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प्रिय शेखर,
दोस्त! तुम मेरे सब से अच्छे दोस्त रहे हो, अब तुमसे क्या छुपाऊं? मैं इन दिनों बहुत परेशान हूँ, तुम्हें तो पता है मैं क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करता आया हूँ| मेरी और तुम्हारी जॉब एक साथ ही लगी थी, कितने खुश थे न हम दोनों! अच्छा पैकेज पाकर ,मैं हवा में उड़ने लगा,तुमने कई बार मुझे टोका भी; पर मैं अपनी ही उड़ान भरता रहा, मैं यह भूल गया था कि प्राइवेट सेक्टर में जॉब; बरक़रार रहे जरुरी नहीं ,और ऐसा ही हुआ।सात महीनों से जॉब के लिए दर-दर भटक रहा हूँ, और दूसरी तरफ़ बैंक के क़र्ज़ तले दबता जा रहा हूँ।
मेरे आगे-पीछे घूमने वालों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है, मुझे कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा है.......
तुम्हारा,
मोहन।
" ओह!" ई मेल पढ़ कर एक गहरी ठंडी साँस ले कर शेखर ने दोनों हाथों में सर थाम लिया कि उसी पल उसकी पत्नी कंचन इठलाती हूई भीतर आई , " अरे शेखर! कोहिनूर पर साड़ियों की सेल लगी है और ' तनिष्क ' पर भी एक स्कीम है। चलो जल्दी से तैयार हो जाओ।"
शेखर ने कोई जवाब नहीं दिया।क्षण भर बाद पर्स से क्रेडिट कार्ड निकाल कर भावशून्य नजरों से उसे देखा , फिर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये और मुस्कुरा कर बोला ," पर मुझे रास्ता सूझ गया है मेरे दोस्त ! "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on January 23, 2018 at 7:30pm

बढ़िया लघुकथा है आ. कल्पना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. शीर्षक विशेष रूप से पसन्द आया. सादर.


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Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 9:01pm

जब से ये क्रेडिट कार्ड चले हैं लोग बेहिसाब खर्च करने लगे हैं अंततः कर्जबन्द होकर अपना सुख चैन सब खत्म कर देते हैं ऐसे लोगों कि आँखें खोलने वाली लघु कथा हुई है प्रिय कल्पना जी बहुत शानदार हार्दिक बधाई 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 22, 2018 at 11:52am

मुहतर्मा कल्पना साहिबा ,आज कल के हालात पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2018 at 10:47pm

बेहतरीन उम्दा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2018 at 3:22pm

बड़ी ही खूबसूरती से आपने एक रोजमर्रा की मुसीबत की तरफ ध्यान खींचा है आदरणीया..बधाई

Comment by Mohammed Arif on January 20, 2018 at 8:02am

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

  •                              बहुत ही प्रासंगिक कथा । बाज़ारवादी ठगी ताक़तें बहुत ही शातिर है । इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है । हार्दिक बधाई  स्वीकार करें ।

Comment by Nita Kasar on January 19, 2018 at 8:14pm

आँखे खोलने वाली कथा,आज यही देखने में आता है लोकलुभावन दुनिया की हकीकत से अवगत कराती कथा के लिये बधाई  आद० कल्पना बहना ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2018 at 6:28pm

आदरणीय सुश्री कल्पना भट्ट जी , आपने एक आँखे खोलने वाली लघु - कथा लिखी है। यह एक सच्चाई है कि बाज़ारीकरण का यह एक लुभावना सत्य है कि इस प्रकार के प्रलोभनों में फंसने वाले अंततः दुखी ही होते हैं। बधाई, इस साहसिक प्रस्तुति पर , सादर।

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