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अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2122   2122    2122    212

बिन मेरे जब दिल तुम्हारा जीने के काबिल हुआ।
देख ले मझधार ही मेरे लिए साहिल हुआ।

जो नहीं है पास अपने उसकी बेचैनी के साथ,
उसको जाया कर दिया है जो हमें हासिल हुआ।

सामने आकर खड़ी हो जाती हैं सूरत कईं,
खुद में खुद को खोजना मेरे लिए मुश्किल हुआ।

कह नहीं पाया मैं अपने दिल की सारी बात पर,
तू मेरी ग़ज़लों में लगभग हर दफा शामिल हुआ।

वेदनाओं के सफर में साथ है तू हर घड़ी,
और तेरा महसूस होना ही मेरा कातिल हुआ।

कोई सन्नाटे में पहरा दे रहा है रात भर,
कोई यादों की तरफ से हर तरह ग़ाफ़िल हुआ।

हमने कोशिश तो बहुत की पर सफलता कब मिली,
उसने पढ़ कर कह दिया है कुछ नहीं हासिल हुआ।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on September 7, 2021 at 10:20am

आदरणीय समर कबीर साहब आपके मार्गदर्शन से सुधार करता हूँ 

सादर आभार

Comment by Samar kabeer on September 6, 2021 at 6:53am

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'बिन मेरे जब दिल तुम्हारा जीने के काबिल हुआ।
देख ले मझधार ही मेरे लिए साहिल हुआ'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, सुधार का प्रयास करें ।

'उसको जाया कर दिया है जो हमें हासिल हुआ'

इस मिसरे में आपको 'ज़ाया' और 'जाया' के अर्थ में कुछ अंतर नहीं लगता? आख़िर सहीह शब्द लिखना कब सीखेंगे?

'सामने आकर खड़ी हो जाती हैं सूरत कईं'

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है, यूँ कर लें:-

'सामने आकर खड़ी होती हैं कितनी सूरतें'

'तू मेरी ग़ज़लों में लगभग हर दफा शामिल हुआ'

इस मिसरे में 'दफा' शब्द ग़लत है, सहीह शब्द है "दफ़'अ:" इसे 21 और 22 दोनों वज़्न पर ले सकते हैं, सुधार का प्रयास करें ।

ग़ज़ल में कई शब्द नुक़्तों के बग़ैर ग़ज़ल को मुँह चिढ़ाते लग रहे हैं ।

Comment by Chetan Prakash on September 4, 2021 at 12:10pm

आदाब, मनोज अहसास साहब, मतला, मुझे रब्त का अभाव लगा! वक़्त भी आपने ग़ज़ल को क़म दिया है, आप स्वयं बेहतर कर सकते हैं, ऐसा प्रतीत हुआ! देखिए गा! 

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