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मापनी - २१२२ 12 1222 

चाहते हैं मगर नहीं आती

हर ख़ुशी सबके’ घर नहीं आती  

 

दिल में’ थोड़ी सी’ गुदगुदी कर दे  

आजकल वो खबर नहीं आती  

 

मैं इधर जब उदास होता हूँ  

नींद उसको उधर नहीं आती

 

पास जाओ तो’ पैर चूमेगी

दूर तक क्यूँ लहर नहीं आती

 

जिन्दगी से न कोई’ मिल पाता

मौत मिलने अगर नहीं आती

 

आप इज्जत सँभाल कर रखिये

जो गई, लौटकर नहीं आती

 

दर्दे दिल का कमाल है वरना

शाइरी उम्र भर नहीं आती

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 2, 2018 at 8:07pm
Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 2, 2018 at 8:06pm

आदरणीय समर कबीर जी शुभ संध्या , हमेशा की तरह आपकी कबिलेगौर समीक्षा का हार्दिक स्वागत एवं आभार, सुधार कर पुनः प्रस्तुत करता हूँ , इस्ति तरह स्नेह बनाये रखें, सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 2, 2018 at 8:05pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी सादर नमस्कार , आपकी हौसला अफजाई का बेहद शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 2, 2018 at 8:04pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , शुभ संध्या, आपकी हौसलाफजाई को सादर नमन 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2018 at 6:41pm

मतले में गर की क़ैद है.. देखिएगा आ. बसंत जी 
सादर 

Comment by Samar kabeer on November 2, 2018 at 3:30pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ालिब की ज़मीन में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें।

मतले के दोनों मिसरों में 'गर' क़ाफ़िया हो गया है,ऊला मिसरा यूँ करलें:-

'चाहता हूँ इधर नहीं आती'

Comment by narendrasinh chauhan on November 2, 2018 at 11:50am

जिन्दगी से न कोई मिल पाता

मौत मिलने अगर नहीं आती

खूब सही फ़रमाया 

सुन्दर रचना 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:41am

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। बेहतरीन गज़ल ।

दर्द दिल में अगर नहीं होता

शायरी उम्र भर नहीं आती

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 2, 2018 at 9:31am

आदरणीया Rakshita Singh जी शुभ प्रभात, आपकी हौसलाअफजाई  का दिल से शुक्रिया 

Comment by रक्षिता सिंह on November 1, 2018 at 7:37pm

आदरणीय बसंत जी  नमस्कार 

बहुत ही सुंदर  प्रस्तुति, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

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