For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"पापा, अब तो आप नहीं जाओगे ना?, बेटा पिता को पकड़े हुए कह रहा था, साल भर बाद उसने पिता को देखा था.
उसके सामने पिछले सात दिन का खौफनाक मंजर छा गया, कभी पैदल, कभी ट्रक में, कभी किसी टेम्पो में चलते हुए बस वह आ गया था. उसके एक दो साथी तो रास्ते में ही चल बसे थे.
उसने पत्नी की तरफ देखा, जिसकी आँखें मानो कह रही थीं "तुम बस सलामत रहो, दो वक़्त की रोटी तो हम खा ही लेंगे".
उसने अपने भविष्य की चिंता को झटकते हुए कहा "अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा बेटा, यहीं रहूँगा, तुम्हारे पास".
बेटा खुश होकर उससे चिपट गया, उसने पत्नी को भी हाथ बढ़ाकर अपने पास खींच लिया.
बेदर्द शहर ने एक और कर्मवीर खो दिया.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on May 26, 2020 at 12:06pm

इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ रक्षिता सिंह जी

Comment by रक्षिता सिंह on May 24, 2020 at 3:36pm

आदरणीय विनय जी, नमस्कार बहुत ही सुंदर लघुकथा ... बहुत बहुत बधाई !

Comment by विनय कुमार on May 21, 2020 at 4:58pm

इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on May 21, 2020 at 2:31pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब, अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on May 20, 2020 at 12:27pm

इस सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on May 20, 2020 at 12:27pm

इस सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पांडे जी

Comment by TEJ VEER SINGH on May 20, 2020 at 11:49am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बेहतरीन सम सामयिक लघुकथा।जो लोग इस त्रासदी को झेल रहे हैं या झेल चुके हैं वे अगली दो तीन पीढ़ी तक इसे भूल नहीं पायेंगे।शहर की ओर आने का सपना भी नहीं देखेंगे।

Comment by pratibha pande on May 20, 2020 at 11:42am

वाह .. मजदूरों के पलायन का सामयिक विषय लेकर चलती रचना को अंतिम पंक्ति ने बहुत ऊँचाई दे दी। आज इन कर्मवीरों को बोझ और भीड़ समझने वाली मानसिकता कल अवश्य अपने फैसलों पर पछतायगी। बधाई आदरणीय विनय जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, आपकी इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा। "
12 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
40 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
56 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
59 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service