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2212 2212 2222 2

मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है

तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है

आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है

माँ तेरे हर अंदाज़ से खुशबू आती है

आसाँ है तेरी हर, इक आहट को सुन लेना

दिल को तिरे आग़ाज़ से खुशबू आती है

तू रहती है घर में तो घर, घर सा लगता है

हो साथ अगर हम-साज़ से खुशबू आती है

कोई तो जादू आता है तुझको ओ माँ जो

टोके तो दख़ल अंदाज़ से खुशबू आती है

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आज़ी तमाम

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Comment

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Comment by Aazi Tamaam on April 11, 2021 at 6:57pm

शुक्रिया आदरणीय जनाब अमीर जी

हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिये आभार

टोके 22 तो 1 दख 2 लं 2 दा 2 ज 1 से 2 खुश 2 बू 2 आती 22 है 2

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 9:17am

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, प्यारे भावों के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

2212 - 2212 - 2222 - 2

"आसाँ है तुझको दूर से ही सुन लेना माँ" इस मिसरे का शिल्प और 

इन मिसरों का वाक्य विन्यास दुरुस्त नहीं है-

"दिल को तिरे आग़ाज़ से खुशबू आती है"   

"हो साथ जो तू हम-साज़ से खुशबू आती है" ये मिसरा बह्र में नहीं है।

"टोके तो दख़्ल-अंदाज़ से खुशबू आती है" ये मिसरा बह्र में नहीं है, सही लफ़्ज़ दख़ल-अंदाज़ है,  सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on April 9, 2021 at 9:52pm

सहृदय शुक्रिया आदरणीय ब्रज जी हौसला अफ़ज़ाई के लिये

सादर

इसके मापनी हैं

2212 2212 2222 2

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2021 at 9:48pm

बड़े ही प्यारे भाव हैं भाई तमाम जी...इसकी मापनी क्या है?

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