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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया- सलीम रज़ा

221 2121 1221 212
हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया
-
मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं
लेकिन तुम्हारी याद का नक्शा मिटा दिया  
-
मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी
और ये किया कि धूप को पागल बना दिया
-
उसके हँसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा 
सारा  ग़ुरूर ख़ाक़ में उसका मिला दिया 
-
जो  ज़ख्म  खाके भी रहा है आपका सदा 
उस दिल पे फिर से आपने खंज़र चला दिया
-
उसने निभाई ख़ूब मेरी दोस्ती " रज़ा "
इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार मुझी पर लगा दिया
_______________________________
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 1:13pm

बहुत ही कसी हुई खूबसूरत गज़ल। हार्दिक बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:33pm
अमोद भाई,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:32pm
जनाब आरिफ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:32pm
महेंद्र कुमार जी ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:31pm
बलराम जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by amod shrivastav (bindouri) on January 24, 2018 at 8:49pm

बहुत खूब आदरणीय   सादर बधाई 

Comment by Mohammed Arif on January 24, 2018 at 8:02am

आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,

                      बहुत भी प्रभावशाली ग़ज़ल कही । हर शे'र भाव प्रवणता लिए है । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें।

Comment by Mahendra Kumar on January 23, 2018 at 8:18pm

जो  ज़ख्म  खाके भी रहा है आपका सदा 
उस दिल पे फिर से आपने खंज़र चला दिया ...बहुत ख़ूब! 

बढ़िया ग़ज़ल है आ. सलीम जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Balram Dhakar on January 23, 2018 at 6:22pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल, जनाब रज़ा साहब। दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2018 at 2:29pm
आ. तेजवीर सिंह जी,
बहुत शुक्रिया.

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