For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल
2122  2122  2122  212
याद करे दुनिया तुझे ऐसी निशानी छोड़ जा,
जोश भर दे जो सभी में वो जवानी छोड़ जा।

नाम पर तेरे कभी कोई उदासी हो नहीं,
प्यार से भरपूर कुछ यादें सुहानी छोड़ जा।

देश की खातिर लुटाओ जान अपनी शान से,
हर किसी की आँख में दो बूँद पानी छोड़ जा।

हो भरोसा हर किसी को तेरी बातों पर सदा,
देश हित की प्रेरणा दे वो बयानी छोड़ जा।

मौत आतीे है सभी को देख ‘‘मेठानी’’ यहां,
गर्व हो अपनाें को कुछ ऐसी कहानी छोड़ जा।

( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 19, 2015 at 1:17pm

आदरणीय इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2015 at 11:57am

आदरणीयदया राम भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई गज़ल के लिये ।

याद करे दुनि/ या तुझे ऐ/ सी निशानी / छोड़ जा --- ये मिसरा बेबह्र है , कृपया देख लीजियेगा ।

21122          2122       2122          212 

Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:44pm

सुंदर गज़ल ,आदरणीय 

Comment by Alok Mittal on January 17, 2015 at 4:01pm

बहुत सुंदर लाजवाब ग़ज़ल

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 11:19am
उम्दा
Comment by Dayaram Methani on January 16, 2015 at 10:49am

उत्साह बढ़ाने के लिये बहुत बहुत  धन्यवाद उमेश कटारिया जी।

Comment by umesh katara on January 16, 2015 at 10:29am

वाह वाह वाह क्या बात है 

याद करे दुनिया तुझे ऐसी निशानी छोड़ जा, 
जोश भर दे जो सभी में वो जवानी छोड़ जा।

Comment by Dayaram Methani on January 15, 2015 at 11:22pm

आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, सुझाव के लिये आभारी हूं। जोश भर दे- दो मिसरों में आ गया है इसे संशाोधित करुंगा। 

Comment by Dayaram Methani on January 15, 2015 at 11:18pm

बहुत बहुत आभार हरिप्रकाश दुबे जी एवं आशुतोष मिश्रा जी।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 7:48pm

मौत आतीे है सभी को देख ‘‘मेठानी’’ यहां,

गर्व हो अपनाें को कुछ ऐसी कहानी छोड़ जा।.........सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय दयाराम मैठानी साहब सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service