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मापनी २१२*4 

चाहते हम नहीं थे मगर हो गए

प्यार में जून की दोपहर हो गए

 

हर कहानी खुशी की भुला दी गई

दर्द के सारे किस्से अमर हो गए

 

खो गए आपके प्यार में इस कदर

सारी दुनिया से हम बेखबर हो गए

 

प्रेम के यज्ञ में हो गया सब हवन

मंत्र जो थे सभी बेअसर हो गए

 

जो कभी थे बड़े खूबसूरत महल

देखते देखते खंडहर हो गए

 

कह दिया आपने जो हुआ सो हुआ

आँसुओं से नयन तरबतर हो गए

सुर्ख़ियों में रहे रोज अख़बार की  

वक़्त के साथ बासी खबर हो गए

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 30, 2019 at 9:14pm

आदरणीया   विजय जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 30, 2019 at 9:14pm

आदरणीया   Rakshita Singh जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 30, 2019 at 8:32pm

आदरणीय समर कबीर जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on June 23, 2019 at 4:20pm

बहुत ही सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, मित्र बसंत कुमार जी।

Comment by रक्षिता सिंह on June 22, 2019 at 11:17pm

आदरणीय बसंत जी नमस्कार,  बहुत ही सुंदर रचना बहुत बहुत बधाई ।

Comment by Samar kabeer on June 22, 2019 at 6:35pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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