For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दूसरे का दर्द - डॉo विजय शंकर

दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 3, 2019 at 2:30am

आदरणीय विजय निकोर जी , रचना पर आगमन आपके से एक सुखानुभूति हुयी। आपके के द्वारा उसकी सराहना से हौसला बढ़ा , आपका ह्रदय से आभार , आप स्वस्थ एवं सानंद रहें , धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 3, 2019 at 2:25am

आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपके रचना पर आगमन एवं उसकी प्रशस्ति के लिए ह्रदय से आभार , एवं धन्यवाद , सादर।

Comment by vijay nikore on November 30, 2019 at 9:39pm

आपकी रचना हम सभी के लिए, समाज के लिए, प्रेणादायक है, मार्गदर्शक है। हार्दिक बधाई, मित्र विजय जी।

Comment by नाथ सोनांचली on November 30, 2019 at 8:43pm

आद0 डॉ विजय शंकर जी सादर अभिवादन। बढ़िया प्रस्तुति, गागर में सागर भरती हुई।। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 28, 2019 at 9:13pm

आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी बहुत खूबसूरत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार , सच तो यह है की आपकी टिप्पणियां न केवल गंभीर और धनात्मक होती हैं आगे और विचारों का सृजन करतीं हैं। सच तो यह है कि किसी के दर्द को समझने के लिए एहसास का होना ही बहुत बड़ी बात है , दुनिया में लोग किस किस तरह से लोगों के दर्द को समझते हैं, मदद करते हैं , हमारे लिए वह भी समझने की आवश्यकता है। हम तो कुछ ऐसे हालात में जी रहे हैं जहां दूसरों के दर्द को समझना तो दूर , हम उसे दर्द मानते ही नहीं , नकार देते हैं। जिन्हें उनकीं चिंता करनी है वे स्वयं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हैं। शायद इसीलिए जीवन का शान्तिपूर्ण होना एक बहुत बड़ी अनिवार्यता है। बहुत से दुःख दर्द केवल मूलभूत व्यवस्था से से ठीक हो सकते हैं।
एक बार पुनः आपको ह्रदय से आभार और सादर धन्यवाद। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 28, 2019 at 11:51am

जनाब डॉ. विजय शंकर जी आदाब, आपकी ये कविता पढ़ कर बेसाख़्ता 'अमीर मीनाई' जी का ये शैर याद आ गया:-

'ख़ंजर चलें किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'

सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है'

दुनिया में ऐसे लोग कम ही होते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं,दूसरों का दर्द महसूस कर सकते हैं,कहते हैं साहित्यकार दूसरों का दर्द महसूस कर लेते हैं,लेकिन ये क़ौल भी अब किताबों में ही पढ़ने को मिलता है,दुनिया इतनी व्यस्त हो गई है कि किसी के पास भी दूसरे के लिए समय नहीं है,ऐसे माहौल में आपकी ये कविता अपने शब्दों में बहुत सा दर्द समेटे हुए है,वो सारी पीड़ा जो एक इंसान में होना चाहिए उसका बयान कर रही है,बहुत ख़ूब वाह, इस शानदार कविता के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2019 at 10:46pm

आदरणीय डॉO छोटे लाल जी , आपकी पकड़ का ह्रदय से स्वागत है , आपका हार्दिक आभार एवं सादर धन्यवाद , शेष विवेचना हेतु डॉo उषा जी की टिप्पणी पर लिख ही चुका हूँ। सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2019 at 10:43pm

आदरणीय सुश्री उषा जी , आप इन चार पंक्तियों की गहराई तक पँहुचीं , स्वागत है। आपकी यह बात भी सही है कि हमें / लोगों को sympathy से empathy की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। दोनों ही शब्द ग्रीक भाषा के pathos शब्द से विकसित हुए हैं , अंगरेजी भाषा में sympathy शब्द सोलहवीं शताब्दी में आया और empathy शब्द उन्नीसवीं शताब्दी में। empathy शब्द कहीं अधिक व्यापकता का बोध कराता है , अतः उसका व्यवहारिक प्रयोग भी अधिक व्यापकता का परिचायक है और मानवता के लिए अधिक आवश्यक भी है।आपके विचारों का सादर स्वागत है , आपका आभार एवं अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद। सादर।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 27, 2019 at 11:04am

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी आपने चंद पंक्तियों में जबरदस्त भाव पिरो दिया मन प्रफुल्लित हो गया बहुत बहुत बधाई

Comment by Usha on November 27, 2019 at 8:28am

आदरणीय विजय शंकर सर, आज सचमुच इस बात की ज़रूरत है की 'सिम्पैथी' से 'एम्पैथी' की ऒर रुख़ किया जाये। ये हो जाये तो आशा है लोगों के दुःख-दर्द काफ़ी कम हो जाएँगे। किसी का हृदय से इतना ही कह देना कि हम आपका दर्द समझते हैं, बहुत सुकून दे जाता है। सुंदर कविता के लिये बधाई स्वीकार करें। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10
Chetan Prakash commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आदाब,  समर कबीर साहब ! ओ.बी.ओ की सालगिरह पर , आपकी ग़ज़ल-प्रस्तुति, आदरणीय ,  मंच के…"
Apr 10
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तूत रचना पर उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत-बहुत आभार। सादर "
Apr 9

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service