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'आपके पास है जवाब कोई'

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़इलुन/फेलुन


मेरे ग़म का है सद्दे बाब कोई
आपके पास है जवाब कोई

सुनके मेरी ग़ज़ल कहा उसने
अपने फ़न में है कामयाब कोई

उतनी भड़केगी आतिश-ए-उल्फ़त
जितना बरतेगा इज्तिनाब कोई

सबसे उनको छुपा के रखता हूँ
तोड़ डाले न मेरे ख़्वाब कोई

पास है जिनके दौलत-ए-ईमाँ
उन पर आता नहीं अज़ाब कोई

कोई उस पर यक़ी नहीं करता
अच्छा बन जाए जब ख़राब कोई

आमने सामने हों जब दोनों
उनको देखे कि माहताब कोई
-----
सद्दे बाब-बिल्कुल रोक देना
इज्तिनाब-पहलू बचना,परहेज़ करना ।

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 1:48pm

आदरणीय समर सर आपकी हर ग़ज़ल का मैं इंतज़ार भी करता हूँ और उससे सीखने की कोशिश भी करता हूँ ..हमेश की तरह शानदार इस रचना पर ढेरों बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 12:56pm
सुनके मेरी ग़ज़ल कहा उसने
अपने फ़न में है कामयाब कोई...वाह वाह आदरणीय क्या खूब कहा..सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on November 14, 2017 at 10:56am

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।बेहतरीन गज़ल।

पास है जिनके दौलत-ए-ईमाँ
उन पर आता नहीं अज़ाब कोई

Comment by Gurpreet Singh jammu on November 13, 2017 at 3:44pm

सुनके मेरी ग़ज़ल कहा उसने
अपने फ़न में है कामयाब कोई.

सबसे उनको छुपा के रखता हूँ
तोड़ डाले न मेरे ख़्वाब कोई.

आमने सामने हों जब दोनों
उनको देखे कि माहताब कोई.

वाह वाह आदरणीय समर सर जी ,, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने ,,, इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से दाद हाज़िर है सर जी

Comment by Ajay Tiwari on November 13, 2017 at 1:29pm

आदरणीय समर साहब, आदाब,

खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर  

Comment by SALIM RAZA REWA on November 13, 2017 at 1:20pm

आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ,
पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद।

................................

ख़ून-ए-जिगर से तूने सवाँरी है हर ग़ज़ल
तेरे सुख़न का रंग कोई काग़ज़ी नहीं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2017 at 8:56pm

मेरे ग़म का है सद्दे बाब कोई
आपके पास है जवाब कोई

सुनके मेरी ग़ज़ल कहा उसने
अपने फ़न में है कामयाब कोई---वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह आद० समर भाई जी ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दिल से दाद हाजिर है |

Comment by Mohammed Arif on November 12, 2017 at 4:28pm
मेरे ग़म का है सद्दे बाब कोई
आपके पास है जवाब कोई ।वाह!वाह!! मज़ा आ गया । ग़म ही जीने का एक मात्र सहारा रह गया ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
Comment by Afroz 'sahr' on November 12, 2017 at 3:40pm
वाह वाह क्या कहने बहुत ख़ूब आली जनाब समर साहिब बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

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