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हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना(१०१ )

( 121  22  121  22  121  22  121  22  )

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हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना

हमें फ़लक की भी  क्या ज़रूरत ज़मीन से है  जुड़ाव अपना

**

जहाँ में अपनी किसी से यारो न दुश्मनी और न दोस्ती है

न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना | 

**

फ़रोख्त होगी कभी हमारी  ख़याल कोई  न लाये  दिल में

अमोल हैं हम कोई जहाँ में  करेगा क्या मोलभाव अपना

**

कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक तोहफ़ा

उसी  को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है वो घाव अपना

**

निचोड़ है ज़िंदगी का अपनी करे मुहब्बत कभी न कोई

न मानते हैं तो आप जानें दिया हैं हमने  सुझाव अपना

**

अज़ल से अब तक कभी जहाँ में है एक सच जो कभी न बदला

अमीर हो या ग़रीब कोई क़ज़ा है अंतिम पड़ाव अपना

**

नहीं गवारा हमारे ग़म से हो ग़ैर कोई कभी परेशां

सजा के रुख़ पर हसीं तबस्सुम  भगाते हैं हम  तनाव अपना

**

कभी अमीरी कभी ग़रीबी चखे हैं दोनों के स्वाद हमने

मगर है फ़ितरत फ़क़ीर जैसी रहा उसी से निभाव अपना 

**

'तुरंत ' अपनी ग़ज़ल में फ़ाज़िल न ढूंढें कोई  कभी  तग़ज़्ज़ुल

सपाट कह कर पका रहे हैं फ़क़त  ख़याली पुलाव  अपना

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 6:30pm

भाई सालिक गणवीर  जी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार  एवं नमन | 

Comment by सालिक गणवीर on May 20, 2020 at 6:25pm
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी जी
आदाब
एक और उम्दा ग़ज़ल के दिली मुबारकबाद.
उसी को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है जो घाव अपना.. वाह
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 5:30pm

 सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार  एवं नमन | 

Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 4:14pm

आद0 गिरधर सिंह गहलोत तुरन्त जी सादर अभिवादन। बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है। बहुत खूब। शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल फरमाएं

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 3:36pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी, इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार | 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 20, 2020 at 12:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' जी। बेहतरीन गज़ल।

कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक तोहफ़ा

उसी  को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है वो घाव अपना

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 19, 2020 at 2:45pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी , इस स्नेहिल और उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार एवं नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2020 at 12:44pm

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 3:42pm

आदरणीय Samar kabeer  साहेब ,आदाब , 

आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम  | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया | मनमुटाव+अर  वस्ल से बह्र तो बैठ रही है , अगर गलत है तो इसे इस तरह पढ़ें  | न कोई दिल में है मनमुटाव और नहीं किसी से दुराव अपना =न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना | 

Comment by Samar kabeer on May 18, 2020 at 3:08pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'न कोई दिल में है मनमुटाव और नहीं किसी से दुराव अपना'

इस मिसरे की बह्र चेक कर लें म

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