For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक दुखता फोड़ा ---- अमृता प्रीतम जी संस्मरण

३१ अगस्त... प्रिय अमृता प्रीतम जी का पावन जन्म-दिवस। बहुत ही याद आई, मेरे खयालों में तैरती बीते सालों की हवा लौट आई।

सन १९६४ ... अमृता प्रीतम जी और मैं अभी कुछ ही दिन पहले मिले थे। तत्पश्चात टेलिफ़ोन पर उनसे बात हुई तो कुछ दार्श्निक सोच में थीं। बात बदलते हुए मौसम से ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव पर, और फिर झरने पर... जहाँ पानी नीचे गिरता है, गिर कर ऊपर नहीं उठता।  जानते हुए कि वह उस दिन तमस-भाव में थीं, मैं उनकी मानसिक स्थिति को सहलाना चाहता था। अत: उनकी सोच को मान देते हुए मैंने आदर से कहा, " हाँ, कुछ देर के लिए ही वह पानी नीचे रहता है, धूप आती है, पानी वाष्प बन कर फिर ऊपर आ जाता है। कहने लगीं, " हाँ,बादल बन कर बरसता है, फिर से नीचे गिर जाता है न !" मुझे लगा, यह दिन मेरे बस में नहीं था। उनका मनोबल ऊँचा उठाने का मेरा प्रयास असफ़ल था, और सच यह भी है कि मुझको डर भी लग रहा था कि कहीं मैं "छोटा मुँह, बड़ी बात न कर बैठूँ" ... क्यूँकि मैं तब मात्र २३ वर्ष का साधारण-सरल युवक ही तो था ... अमृता प्रीतम जी से तर्क करने की मेरी क्या हैसियत ! फिर भी हिम्मत करी। मेरी बात शायद पूरी नहीं बैठी, अत: कहने लगीं, " बै्ठ कर बात करेंगे।" यह सब बातें पंजाबी में हुई थीं जो मैंने यहाँ हिन्दी में बताईं। 

अगले सप्ताह ... बारिश के बाद एक भीगी शाम। यहाँ-वहाँ छोटे-छोटे तालब, कीचड़, और चलते-चलते फिसलने का भय। बस से उतर कर ज़मीन पर गिरे भीगे पत्तों पर पैर रख कर मैं संभल-संभल कर चल रहा था। फिर भी कुछ मिट्टी जूतों से चिपक गई। पास में हलवाई की दुकान पर पानी मांगा, जूते साफ़ किए, और लगभग १०-१५ मिनट और चल कर अमृता जी के घर (K-25 होज़ खास, नई दिल्ली) पहुँचा। 

मिलने पर हमारी बातों का माहोल इस बार बिलकुल सामान्य नहीं था। दार्शनिक तो उनको पहले कई बार देखा था, पर गत सप्ताह से अभी तक वही स्थिति ? जैसे कोई परिवर्तन न आया हो। थोड़ी-सी औपचारिक बातें, चाय और बिस्कुट ... अपने बेटे के career के विषय में कुछ परेशान थीं, कहने लगीं, (पंजाबी में) "कुड़ी ते आप सम्हाल लैगी, मुंडे दा पता नईं। थुवाडे तरां engineering कर लैंदा तां चंगा सी"। अनुवाद ..."बेटी तो खुद सम्हाल लेगी, बेटे का पता नहीं, आपकी तरह engineering कर लेता तो अच्छा था।"

चाय का प्याला मेरे हाथ में देते हुए अमृता जी ने खिड़की के बाहर देखा, और बहुत गंभीर हो गईं ... हाथ को, फिर उँगलियों को मलते हुए कुछ पल वह चुप, मैं चुप, वातावरण भारी हो रहा था। वातावरण इतना गंभीर कि जैसे हवा को चाकू से काट सकते हों।

मुझको लगा कि जैसे प्रिय अमृता जी के भीतर कोई फोड़ा दुखा हो।

... और फिर अचानक मुझसे एक बहुत कठिन सवाल। कहने लगीं ... (पंजाबी में) ... 

अमृता जी, " किस्मत नूँ बढ़ाण वाला कोण होंदा ए ?"  (हिन्दी .. किस्मत को बनाने वाला कौन होता है?")

हवा में अभी भी घबराहट। अमृता जी मेरी घबराहट को हमेशां झट पहचान लेती थीं, क्यूँकि मुझको अपनी भावनाओं को छिपाना कभी नहीं आया, आज ५२ वर्ष बाद भी अभी तक नहीं।

चुप्पी को तोड़ते हुए कहने लगीं, (पंजाबी) " ए सवाल मैं थुवाडे कोल ई खास पुछेया हे, मैंनु पता हे कि तुसीं एदा जवाब ordinary surface level ते नईं देओगे" ---- हिन्दी .. " यह सवाल मैंने आपसे ही खास पूछा है, मुझे पता है कि आप इसका जवाब ordinary surface level  पर नहीं देंगे।"

एक लम्बी साँस ...

अमृता जी, (पंजाबी) " मेरे novels दे characters मेरे सफ़णा विच वापस आंदे नें ते मेरे कोल एहो ई सवाल बार-बार पुछदे ने"। हिन्दी " मेरे novels के characters मेरे सपनों में वापस आते हैं और मुझसे यही सवाल बार-बार पूछते हैं"।

उनका उपरोक्त संकेत उनके उपन्यास "एक थी अनीता" की ओर था जिसके पहले पन्ने पर उन्होंने लिखा था, "नीना मेरे उपन्यास की नायका है । एक दिन वह मेरे सपने में आई, और मेरी ........."

अमृता जी," विजय जी, एस लई थुवाडे कोल ऐ सवाल पुछया ए".....  हिन्दी " विजय जी,इसीलिए आपसे यह सवाल पूछा है।"

मैं (विजय), " पैले तां, तुसीं ऐ सवाल मेरे कोल पुछ के मैंनू बड़ी इज़्ज़त दिती ए। मैं इसदे जवाब दे काबिल नईं हेगा। किस्मत कोण बणादा ए, ऐदा जवाब तां आसान  नईं हैगा, क्यूँकि ऐदा जवाब हर किसे दी mental growth ते depend करदा ए। ... ऐ  mental growth बतेरे factors ते depend करदी ए... बचपन ते, family background ते, education ते, spiritual growth ते ..."

हिन्दी " पहले तो आपने यह सवाल मुझसे पूछ कर मुझको बड़ा मान दिया है। मैं इस सवाल के जवाब के काबिल नहीं हूँ। इस सवाल का जवाब आसान नहीं है, क्यूंकि इसका जवाब हर किसी की mental growth पर depend करता है। यह mental growth  कई factors पर depend करती है ... बचपन पर, family background पर, education पर, spiritual growth पर..."

अमृता जी, "ओ किवें?" ---- हिन्दी "वह कैसे?"

विजय, " मतलब कि रब किसे इनसान वास्ते उते असमान ते ए, या ओदे दिल दे अन्दर ए । असीं पूजा करदे आँ ते रब नूँ उते असमान विच वेखदे आँ, फ़िर होलि-होलि लगदा ए कि ओ रब बार नईं हेगा, ओ साडे अन्दर ई ऐ। पैले किस्म दे लोकां लई शायद किस्मत रब बढ़ांदा ए, ते दूजे आपणी किस्मत आप बढ़ांदे होन गे। ए दूजे लोक स्वामी विवेकानन्द जिवें होंदे ने ...ताईँ उनाने आपड़ें जाण दा दिन ते वक्त आप announce कीता सी।"

हिन्दी--- विजय " मतलब कि भगवान किसी मानव के लिए ऊपर आसमान में है, या उसके मन में विराजा है। हम पूजा करते हैं तो भगवान को ऊपर आसमान में देखते हैं, और फिर धीरे-धीरे लगता है कि वह भगवान बाहर नहीं हैं, हमारे भीतर ही हैं। पहले प्रकार के लोगों की किस्मत शायद  भगवान बनाते हैं, और दूसरे अपनी किस्मत खुद बनाते होंगे। यह दूसरे लोग स्वामी विवेकानन्द जैसे होते हैं  ... तभी तो उन्होंने अपने जाने का समय स्वयं announce किया था।

अमृता जी, हँसते-हँसते," ए जवाब ते बड़ा ई गूड़ ए... एनू समझण लई high mental state चाइदिए ए.। Generally लोकां लई किस्मत रब ई देंदे ने।"

              --- हिन्दी (हँसते-हँसते) " यह जवाब तो बहुत ही गूढ़ है... इसको समझने के लिए high mental state चाहिए ।"

विजय, " और जैसे मैंने कहा, यह सवाल इतना कठिन है कि मैं नहीं जानता, मैं कहाँ तक ठीक हूँ या गलत हूँ।

ऐसी ही कुछ और बातें हुई और शाम ढलने लगी। अमृता जी से मिलना अच्छा लगा। इस बार मेरे लिए यह बातें कठिन थीं, फिर भी अच्छी लगीं।

यदि यह मेरी परीक्षा थी तो पता नहीं मैं पास हुआ कि नहीं। कुछ और इधर-उधर की बातें, उनकी पुस्तकों के बारे में , मेरी रचनाओं के बारे में ...और फिर से मिलने की बात करके मैं घर लौट आया, पर सारा रास्ता मैं उनके दुखते फोड़े को ही सोचता रहा, मुझको वह भीतर ही भीतर चुभता रहा ... मन दुखी था कि चाह कर भी मैं कुछ कर न सका।

अमॄता जी की स्मृति में उनकी पावन आत्मा को सादर नमन।

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 1270

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 1, 2017 at 11:43pm

//महान लेखिका अमृता प्रीतम के साथ मुलाकात, उनकी चिंता-व्याकुलता, जीवन के अंतिम प्रहर की दार्शनिकता और सृजन ...//

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ भाई, बहुत-बहुत धन्यवाद आपके करुण शब्दों के लिए। मंगलकामनाओं सहित।

सादर,

विजय

Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 10:20pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी इस प्रस्तुति पर मैं फिर वापस आऊंगा,अभी इस प्रस्तुति पर जल्दबाज़ी में कुछ लिखना नहीं चाहता,विस्तार से बात करेंगे,फ़िलहाल इस बढ़िया प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2017 at 4:49pm

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण संस्मरण आदरणीय विजय जी | सादर धन्यवाद् आपको , जो इतने सुंदर पल आपने साझा किये हैं | इतनी महान हस्ती से आपने हमें भी मिलवा दिया | नमन सर |

Comment by Mohammed Arif on September 1, 2017 at 10:51am
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,महान लेखिका अमृता प्रीतम के साथ मुलाकात, उनकी चिंता-व्याकुलता, जीवन के अंतिम प्रहर की दार्शनिकता और सृजन के बारे में जाकारी हासिल हुई । इस संस्मरण की एक ख़ास बात यह अच्छी लगी कि आपने पंजाबी के साथ हिंदी अनुवाद भी लिख दिया जिससे संप्रेषणीयता और बढ़ गई । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service