For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मासिक साहित्यिक संगोष्ठी ओबीओ चेप्टर भोपाल : सितम्बर 2017 :: एक रपट

दिनांक 16.09.2017 को शाम हिंदी भवन भोपाल  के नरेश मेहता कक्ष में ओबीओ चेप्टर भोपाल के तत्वावधान में मासिक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें लघुकथा एवं काव्य की विभिन्न विधाओं पर केंद्रित रचनायें पढ़ी गयीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी ग़ज़लकार जनाब ज़हीर कुरैशी साहब ने की.  मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार, छंदविद एवं ओबीओ के सदस्य टीम-प्रबंधन श्री सौरभ पाण्डेय जी मंचासीन हुए.  माँ सरस्वती के पूजन उपरान्त श्रीमती सीमा हरि शर्मा जी ने सरस्वती-वन्दना का पाठ किया। नगर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं “सुख़नवर” पत्रिका के सम्पादक अनवारे इस्लाम, वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक निर्मल जी, वरिष्ठ गीतकार श्रीमती ममता बाजपेयी,  वरिष्ठ शायर जनाब दानिश जयपुरी, श्री अशोक व्यग्र जी के साथ साथ ओबीओ भोपाल चैप्टर के सदस्य उपस्थित रहे और रचना पाठ किया गया. कार्यक्रम का सञ्चालन हरिवल्लभ शर्मा 'हरि' एवं कल्पना भट्ट जी द्वारा किया गया।

 

 

कार्यक्रम के आरम्भ में श्रीमती सीमा हरि शर्मा जी द्वारा माँ शारदा की वंदना प्रस्तुत की गई तत्पश्चात काव्य गोष्ठी आरम्भ हुई-

 

सर्वप्रथम श्रीमती शशि बंसल जी ने अपनी लघुकथा “स्नेहधार” का पाठ कियाl

श्री मोतीलाल आलमचंद्र जी ने किसान त्रासदी को अभिव्यक्त करती अतुकांत कविता “मैं किसान हूँ” का पाठ किया-

 

खेत बोता हूँ 

लेकिन आत्महत्या उगती है

मेड़ पर खड़े बबूल पर! 

 

हाँशिये से , 

फसल काटने के सपने थे मेरे 

लेकिन पुलिस आकर काटती है

हाँशिये से मेरे गले का फंदा।।

 

 

 

श्रीमती सीमा हरि शर्मा जी द्वारा ग़ज़ल प्रस्तुत की गई-

 

ज़िन्दगी तेरी ख़िदमत में क्या रह गया

क्यों अधूरा सा ही सिलसिला रह गया

 

दोनों हाथों सहेजा सजा रह गया

कुछ यहाँ कुछ वहाँ सब धरा रह गया

 

अपनी ग़लती नहीं देख पाया कभी

ज़िन्दगी भर तुझे जाँचता रह गया

 

 -- 

तल्ख पैगाम था बयानों में,

जल उठी आग आशियानों में।

 

तीरगी दूर हो भला कैसे ?

रौशनी क़ैद कुछ मकानों में।

 

आप सच को छुपा न पाएगें,

दम नहीं आपके बहानों में।

 

श्री हरिवल्लभ शर्मा जी ने एक ग़ज़ल और एक गीत प्रस्तुत किया-

 

 

उससे मिली नज़र कि वो दिल में उतर गया।

पल में पलक झपकते वो जाने किधर गया।

 

उसको गुमाँ नहीं था कि दिल काँच का भी हो,

खेला उछालकरके जो छूटा बिखर गया।

~~

सुबह दौड़ती, धूप कड़कती, थकती शाम लिखें।

सहमी ठिठकी रातों को हम, किसके नाम लिखें।

 

कहीं बरसते मेघा जमकर, कहीं पड़ा सूखा।

सड़े अन्न गोदामों में मजदूर पड़ा भूखा।

डरें शिकायत करने से भी, या गुमनाम लिखें।

सहमी ठिठकी रातों को हम, किसके नाम लिखें।

 

आदरणीया अर्पणा शर्मा जी द्वारा दो कवितायेँ सुनाई गईं-

 

स्वतंत्रता जय-राग सुनाओ,

जय-हिन्द की जयकार गुँजाओ,

सब जन हिलमिल करके आओ,

प्रखर गीत कोई ऐसा गाओ...!

 

क्षेत्र ,धर्म, जाति मिल सब,

छिन्न करें अस्तित्व जब तक,

ड़मगाती देश-रक्षा हर क्षण,

दुश्मन की हों मौंजें तब तकl

 

श्री हरिओम श्रीवास्तव जी ने एक बाल गीत “आसमान की सैर करूँगा” एवं कह मुकरिया सुनाई-

 

बढ़े  उसी  से  मेरा  मान,

उसका करूँ सदा सम्मान,

उसके माथे पर है बिंदी।

क्या सखि साजन? नहिं सखि 'हिंदी'।।

 

सालों साल न शक्ल दिखाता,

मतलब पड़े तभी वह आता,

दगाबाज फुसला ही लेता,

क्या सखि साजन? नहिं सखि 'नेता'।।

 

 

श्रीमती सीमा पांडे मिश्रा जी ने सरसी छंद पर आधारित एक गीत सुनाया-

 

 पीड़ाओं से सदा घिरे जो, उनका अंतर्नाद

तुम कैसे कह दोगे इसको पल भर का उन्माद

 

भीतर भीतर सुलग रही थी धीमी धीमी आग

अपमानों के शोलों में कुछ लपट पड़ी थी जाग

रह रह के फिर टीस जगाते घावों के वो दाग

 

 

श्रीमती कल्पना भट्ट जी ने एक अतुकांत एवं एक लघुकथा “मूक श्रोता” का पाठ किया-

 

बड़ा अजीब तालाब था वो। कुछ एक छोटी मछलियों को छोड़ कर उस तालाब की सभी मछलियाँ खुदके लिखे गीत गाती थीं, हालाँकि बड़ी मछलियों को चुप रहने वाली मछलियाँ पसंद नहीं आती थीं।

 

ऐसे ही एक दिन गीत गोष्ठी के समय एक बड़ी मछली ने चुप रहने वाली छोटी मछली को देखा तो उसके पास जाकर कहा, "कम आती हो लेकिन तुम्हें यहाँ गोष्ठी में देखकर अच्छा लगता है।"

 

श्री बलराम धाकड़ ने दो गज़लें सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी-

 

जनम होगा तो क्या होगा मरण होगा तो क्या होगा

तिमिर से जब भरा अंतःकरण होगा तो क्या होगा

वो ही ख़ैरात बांटेंगे वो ही एहसां जताएंगे
विमानों से निज़ामों का भ्रमण होगा तो क्या होगा
--
आवाज़ वक़्त की है, ये उन्माद तो नहीं
तस्दीक़ आख़िरी है, ये उन्माद तो नहीं

बेजान से बुतों में कोई जान आ गई
सचमुच ही बन्दगी है, ये उन्माद तो नहीं

 

मुझ नाचीज को भी रचना-पाठ का अवसर मिला तो मेरे द्वारा मां पर आधारित दोहों का पाठ किया गया-

 

ईश्वर की उपलब्धता, कब संभव हर द्वार ।

हुई रिक्तता पूर्ण यूँ, भेजा माँ का प्यार ।।

 

ठण्ड लगी गरमी लगी, लगी भूख या प्यास ।

कब रोया है लाल क्यूँ, उत्तर माँ के पास ।।

 

खेल खेल में जब उठी, बच्चे की किलकार ।

अपना बचपन जी लिया, फिर माँ ने इक बार ।।

 

श्रीमती ममता बाजपेयी जी ने अपने गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया-

 

जिंदगी खुशहाल है पर

कुछ कमीं सी है

 

एक सन्नाटा खिंचा है

अनमने दिन रेन है

जानते हैं क्रम यही है

किन्तु हम बेचैन हैं

 

आँख में आँसू नहीं पर

कुछ नमीं सी है

 

मुख्य अतिथि आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ने पिछली मासिक संगोष्ठी में प्रस्तुत रचनाओं की संक्षिप्त समीक्षा की एवं गीत “क्या बोलूँ अब क्या लगता है” प्रस्तुत किया-

 

क्या बोलूँ अब क्या लगता है

 

चाहत में घन-पुरवाई है 

किन्तु पहुँच ना सुनवाई है

मेघ घिरे फिर भी ना बरसें, तो मौसम ये लगता है.. 

क्या बोलूँ अब क्या लगता है ?..

 

कार्यक्रम के अध्यक्ष जनाब जहीर कुरैशी जी ने ग़ज़ल सुनाई -

 

जो पेड़, मेरे पिता ने कभी लगाया था

पिता के बाद पिता— सा ही उसका साया था 

 

ये दर्पणों के अलावा न कोई देख सका

स्वयं सँवरते हुए रूप कब लजाया था 

 

गगन है मन में मेरे, ये गगन को क्या मालूम

ये प्रश्न, झील की आँखों में झिलमिलाया था 

 

जनाब एहसान आज़मी जी ने ग़ज़ल किसी को हम मना भी लें, तो कोई रूठ जाता है” सुनाईl श्री विमल कुमार शर्मा जी ने ग़ज़ल ‘कहीं कॉलेज के साथी कहीं घर-द्वार छूटा है” सुनाई. श्री अशोक व्यग्र जी ने सार छंद आधारित गीत “नग्न वृक्ष की शुष्क शाख पर नव-पल्लव उग आये” सुनाया. जनाब दानिश जयपुरी जी ने “इतना बरसा किधर गया पानी, परेशां सबको कर गया पानी” ग़ज़ल सुनाई. गरीबदास लखपति जी ने “अंग्रेजी फैशन में डूबे, हिंदी को रहे छोड़, कर रहे अम्रीका की होड़” कविता सुनाई. अशोक निर्मल जी ने अपने गीत और ग़ज़ल से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. आभार प्रदर्शन श्री बलराम धाकड़ जी द्वारा किया गया. “शब्दिका” स्मारिका के वितरण के साथ गरिमामय आयोजन का समापन हुआ.

 

 

* मिथिलेश वामनकर 

Views: 1333

Reply to This

Replies to This Discussion

बहुत सुंदर रिपोर्ट आदरणीय मिथिलेश सर | विलम्ब से पहुंची थी सो सब को नहीं सुन पायी , यहाँ रचनाओ को पढ़कर आनंद आया | सादर धन्यवाद् आदरणीय |

बहुत खूब आदरणीय मिथिलेश भाई , बढिया रिपोर्टिंग की है , रचनाओं की कई पंक्तियाँ देने से पढ कर कुछ मज़ा अनुपस्थित रह कर भी आ गया । सफर आयोजन के लिये भोपाल चेप्टर को सभी रचना कारों को हार्दिक बधाइयाँ ।

वाह ! रिपोर्ट / रपट की शैली और प्रवाह ने आयोजन की स्मृतियों को एक बार पुनः सचल कर दिया ! 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय मिथिलेश भाई. भोपाल चैप्टर की मासिक गोष्ठी अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर हो. 

शुभ-शुभ

हार्दिक बधाई इस सफल आयोजन हेतु । प्रस्‍तुत रचनाओं की पंक्‍तियां पढ़ कर सहजे ही आेबीओ के स्‍टैंडर्ड का पता चल जाता है। 

श्री मोतीलाल आलमचंद्र जी की किसान त्रासदी को अभिव्यक्त करती कविता “मैं किसान हूँ”  कि पंक्‍तिया सीधे दिल में उतर गईं । आदरणीय मोतीलाल जी को सादर शुभकामनाएं । आपकी रपट का अंदाज बहुत प्रभावशाली है । सादर

अत्यंत सफल आयोजन हेतु सभी सम्मलित रचनाकारों को एवं शानदार रिपोर्टिंग हेतु आदरणीय मिथिलेश जी को हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service