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ग़ज़ल...वही बारिश वही बूँदें वही सावन सुहाना है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

१२२२   १२२२ ​   १२२२    १२२२​
वही बारिश वही बूँदें वही सावन सुहाना है
तेरी यादों का मौसम है लबों पे इक तराना है

तुझी को याद करता हूँ तेरा ही नाम लेता हूँ
यही इक काम है बाकी तुझे अपना बनाना है

कभी जाये न ये मौसम बहे नैंनो से यूँ सावन
दिखाऊँ किस तरह जज्बात​ राहों में जमाना है

रही बस याद बाकी है यही फरियाद बाकी है
सुनाऊँ क्या जमाने को खुदी को आजमाना है

मिलन होता न उल्फत में कटेगी जिन्दगी पल में
ये साँसें हैं बिखर जायें अमर अपना फसाना है​
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 25, 2017 at 9:07am
मतला आपको पसंद आया इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब सलीम रजा साहब..
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 8:31pm
ख़ूबसूरत मतले के लिए बधाई,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2017 at 5:07pm
आदरणीय गिरिराज जी सादर प्रणाम..अंतिम शेर में कुछ अच्छा करने का प्रयास कर रहा हूँ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2017 at 5:01pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..आपले स्नेहमयी शब्दों के लिए हार्दिक आभार..

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 8:39am

आदरणीय बृजेश भाई , अच्छी गज़ल कही है दिल से बधाइयाँ आपको । अंतिम शेर का सानी कुछ अर्थ नही दे पा रहा है , देखियेगा ।

ए साँसें हैं बिखर जायें अमर अपना फसाना है​  ॥

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:46am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, बेहद खूबसूरत ख्याल को आपने इन अशआर के माध्यम से बुना है, दाद के साथ बधाई क़बूलें। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 23, 2017 at 10:15pm
स्वागत है अभिनन्दन है आदरणीय विजय जी..सादड़
Comment by vijay nikore on August 23, 2017 at 4:03pm

अच्छी गज़ल कही। दिल से बधाई, बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 23, 2017 at 2:04pm
आदरणीय शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..आपके दोनो सुझाव बेहद खूबसूरत हैं..आपके ध्यानाकर्षण के कारण मुझे भी लग रहा है कि कुछ और बेहतर किया जा सकता है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 23, 2017 at 1:47pm
आदरणीय मोहित मिश्रा जी सादर धन्यवाद

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