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दिगंबर नासवा's Discussions (471)

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"फेल हो गये तो माँ-बाप का रवैया औ रोज रोज के ताने बच्चियाँ समझती हैं,.. बहुत खूब ...…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"दोस्त गर न हों तो ये ज़िंदगी अटक जाये,ताले की मुसीबत बस चाभियाँ समझती हैं।.. बहुत खू…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"देवता जगे हैं कब, घंटियाँ बजाने से, मौन भावनाओं को, मूर्तियाँ समझती हैं... वाह ...…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"आने  को  तो  आते हैं  लोग  मंदिरों में ढबआस्था है किस किस में घंटियाँ समझती हैं ..…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"मायके को कब अपना आशियाँ समझती हैं छोड़कर इसे जाना बेटियाँ समझती हैं .. बहुत ही संवेद…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"माँ जवान बेटी से बेवजह नहीं लड़ती,फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।.. इमरान भाई ....…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"दाद कबूल करें रवि जी ... हर शेर लाजवाब है ... गिरह का शेर तो बहुत ही खूबसूरत है ... …"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"आपका आभार तिलक राज जी ग़ज़ल पर इनायत करने का ..."

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"बहुत आभार गिरिराज जी ग़ज़ल पसंद करने का ..."

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

"आदरणीय तिलक राज जी ... आपकी उस्तादाना ग़ज़ल में गुंथे शेरों क आनद पढ़ के ही महसूस किया…"

दिगंबर नासवा replied May 24, 2014 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

848 May 25, 2014
Reply by अरुण कुमार निगम

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गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
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