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ग़ज़ल शाम होते ही सँवर जाएंगे

2122 1122 22
चाँद बनकर वो निखर जाएंगे ।
शाम होते ही सँवर जाएंगे ।।

जख्म परदे में ही रखना अच्छा ।
देखकर लोग सिहर जाएंगे ।।

छेड़िये मत वो कहानी मेरी।
दर्द मेरे भी उभर जाएंगे ।।

घूर कर देख रहे हैं क्या अब।
आप नजरों से उतर जाएंगे।।

वक्त रुकता नहीं है दुनिया में ।
दिन हमारे भी सुधर जाएंगे ।।

क्या पता था कि जुदा होते ही ।
इस तरह आप बिखर जाएंगे ।।

ये मुहब्बत है इबादत मेरी ।
एक दिन दिल मे ठहर में जाएंगे ।।

इश्क़ पर बात अभी क्या करना ।
इश्क पर आप मुकर जाएंगे ।।

जिद मुनासिब कहाँ है पीने की ।
आप तो हद से गुजर जाएंगे ।।

बज्म में आ गए तो रुकिए भी।
आज की रात किधर जाएंगे ।।

मुझको मालूम है फ़ितरत उनकी ।
मुझ से मिलते ही निखर जाएंगे ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on September 20, 2017 at 12:05pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
सातवें शैर में टंकण त्रुटि देख लें ।
Comment by Mohammed Arif on September 20, 2017 at 8:37am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 19, 2017 at 4:05pm
काफिया के अलावा दो बह्रों का मिश्रण है इस ग़ज़ल में। वैसे ग़ज़ल अच्छी है बधाई
Comment by Afroz 'sahr' on September 19, 2017 at 2:34pm
आदरणीय नवीन जी आदाब सुंदर ग़ज़ल के लिए आपको बधाई देता हूँ । ग़ज़ल का मतला आपने यूँ कहा है । बिजलियाँ फिर गिरा के जाएँगे ।
शाम होते वो सँवर जाएँगे । इसमें काफ़िया क्या है कृपा कर बताएँ ता की असमंजस दूर हो ।

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