For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 1221 1221 122

शतरंज में रिश्तों की मैं हारा नहीं होता 
अपनों को बचाने में जो उलझा नहीं होता

यादें तेरी ख़ुश्बू से न दिन रात महकतीं
लम्हा जो तेरे लम्स का ठहरा नहीं होता

भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल
ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता 

शाख़ों से कहीं उसकी तुम्हें झाँकता बचपन
आँगन का शजर तुमने जो काटा नहीं होता

नफ़रत के समर आयेंगे नफ़रत के शजर पर 
ऐ काश बशर बीज ये बोया नहीं होता

गर तुम ना मिले होते मुझे राह-ए-वफ़ा में 
होता मैं मगर इतना भी तन्हा नहीं होता

गुज़री है 'सिफ़र' ज़ीस्त इन्हीं सोचों में सारी 
वैसा न हुआ होता तो ऐसा नहीं होता

मौलिक,अप्रकाशित
अंजलि 'सिफ़र'

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by anjali gupta on August 17, 2020 at 11:42pm

सबसे पहले तो देरी से जवाब देने के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ। मैंने आयोजन के इतर पहली बार कुछ पोस्ट किया है। मुझे सबको अलग से रिप्लाई का ऑप्शन नहीं दिख रहा। डिंपल शर्मा जी हार्दिक आभार। लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी ,हार्दिक आभार। बृजेश कुमार बृज जी चौथे शेर में कहना चाहती हूँ कि घर के आँगन में अगर कोई पेड़ हो तो बचपन की यादें ज़रूर उससे जुड़ी होती हैं।अमीरुद्दीन अमीर जी,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का भी शुक्रिया और बेहतरीन इस्लाह का भी आदरणीय। obo में ग़ज़ल पोस्ट करना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार। सभी को पुनः नमन

Comment by Dimple Sharma on August 8, 2020 at 12:17pm

आदरणीया अंजलि गुप्ता जी वाह बहुत ख़ूब, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 5, 2020 at 11:34pm

मुहतरमा अंजलि 'सिफ़र' साहिबा आदाब,  लाजवाब अश'आ़र के साथ शानदार ग़ज़ल कही है आपने कुछ अश'आ़र में मामूली तरमीम कर सकते हैं, बहरहाल दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

//शतरंज मे रिश्तों की मैं हारा नहीं होता :  रवानी के लिए यहांँ 'शतरंज में' को 'शतरंज ये' कर के देखें,

//भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल :  ज़बान और शिल्प के ऐतबार से लफ़्ज़' भीतर' मुनासिब नहीं है शे'र यूँ कर सकते हैं :

"दिल पर न उसे आने कभी देता मेरा दिल 

ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता"  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 2:22pm

आ. अंजलि जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2020 at 10:09pm

बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीया लेकिन चौथे शे'र का उला साफ़ नहीं है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service