ कि ये सफर हमने कहाँ से शुरू किया था। पिछले पन्नो में भी , संभलती -दरकती -खिसकती -सुदृढ़ होती कई दीवारें आज भी यथावत कायम है। अच्छा है इनको बार -बार पढ़ना। </p> वाह ! इतने मानिक मोती हीरे जव…tag:openbooks.ning.com,2015-05-28:5170231:Comment:6595412015-05-28T17:58:39.308ZRita Guptahttps://openbooks.ning.com/profile/RitaGupta
<p>वाह ! इतने मानिक मोती हीरे जवाहरात . लघु कथाओं के इस संकलन को पढ़ मुझे आज बहुत कुछ सीखने को मिला . एक से बढ़ कर एक नायाब रचना .</p>
<p>वाह ! इतने मानिक मोती हीरे जवाहरात . लघु कथाओं के इस संकलन को पढ़ मुझे आज बहुत कुछ सीखने को मिला . एक से बढ़ कर एक नायाब रचना .</p> आदरणीय योगराज जी
यह आप का ब…tag:openbooks.ning.com,2015-05-16:5170231:Comment:6552732015-05-16T03:09:35.894ZOmprakash Kshatriyahttps://openbooks.ning.com/profile/OmprakashKshatriya
<p>आदरणीय योगराज जी </p>
<p>यह आप का बड़प्पन है , जो आप ऐसा कह रहे है. अन्यथा इस सफल आयोजन का दारोमदार सब आप पर ही था .</p>
<p>सादर प्रणाम </p>
<p>आप का </p>
<p>ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"</p>
<p>आदरणीय योगराज जी </p>
<p>यह आप का बड़प्पन है , जो आप ऐसा कह रहे है. अन्यथा इस सफल आयोजन का दारोमदार सब आप पर ही था .</p>
<p>सादर प्रणाम </p>
<p>आप का </p>
<p>ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"</p> यह गोष्ठी किसी साहित्यिक सत्स…tag:openbooks.ning.com,2015-05-10:5170231:Comment:6535492015-05-10T14:27:17.255ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttps://openbooks.ning.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>यह गोष्ठी किसी साहित्यिक सत्संग से कम नहीं थी| प्रत्येक लघुकथा को पूर्ण मार्गदर्शन और गहन विश्लेषण रहा| इतनी लघुकथाओं का एक साथ समागम भी कम आनन्ददायक नहीं रहा| ओबीओ की गोष्ठी में प्रथम बार ही भाग लिया, लेकिन लगा ही नहीं कि पहली बार भाग ले रहा हूँ| ईश्वर यह प्रेम और स्नेह बरकरार रखे !</p>
<p>यह गोष्ठी किसी साहित्यिक सत्संग से कम नहीं थी| प्रत्येक लघुकथा को पूर्ण मार्गदर्शन और गहन विश्लेषण रहा| इतनी लघुकथाओं का एक साथ समागम भी कम आनन्ददायक नहीं रहा| ओबीओ की गोष्ठी में प्रथम बार ही भाग लिया, लेकिन लगा ही नहीं कि पहली बार भाग ले रहा हूँ| ईश्वर यह प्रेम और स्नेह बरकरार रखे !</p> पूरा प्रयास करूँगा सर ....tag:openbooks.ning.com,2015-05-09:5170231:Comment:6535152015-05-09T22:01:52.624Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>पूरा प्रयास करूँगा सर ....</p>
<p>पूरा प्रयास करूँगा सर ....</p> यह आपकी अपनी मेहनत और लगन है…tag:openbooks.ning.com,2015-05-08:5170231:Comment:6524062015-05-08T11:31:54.254Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यह आपकी अपनी मेहनत और लगन है प्रिय नेहा अग्रवाल जी। मंच पर बने रहें तथा सतत प्रयासरत एवं अभ्यासरत रहें। </p>
<p>यह आपकी अपनी मेहनत और लगन है प्रिय नेहा अग्रवाल जी। मंच पर बने रहें तथा सतत प्रयासरत एवं अभ्यासरत रहें। </p> //लघु - कथा गोष्ठी का आयोजन ब…tag:openbooks.ning.com,2015-05-08:5170231:Comment:6525292015-05-08T11:29:39.219Zयोगराज प्रभाकरhttps://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>//लघु - कथा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही सराहनीय प्रयास रहा, सफल रहा , सदस्यों की लघु- कथाओं में रूचि बढ़ी। आप एवं कार्यकारिणी के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं. बहुत बहुत बधाई, और बहुत ढेर सारी शुभकामनायें।//</p>
<p></p>
<p><strong>आ० डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा के विभिन्न समूहों के कई इधर उधर भटक रहे संजीदा लोगों को एक छत के नीचे लाना भी इस आयोजन का एक उद्देशय था। बहरहाल, आपकी बधाई सर आँखों पर।</strong></p>
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<p>//लघु - कथा टैग एवं गोष्ठी में हम देखते हैं कि अधिकाँश कथाएं समाज की विसंगतियों,…</p>
<p>//लघु - कथा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही सराहनीय प्रयास रहा, सफल रहा , सदस्यों की लघु- कथाओं में रूचि बढ़ी। आप एवं कार्यकारिणी के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं. बहुत बहुत बधाई, और बहुत ढेर सारी शुभकामनायें।//</p>
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<p><strong>आ० डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा के विभिन्न समूहों के कई इधर उधर भटक रहे संजीदा लोगों को एक छत के नीचे लाना भी इस आयोजन का एक उद्देशय था। बहरहाल, आपकी बधाई सर आँखों पर।</strong></p>
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<p>//लघु - कथा टैग एवं गोष्ठी में हम देखते हैं कि अधिकाँश कथाएं समाज की विसंगतियों, कुरीतियों, सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन , भ्रष्टाचार , संबंधों के खोखलेपन , आदि जैसे प्रकरणों पर लिखी जा रहीं हैं , जैसी की एक धारणा है पंच होना चाहिए , अतः एक पंच पर कथा समाप्त हो जाती है. बाकी हम मान लेते हैं कि हमने इंगित कर दिया समाज सुधर जाएगा. होता है, कुछ लोगों पर निसंदेह धनात्मक प्रभाव पड़ता होगा। पर कुछ पर ही। यह भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इनसे कुछ लोग नकारात्मक निर्देश भी ले रहे हों कि चलो ऐसा तो समाज में हो ही रहा , हम कौन से बिरले हैं , ऐसा ही कर लेते हैं। क्योंकि बुराई को सिर्फ बुराई कह देने भर से बुराई मिट जाती तो हम कम के बुराई रहित चुके होते। ……फिर भी संदेश प्रभावी हैं , मैं मानता हूँ।//</p>
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<p><strong>लघुकथा का उद्देश्य समाज की विसंगतियों, कुरीतियों, सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन , भ्रष्टाचार , संबंधों के खोखलेपन आदि जैसे प्रकरणों को मेग्नीफाई करके डायग्नोज़ करने का होता है। जानबूझ कर समस्या का समाधान देने की चेष्टा से लघुकथा एक नारा या भाषण बन सकती है।</strong></p>
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<p>//मैं एक और निवेदन करना चाहता हूँ। प्लेटो ने कहा था , " मुझे लोक-कथाएँ लिखने दो , मुझे इसकी चिंता नहीं है कि इस देश का कानून कौन बनाता है। " प्लेटो एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहता था जिसमें सब लोग आदर्श नागरिक हों, जो अपराध से प्रेरित हों ही नहीं। उसका मानना था कि यदि बचपन से बच्चों को अच्छी प्रेरक कथाएं सुनाई जाएंगी तो वे वर्जित / आपराधिक गतिविधियों की ओर कभी जाएंगे ही नहीं. कानून का काम तो वैसे भी अपराध हो जाने के बाद शुरू होता है। हमारी शिक्षा-व्यवस्था इस दायित्व की ओर आँख मूंदे बैठी है। परिवेश ," सिर्फ काम निकाल लो , कैसे भी " की व्यापक शिक्षा दे रहा है।<br/>ऐसे में क्या ओ बी ओ के मंच पर सिर्फ और सिर्फ प्रेरक कहानियों / प्रसंगों का एक टैग शुरू नहीं किया जा सकता है ? ऐसी कहानियां जो निंदा , आलोचना , व्यंग , कटाक्ष , झटका आदि से इतर सिर्फ एक प्रेरणा दें , आदमी सोचे , ओह यह कितना अच्छा है , मैं भी ऐसा क्यों करूँ ? उदाहारार्थ , जैसी कहानियां chicken soup for the soul नामक पुस्तक में संकलित मिलती हैं , हर कहानी एक अच्छा , मोहक , प्रेरक सन्देश देती है , मन खिल उठता है और बहुत देर तक खिला खिला रहता है। निवेदन है , विचार करें।//</p>
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<p><strong>वैसे तो यह सुझाव "सुझाव एवं शिकायत" समूह में दिया जाना चाहिए था, बहरहाल प्रेरक-प्रसंग अथवा बोध कथाएं "आध्यात्मिक चिंतन" समूह में पोस्ट की जा सकती हैं।</strong></p> आदरणीय गुरु देव श्री योगराज स…tag:openbooks.ning.com,2015-05-07:5170231:Comment:6517672015-05-07T14:29:37.142Zneha agarwalhttps://openbooks.ning.com/profile/nehaagarwal
आदरणीय गुरु देव श्री योगराज सर जी आज यहाँ अपनी दोनों कथा को जगह मिली देख कर जो खुशी मिली है ।वो शब्दों में बयान नहीं कर सकती।पर बस इतना ही कि आज जो कुछ हूँ ।आपकी ही वजय से हूँ ।सादर आभार आपका और सभी गुणीजनों का
आदरणीय गुरु देव श्री योगराज सर जी आज यहाँ अपनी दोनों कथा को जगह मिली देख कर जो खुशी मिली है ।वो शब्दों में बयान नहीं कर सकती।पर बस इतना ही कि आज जो कुछ हूँ ।आपकी ही वजय से हूँ ।सादर आभार आपका और सभी गुणीजनों का आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,
लघ…tag:openbooks.ning.com,2015-05-07:5170231:Comment:6518592015-05-07T13:41:02.725ZDr. Vijai Shankerhttps://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,<br />
लघु - कथा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही सराहनीय प्रयास रहा, सफल रहा , सदस्यों की लघु- कथाओं में रूचि बढ़ी। आप एवं कार्यकारिणी के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं. बहुत बहुत बधाई, और बहुत ढेर सारी शुभकामनायें।<br />
लघु - कथा टैग एवं गोष्ठी में हम देखते हैं कि अधिकाँश कथाएं समाज की विसंगतियों, कुरीतियों, सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन , भ्रष्टाचार , संबंधों के खोखलेपन , आदि जैसे प्रकरणों पर लिखी जा रहीं हैं , जैसी की एक धारणा है पंच होना चाहिए , अतः एक पंच पर कथा समाप्त हो जाती है. बाकी हम…
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,<br />
लघु - कथा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही सराहनीय प्रयास रहा, सफल रहा , सदस्यों की लघु- कथाओं में रूचि बढ़ी। आप एवं कार्यकारिणी के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं. बहुत बहुत बधाई, और बहुत ढेर सारी शुभकामनायें।<br />
लघु - कथा टैग एवं गोष्ठी में हम देखते हैं कि अधिकाँश कथाएं समाज की विसंगतियों, कुरीतियों, सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन , भ्रष्टाचार , संबंधों के खोखलेपन , आदि जैसे प्रकरणों पर लिखी जा रहीं हैं , जैसी की एक धारणा है पंच होना चाहिए , अतः एक पंच पर कथा समाप्त हो जाती है. बाकी हम मान लेते हैं कि हमने इंगित कर दिया समाज सुधर जाएगा. होता है, कुछ लोगों पर निसंदेह धनात्मक प्रभाव पड़ता होगा। पर कुछ पर ही। यह भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इनसे कुछ लोग नकारात्मक निर्देश भी ले रहे हों कि चलो ऐसा तो समाज में हो ही रहा , हम कौन से बिरले हैं , ऐसा ही कर लेते हैं। क्योंकि बुराई को सिर्फ बुराई कह देने भर से बुराई मिट जाती तो हम कम के बुराई रहित चुके होते। ……फिर भी संदेश प्रभावी हैं , मैं मानता हूँ।<br />
मैं एक और निवेदन करना चाहता हूँ। प्लेटो ने कहा था , " मुझे लोक-कथाएँ लिखने दो , मुझे इसकी चिंता नहीं है कि इस देश का कानून कौन बनाता है। " प्लेटो एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहता था जिसमें सब लोग आदर्श नागरिक हों, जो अपराध से प्रेरित हों ही नहीं। उसका मानना था कि यदि बचपन से बच्चों को अच्छी प्रेरक कथाएं सुनाई जाएंगी तो वे वर्जित / आपराधिक गतिविधियों की ओर कभी जाएंगे ही नहीं. कानून का काम तो वैसे भी अपराध हो जाने के बाद शुरू होता है। हमारी शिक्षा-व्यवस्था इस दायित्व की ओर आँख मूंदे बैठी है। परिवेश ," सिर्फ काम निकाल लो , कैसे भी " की व्यापक शिक्षा दे रहा है।<br />
ऐसे में क्या ओ बी ओ के मंच पर सिर्फ और सिर्फ प्रेरक कहानियों / प्रसंगों का एक टैग शुरू नहीं किया जा सकता है ? ऐसी कहानियां जो निंदा , आलोचना , व्यंग , कटाक्ष , झटका आदि से इतर सिर्फ एक प्रेरणा दें , आदमी सोचे , ओह यह कितना अच्छा है , मैं भी ऐसा क्यों करूँ ?<br />
उदाहारार्थ , जैसी कहानियां chicken soup for the soul नामक पुस्तक में संकलित मिलती हैं , हर कहानी एक अच्छा , मोहक , प्रेरक सन्देश देती है , मन खिल उठता है और बहुत देर तक खिला खिला रहता है। निवेदन है , विचार करें।<br />
सादर।