For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी शाम से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आपकी याद आने लगी शाम से
ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी शाम से

गुनगुनाती हुई चल रही है हवा
शाम भी गीत गाने लगी शाम से

चाँदनी रात से क्यों करें हम गिला
हर ख़ुशी झिलमिलाने लगी शाम से

बड़ रही प्यार की तिश्नगी हर घड़ी
हसरतें सिर उठाने लगी शाम से

ताल बेताल थे सुर बड़े बेसुरे
रागनी वो सुनाने लगी शाम से

आस दिल में लिये चल पड़ी बावरी
रात सपने सजाने लगी शाम से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 954

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2017 at 9:20pm
आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीया..
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 5:15pm

सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय बधाई स्वीकारें |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 11:20pm
सादर नमन स्वीकारें आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 11:18pm
आदरणीय समर सर प्रणाम स्वीकार करें..हवा स्त्रीलिंग है इसलिए मुझे लगा कि 'चल रही' काफी है स्त्रीत्व के बोध के लिए..लेकिन आप कह रहे हैं तो ये उचित नहीं होगा..मैं सुधार करता हूँ..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 11:14pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी..ये शेर मुझे भी कुछ कमजोर सा लग रहा है..आपने मुझे मौका दिया कि में इस विषय में सोचूँ..चौथे शेर को भी दुरुस्त करता हूँ..सादर प्रणाम..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 11:10pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी स्नेहिल टिप्पड़ी के लिए हार्दिक आभार..प्रणाम
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 10, 2017 at 8:05pm
बहुत खूब
Comment by Samar kabeer on October 10, 2017 at 2:57pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'गुनगुनाते हुये चल रही है हवा'
चूँकि 'हवा'स्त्रीलिंग है, इसलिये इस मिसरे को इस तरह करना उचित होगा :-
'गुनगुनाती हुई चल रही है हवा'
Comment by Ajay Tiwari on October 10, 2017 at 12:43pm

अच्छी ग़ज़ल कही है, आदरणीय बृजेश जी, 

आस दिल में लिये ढल रही बावरी
रात सपने सजाने लगी शाम से

रात तो आधी रात के बाद ढलती है शाम से तो चढ़ती है .

चौथे शेर में एक टाइपिंग की गलती है 'बढ़' जगह 'बड़' हो गया है .

शुभकामनाएं 

Comment by नाथ सोनांचली on October 10, 2017 at 4:30am
आपकी याद आने लगी शाम से
ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी शाम से
क्या खूबसूरत मतला जनाब
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, उम्दा ग़ज़ल कही आपने, दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service