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ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है

तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.
.
किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.
.
यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.
.
यही हासिल हुआ है इक सफ़र से  
हमारे पाँव में जो आबला है.
.
कभी लगता है अपना बाप मुझ को  
ये दिल  इतना ज़ियादा टोकता है.
.
नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.
.
हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस तीरगी का सिलसिला है.
.
बहुत सी लडकियाँ मरती हैं उस पर
वो लड़का, हाँ वही जो साँवला है.
.
ग़ज़ल में “नूर”! वो सब तू सुना दे
तेरे जीवन में जो कुछ अनकहा है.
  .
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 1073

Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on October 17, 2021 at 9:19am

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन

अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। पढ़कर हम जैसे सीखने वालों को बहुत कुछ मिला। आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2021 at 6:55pm

धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश सर,

ग़ज़ल आपको पसंद आई तो रचनाकर्म सार्थक हुआ ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2021 at 6:53pm

आ. समर सर,

आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार .. आपकी टिपण्णी पर मेरा बिन्दुवार स्पष्टीकरण निम्न है ..
//मतला कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे , `फिर रोका गया है `--यानी पहले भी ऐसा हो चूका है I //
आज फिर दिन ने इक तमन्ना की 
आज फिर दिल को हम ने समझाया ..
.
//इस शे`र के ऊला में `इक` शब्द मुझे भर्ती का लगा , ये मेरा ख़याल है ज़रूरी नहीं आप मुत्तफ़िक़ हों I //
असल में मुझे यह पूरा शेर ही भर्ती का लग रहा है :) :) 
.
//`ख़ुद अपनी आँखों से हम देख आए `//
.
बदलाव सधन्यवाद स्वीकार्य .
ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी का पुन: आभार 

Comment by Chetan Prakash on October 15, 2021 at 5:20pm

आदाब, मैं आदरणीय समर कबीर साहब से सहमत हूँ, आपकी ग़ज़ल की सम्प्रेषणीयता वास्तव में अद्भुत है! बाकी कहना  होगा, अन्तिम रूप से काव्य भाव की ही साधना है! अत: 'अति सवर्त्रवर्जयेत ' के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार बताए गए, विद्वत जन, क्षमा करें, सही नहीं लगते! हाँ, इक' का विकल्प  'इस' हो सकता है! 

Comment by Samar kabeer on October 15, 2021 at 3:34pm

जनाब निलेश `नूर` साहिब आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर एक अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली इसके लिये आपका शुक्रीय: , दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ I

तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.---मतला कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे , `फिर रोका गया है `--यानी पहले भी ऐसा हो चूका है I 
.
किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.--अच्छा शे `र हुआ I 
.
यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.--इस शे`र पर ख़ास दाद हाज़िर है I 
.
यही हासिल हुआ है इक सफ़र से  
हमारे पाँव में जो आबला है.--इस शे`र के ऊला में `इक` शब्द मुझे भर्ती का लगा , ये मेरा ख़याल है ज़रूरी नहीं आप मुत्तफ़िक़ हों I 
.
कभी लगता है अपना बाप मुझ को  
ये दिल  इतना ज़ियादा टोकता है.--वाह क्या बात है ,बहुत ही उम्द: शे`र I 
.
नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.-- ये शे`र कई लोगों का सच्चा तर्जुमान है , बहुत ख़ूब I 
.
हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस तीरगी का सिलसिला है.---ऊला में तनाफ़ुर:-)))--`ख़ुद अपनी आँखों से हम देख आए `
.
बहुत सी लडकियाँ मरती हैं उस पर
वो लड़का, हाँ वही जो साँवला है.-- अच्छा है I 
.
ग़ज़ल में “नूर”! वो सब तू सुना दे
तेरे जीवन में जो कुछ अनकहा है.-- ब्बहुत ख़ूब I 
  . 

Comment by Samar kabeer on October 15, 2021 at 11:51am

//तानाफुर में जब पढने में दिक्कत हो तब दोष जायज़ है//

भाई, मैं तो जानता हूँ :-)))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2021 at 9:17am

आ. समर सर,
तानाफुर में जब पढने में दिक्कत हो तब दोष जायज़ है... फिर रोक दिया गया.. में ज़बान परमिट करती है कि दो र साथ आएँगे.. अत: यह दोष नहीं है.
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2021 at 9:15am

धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,
फिर रोका गया में तानाफुर इसलिए नहीं माना जाएगा क्यूँ कि यह ज़बान में ऐसे ही बोला जाता है . कभी इसे रोका फिर गया है कहा ही नहीं जा सकता..से समझौता हुआ है में  से की अंतिम ध्वनी ए है अत: तनाफुर है ही नहीं..
इस स्पष्टीकरण से बढ़कर बात यह है कि तानाफुर अथवा तकाबुल ए रदीफ़ का मामला क्रिकेट के LBW रिव्यु की तरह है.. बॉल ऑफ़ के बाहर पिच हो, इम्पैक्ट स्टाम्प की लाइन में हो और विकेट हिट हो भी रहे हों तो भी अंपायर कॉल मैटर करता है..
सादर 

Comment by Samar kabeer on October 14, 2021 at 7:21pm

//मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर खटक रहा है//

निलेश जी तनाफ़ुर और तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नहीं मानते:-)))) 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 4:21pm

जनाब निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, हरिक शे'र रवानी में है, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

मगर... मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर खटक रहा है।  सादर। 

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